
[प्रसंगवश – 23 मार्च: भगवान आदिनाथ का जन्म कल्य
[23 मार्च 2025: जब प्रकृति भी गाएगी भगवान आदिनाथ की महिमा]
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर एक दिव्य आभा बिखेरता यह दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर, श्री 1008 भगवान आदिनाथ के जन्म कल्याणक का उत्सव होगा। 23 मार्च 2025 को यह पवित्र अवसर भक्ति, श्रद्धा और अपार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। संपूर्ण सृष्टि में उस दिन आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होगा, मानो प्रकृति भी इस अलौकिक क्षण का स्वागत करने को आतुर हो। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि उस महान आत्मा की गाथा का प्रतीक है, जिसने मानवता को सभ्यता और ज्ञान का पहला प्रकाश प्रदान किया। भगवान आदिनाथ—जिन्हें ऋषभनाथ, आदिब्रह्मा, वृषभदेव और पुरुदेव जैसे पवित्र नामों से जाना जाता है—सिर्फ तीर्थंकर ही नहीं, बल्कि मानवता के प्रथम गुरु और आध्यात्मिक क्रांति के आधार-स्तंभ थे। जब उस दिन अयोध्या की पवित्र धरती पर सूर्य की प्रथम किरणें पड़ेंगी, तो यह क्षण उस दिव्य जन्म को जीवंत कर देगा, जिसने संसार को कर्म-बंधनों से मुक्ति का मार्ग दिखाया।
उनका जन्म एक चमत्कार था। चैत्र मास की कृष्ण नवमी को इक्ष्वाकु वंश के राजा नाभिराय और रानी मरुदेवी के आंगन में यह अवतार प्रकट हुआ। चारों दिशाएँ खुशी से थिरक उठीं, स्वर्ग से देवताओं ने पुष्पवर्षा की, और धरती ने अपने गर्भ से एक अनमोल रत्न को जन्म दिया। उनका नाम ऋषभ रखा गया, जो उनके बलशाली और तेजस्वी व्यक्तित्व को दर्शाता था। जन्म से ही वे शास्त्रों के सागर में डूबे थे, मानो धरती पर एक जीवंत विश्वकोश लेकर आए हों। सूर्य की पहली किरणों ने जब उस शिशु को स्पर्श किया, तो यह संकेत था कि यह वह आत्मा है, जो अज्ञान के अंधेरे से मानवता को प्रकाश की ओर ले जाएगी।
भगवान आदिनाथ ने मानव सभ्यता को आकार दिया। उन्होंने मनुष्यों को खेती की कला सिखाई—बीज बोने का ज्ञान, अन्न उगाने की विधि और प्रकृति के साथ सामंजस्य का मार्ग। शिल्प और कला का विकास उनके आशीर्वाद से हुआ। अराजकता के उस युग में उन्होंने समाज को संगठित करने के लिए नियम बनाए, जिससे व्यवस्था जन्मी। एक राजा के रूप में उन्होंने प्रजा को जीवन जीने की कला सिखाई। उनकी इस महानता के कारण उन्हें “आदिब्रह्मा”—सृष्टि का प्रथम सर्जक—कहा गया। उनका चिह्न “वृषभ” (बैल) उनकी अडिग शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है, जो आज भी जैन मंदिरों में उनकी पहचान बना हुआ है।
उनका पारिवारिक जीवन प्रेरणा का स्रोत था। युवावस्था में उनका विवाह दो ओजस्वी रानियों—यशस्वती (जिन्हें कुछ ग्रंथों में नंदा कहा गया) और सुनंदा—से हुआ। इनके गर्भ से उन्हें सौ वीर पुत्र और दो अनुपम पुत्रियाँ, ब्राह्मी व सुंदरी, प्राप्त हुईं। उनकी पुत्रियाँ स्वयं में चमत्कार थीं—ब्राह्मी ने “ब्राह्मी लिपि” का आविष्कार कर ज्ञान की अमिट रेखा खींची, जबकि सुंदरी ने गणित और तर्कशास्त्र के क्षेत्र में बुद्धि का परचम लहराया। उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत ने चक्रवर्ती सम्राट के रूप में अखंड साम्राज्य स्थापित किया और इस धरती को “भारत” नाम का गौरव दिया। उनके ही पराक्रमी पुत्र बाहुबली की तपस्या और त्याग की गाथा भी जैन धर्म में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। यह परिवार ज्ञान, शक्ति और धर्म का आधार-स्तंभ था, जिसने भारत की सांस्कृतिक मिट्टी को समृद्ध किया। आज हर भारतीय के रक्त में बहती यह गर्वोन्नत विरासत भगवान आदिनाथ की देन है।
उनका जीवन सांसारिक वैभव में कभी कैद नहीं हुआ। एक दिन, नृत्य की मादक लय के बीच एक नर्तकी नीलांजना का अचानक देहांत उनके लिए संसार की नश्वरता का दर्पण बन गया। उस क्षण ने उनके हृदय में वैराग्य की ऐसी अग्नि जलाई, जो राजसी ठाठ-बाट को भस्म करने को आतुर थी। उन्होंने अपने विशाल साम्राज्य को त्याग दिया और संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। एक वर्ष तक वे कायोत्सर्ग की मौन तपस्या में खोए रहे—शरीर को भूल, आत्मा को पुकारते हुए। फिर, हस्तिनापुर के गन्ने के खेत में इक्षुरस की मिठास ने उनके प्रथम आहार का संयोग रचा, जिसे ‘आखर पर्व’ का नाम मिला। कठोर तप और असीम ध्यान के बल पर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया—वह दिव्य प्रकाश, जो संसार के हर रहस्य को उजागर कर देता है।
23 मार्च 2025 को जब सूर्य की पहली किरण धरती को स्पर्श करेगी, तो यह केवल एक सवेरा नहीं होगा—यह एक नई चेतना का उद्घोष होगा। यह पावन दिन भगवान आदिनाथ का जन्म कल्याणक होगा—एक ऐसा महोत्सव, जो हृदय को भक्ति की सरिता में डुबो देगा। देश का हर कोना भक्ति के सागर में डूबा होगा। कल्पना करें—लाखों भक्तों की शोभायात्रा धरती पर स्वर्ग उतार लाएगी, रंग-बिरंगे ध्वजों से आकाश लहराएगा, मंत्रों की पवित्र ध्वनि से वायु गूंज उठेगी। मंदिरों में घंटियों की झंकार, दीपों की जगमगाहट और भक्तों की आँखों में श्रद्धा का सागर एक ऐसा दृश्य रचेगा, जो आत्मा को झंकृत कर देगा।
यह उत्सव केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रचंड जागृति का प्रतीक है। यह वह दिव्य नाद है, जो कहता है—उठो, अपने भीतर के अंधेरे को भस्म कर दो और उस पथ पर बढ़ो, जिसे भगवान आदिनाथ ने अपने त्याग और तप से प्रकाशित किया। यह दिन हर जैन अनुयायी के हृदय में संकल्प जागृत करेगा—दान में उदारता, तप में दृढ़ता और सेवा में समर्पण। उनके जीवन का हर क्षण एक संदेश है—चाहे वह वैभव को तुच्छ ठहराकर संन्यास चुनना हो, या अहिंसा का वह बीज बोना, जो आज भी मानवता को जीवन का मर्म सिखाता है।
यह उत्सव केवल जैनियों का नहीं, बल्कि हर उस प्राणी का है, जो सत्य और शांति की खोज में भटकता है। भगवान आदिनाथ की शिक्षाएँ जैन धर्म की नींव बनीं और मानवता को दिशा दी। उनकी अहिंसा की गर्जना, संयम की महक और त्याग की प्रदीप्ति आज भी विश्व में प्रतिध्वनित होती है। 23 मार्च 2025 का यह दिन हर भक्त के सीने को गर्व से ऊँचा करेगा, जब वे कह सकेंगे—”हम उस परंपरा के ध्वजवाहक हैं, जिसकी पहली ज्योति भगवान आदिनाथ ने जलाई।” यह वह क्षण होगा, जब हम उनके पदचिह्नों पर चलकर उनकी विरासत को अनंत तक ले जा सकेंगे।
अपने अंतर्मन को संकल्प की अग्नि से प्रज्वलित करें। 23 मार्च 2025 को जब प्रभात की किरणें धरती को आलोकित करेंगी, तो यह जैन इतिहास में एक नया अध्याय रचेगा। यह वह दिन होगा, जब भक्ति का उन्माद सागर-सा उमड़ेगा, आत्मा पापों से मुक्त होगी और हर हृदय में प्रेरणा का सूर्य उदित होगा। भगवान आदिनाथ का जन्म कल्याणक—मानवता के प्रथम तीर्थंकर, उस महान गुरु का महोत्सव होगा, जिन्होंने हमें सिखाया कि सत्य की खोज, संयम की साधना और सेवा का समर्पण ही जीवन का सच्चा सार है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)