नई दिल्ली । नेपाल में बुधवार तड़के 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था। भूकंप के झटके इतने तेज थे कि झटके दिल्ली, गाजियाबाद, गुरुग्राम और लखनऊ सहित उत्तर भारत के भी कुछ हिस्सों को हिला दिया। नेपाल के दोती जिले में एक मकान गिरने से कम से कम छह लोगों की मौत हो गई। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी ने कहा कि नेपाल में सुबह 1.57 बजे रिक्टर पैमाने पर 6.3 तीव्रता का भूकंप आया। भूकंप के झटके नेपाल की सीमा से लगे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से 90 किमी दक्षिण पूर्व में आए। इससे पहले मंगलवार शाम को क्षेत्र में 4.9 तीव्रता और 3.5 तीव्रता के दो भूकंप आए थे।
हिमालय क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना के बावजूद इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता और इसके मद्देनजर वैज्ञानिकों ने इससे डरने की बजाय उसका सामना करने के लिए पुख्ता तैयारियों पर जोर दिया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से हिमालय अस्तित्व में आया है, और यूरेशियन प्लेट के लगातार इंडियन प्लेट पर दवाब डालने के कारण इसके नीचे इकट्ठा हो रही विकृति उर्जा समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर आती रहती है। उन्होंने कहा, हिमालय के नीचे विकृति उर्जा के इकट्ठा होते रहने के कारण भूकंप का आना एक सामान्य और निंरतर प्रक्रिया है। पूरा हिमालय क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बहुत संवेदनशील है और यहां बड़ा बहुत बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना हमेशा बनी हुई है।’ उन्होंने कहा कि यह बड़ा भूकंप रिक्टर पैमाने पर सात या उससे अधिक तीव्रता के होने की संभावना है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा कि विकृति उर्जा के बाहर निकलने या भूकंप आने का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा, यह कोई नहीं जानता कि कब ऐसा होगा। यह अगले क्षण भी हो सकता है, एक महीने बाद भी हो सकता है या सौ साल बाद भी हो सकता है।’ हिमालय क्षेत्र में पिछले 150 सालों में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए जिनमें 1897 में शिलांग, 1905 में कांगडा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम का भूकंप शामिल है।
हालांकि उन्होंने साफ कहा कि इन जानकारियों से भी भूकंप की आवृत्ति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली के बाद 2015 में नेपाल में भूकंप आया। उन्होंने कहा कि भूकंप से घबराने की बजाय इससे निपटने के लिए केवल अपनी तैयारियां पुख्ता रखनी होंगी, जिससे भूकंप से होने वाले जान-माल के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
उन्होंने कहा कि इसके लिए जरुरी हैं कि निर्माण कार्य को भूकंप-रोधी बनाया जाए, भूकंप आने से पहले, भूकंप के समय और भूकंप के बाद की तैयारियों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाए तथा साल में कम से कम एक बार मॉक ड्रिल आयोजित की जाए। उन्होंने कहा, ‘अगर इन बातों का पालन किया जाए, तब नुकसान को 99.99 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।’ इस संबंध में उन्होंने जापान का उदाहरण देकर कहा कि अपनी अच्छी तैयारियों के कारण लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंप आने के बावजूद वहां जान-माल का नुकसान ज्यादा नहीं होता।