
डॉ. महेन्द्र यादव की पाती थोड़ी जज़्बाती
भारतीय टेलीविजन के स्वर्ण युग में जिन चेहरों ने दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी, उनमें अभिनेता पंकज धीर का नाम सदैव अग्रणी रहेगा। दूरदर्शन पर प्रसारित हुए पौराणिक धारावाहिक ‘महाभारत’ में निभाया गया उनका कर्ण का पात्र आज भी भारतीय जनमानस में जीवित है। लेकिन आज उस किरदार को जीवंत करने वाला कलाकार हमारे बीच नहीं रहा।
पंकज धीर का निधन केवल एक कलाकार की विदाई नहीं है, बल्कि उस युग का अंत है जब कलाकार अपने अभिनय से किरदारों को अमर कर देते थे। महाभारत के कर्ण को उन्होंने ऐसा जीवन दिया, ऐसा स्वरूप दिया, जिसे आज भी लोग याद करते हैं — श्रद्धा से, गर्व से और भावुक होकर।
कर्ण: एक चरित्र जो जीवित हो उठा
महाभारत में कर्ण एक जटिल और बहुआयामी पात्र है — सूर्य पुत्र, सूत पुत्र, दानी, योद्धा, मित्र, भाई और सबसे बड़ा — एक त्यागी। इसे निभाना अभिनय से कहीं अधिक आत्मा की गहराई से जुड़ना था। और यही किया पंकज धीर ने।
उनकी संवाद अदायगी में जहां तेज था, वहीं करुणा भी थी। उनकी मुद्रा में स्वाभिमान था, तो मन की पीड़ा भी। उन्होंने कर्ण को केवल एक योद्धा के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे मनुष्य के रूप में पेश किया, जो जीवन भर न्याय और स्वीकार्यता की लड़ाई लड़ता रहा। उनके अभिनय ने कर्ण को पौराणिक कथा से निकालकर घर-घर के ड्राइंग रूम तक पहुंचा दिया।
पंकज धीर: अभिनय से अध्यात्म तक की यात्रा
महाभारत के बाद पंकज धीर ने कई धारावाहिकों और फिल्मों में काम किया, परंतु उनकी पहचान सदैव कर्ण के रूप में ही बनी रही। यह एक कलाकार के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है कि उसका अभिनय किसी किरदार को जनमानस में अमर बना दे।
वे न केवल एक संवेदनशील अभिनेता थे, बल्कि एक सजग मार्गदर्शक भी। उन्होंने कई युवा कलाकारों को अभिनय की बारीकियां सिखाईं और उनके बेटे निखिल धीर भी फिल्म निर्देशन और अभिनय की दुनिया में सक्रिय हैं। पंकज धीर ने स्वयं भी निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा और एक रचनात्मक निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाई।
एक युग की विदाई
आज जब हम पंकज धीर को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, तब यह केवल एक अभिनेता को विदा करना नहीं है — यह उस कला, उस समर्पण और उस समय को विदा करना है, जब टीवी केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि नैतिकता और संस्कारों का वाहक था।
कर्ण का वह डायलॉग आज अनायास ही स्मृति में कौंधता है,
“मैं दानवीर हूं, पर अपनी नियति का दास भी।”
शायद यही जीवन दर्शन पंकज धीर की अपनी यात्रा का सार भी था — गरिमा के साथ जीना, अभिनय के माध्यम से समाज को कुछ देना, और अंततः चुपचाप अलविदा कह जाना।
श्रद्धांजलि के शब्द कम हैं
भारतीय टेलीविजन, अभिनय जगत और करोड़ों दर्शकों के लिए पंकज धीर का जाना एक अपूरणीय क्षति है। परंतु वे हमारे बीच अपनी कला के माध्यम से हमेशा जीवित रहेंगे — हर उस दृश्य में, जहाँ कर्ण अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ता है; हर उस आवाज़ में, जो अन्याय के विरुद्ध गूंजती है।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
