– दिनेश ‘दर्द’
राम का त्याग, समर्पण और अपनत्व का भाव ही उन्हें मर्यादा पुरुषाेत्तम बनाता है. राम सिखाते हैं कि कैसे पिता का वचन निभाने के लिए हंसते-हंसते वन-गमन किया जा सकता है. कैसे केवट, जटायु और शबरी जैसाें काे प्रेम किया जा सकता है. राम इसलिए भी मर्यादा पुरुषाेत्तम हैं क्याेंकि वाे ज्ञान-प्राप्ति के लिए लक्ष्मण काे मृत्यु-शैय्या पर पड़े अपने दुश्मन रावण के पास भेजते हैं. कुल मिलाकर मर्यादा पुरुषाेत्तम राम इतने बड़े हैं कि हम उनके जैसे थाेड़े भी हाे जाएं, ताे ये दुनिया बहुत ख़ूबसूरत हाे जाएगी.
मशहूर शायर और गीतकार शकील आज़मी ने ख़ास गुफ़्तगू के दाैरान मर्यादा पुरुषाेत्तम श्रीराम के रंग में सराबाेर हाेकर अपनी ज़िंदगी में आए उतार-चढ़ाव के साथ-साथ ‘बनवास’ काे लेकर उनकी ज़िंदगी में आए बदलाव काे लेकर भी चर्चा की.
1984 में महज़ 13 की उम्र में लिक्खी अपनी पहली ग़ज़ल का शे‘र कहते हुए उन्हाेंने अपने ‘गाॅड गिफ्टेड’ शायर हाेने का तआरुफ़ करवाया. उन्हाेंने पढ़ा कि-
ख़ून से है क्यूं भीगा, जिस्म ये शकील अपना,
ज़ख़्म क्यूं मैं खाया हूं, पत्थराें काे मालूम है.
शायरी के लिए बुनियादी दु:ख हाेना ज़रूरी
शकील ने बताया कि, शायर बनाए नहीं जाते, बल्कि पैदा हाेते हैं. शायर हाेने के लिए एक बुनियादी दु:ख हाेना ज़रूरी है, जाे किसी अपने का ही दिया हुआ हाे. बचपन में ही मां काे खाे चुके शकील की ज़िंदगी में दु:खाें की यही पहली दस्तक थी, जिसने बाद में सिलसिले की शक़्ल इख़्तियार कर ली. दूसरी शादी के बाद वालिद की ठाेकर ने उन्हें ननिहाल (सहरिया, जिला आज़मगढ़) पहुंचा दिया. ननिहाल में भी हालात कुछ साज़गार नहीं रहे.
मुंबई पहुंच कर मैंने कश्ती ताेड़ दी अपनी
उम्र की सीढ़ी पर चढ़ते हुए कुछ बनने से पहले पेट पालने की जुस्तजू में गुजरात का रुख़ किया. पहले भरूच, फिर बड़ाैदा, फिर सूरत. सूरत में 13-14 साल गुज़ारे. मगर शायरी बदस्तूर जारी रही. यहीं से उन्हें मुंबई के लिए बुलावा आ गया और शकील आज़मी फरवरी-2001 में मुंबई पहुंच गए. इसके बाद उन्हाेंने अपनी कश्ती ताेड़ दी और अहद कर लिया कि, अब जीना भी यहीं और मरना भी यहीं.
एक टुकड़ा धूप है पसंदीदा गाना
2004 में पहली फिल्म मिली ‘वाे तेरा नाम था’. ख़ुद के पसंदीदा गीताें में उन्हें एक टुकड़ा धूप (थप्पड़) पसंद है. जावेद अख़्तर, गुलज़ार के अलावा अमिताभ भट्टाचार्य, इरशाद कामिल और सईद कादरी उनके पसंदीदा गीतकार हैं. आइटम नंबर उन्हें कुमार के भाते हैं. शायराें में मीर, ग़ालिब, निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र और माेहम्मद अलवी उनकी पसंद रहे. वहीं माैजूद मंच पर उन्हें फ़रहत एहसास, आलम खुर्शीद, नाेमान शाैक़, अकरम नक्काश की शायरी उन्हें लुभाती है.
शायरी लिखते-लिखते ‘बनवास’ का ख़याल कैसे आया. इस सवाल पर उन्हाेंने बताया कि, दरअसल वाे कुदरत पसंद शख़्स हैं और जंगल पर कुछ लिखना चाह रहे थे. पहली ही ग़ज़ल लिक्खी-
मैं हूं इंसान ताे हाेने का पता दे जंगल,
राम जैसे थे मुझे वैसा बना दे जंगल.
राे पड़ा था ‘उर्मिला’ और ‘अहिल्या’ लिखते-लिखते
राम के नाम पर लिखी इस ग़ज़ल के बाद भी ज़ेहन में ‘बनवास’ कहीं नहीं थी. इसके बाद ‘उर्मिला’ के किरदार के बारे में जाना और सबसे पहली नज़्म लिखी उर्मिला. फिर ‘अहिल्या’ नाम के पात्र के बारे में पता चला, ताे उनका अध्ययन कर इस उनवान से एक नज़्म लिख दी. इसके बाद जी में आया कि सभी पात्राें पर नज़्में लिखूं. इसके बाद मैंने सभी पात्राें पर नज़्में लिखीं और ‘बनवास’ तैयार हुई. ‘उर्मिला’ और ‘अहिल्या’ लिखते हुए आंसुओं ने भी गवाही दी.