
कविता, जो कभी दिल की गहराइयों से निकलकर कागज पर उतरती थी, आजकल चोरी के डर से डिजिटल स्पेस में खोती जा रही है। एक जमाना था जब कवि अपनी रचनाओं को संजोकर रखता था और मंचों पर पूरे जोश के साथ सुनाता था। मगर अब कवियों का जीवन एक नए और अनोखे संकट से घिर गया है – उनकी रचनाओं की चोरी!
आजकल हर कवि जब कोई नई कविता लिखता है, तो उसके दिमाग में सबसे पहले यही ख्याल आता है कि “यह कविता कहीं चुराई न जाए।” इंटरनेट ने जहाँ कवियों को मंच दिया है, वहीं उसी मंच पर उनकी रचनाएँ बेखौफ उठाई भी जा रही हैं। कोई इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहा है, तो कोई फेसबुक पर। और तो और, कुछ लोग तो कविताओं की चोरी में इतने माहिर हो गए हैं कि चोरी की गई रचना को अपनी बताकर पुरस्कार भी ले आते हैं।
बेचारे कवि की हालत अब उस बैंक कर्मचारी जैसी हो गई है, जो हर वक्त अपनी तिजोरी पर नजर रखता है कि कहीं कोई घुसपैठिया उसकी मेहनत की कमाई न चुरा ले। फर्क सिर्फ इतना है कि कवियों के पास तिजोरी नहीं होती, और उनके शब्दों की कोई सुरक्षा प्रणाली नहीं होती।
कवि आजकल सोचता है कि “कविता लिखूं या न लिखूं?” अगर लिखी तो तुरंत कोई चतुर आदमी इसे उठाकर अपने नाम से पब्लिश कर देगा, और यह बेचारा कवि कोने में बैठकर केवल आंसू पोंछेगा। कवियों की यह दुविधा इस कदर बढ़ गई है कि अब वे कविता लिखने से पहले एक लंबा सांस लेते हैं, जैसे कि कोई बड़ा अपराध करने जा रहे हों।
आज का कवि किसी ज़माने के कवियों की तरह नहीं है, जो बिना किसी डर के लिखते थे। डिजिटल युग में कवियों का डर इस कदर बढ़ गया है कि वह पहले गूगल पर अपनी ही कविता चेक करते हैं कि कहीं इसे किसी और ने तो पहले नहीं चुरा लिया! यह विचार किसी जासूसी फिल्म की तरह लगता है, लेकिन हकीकत में यह आज के कवियों का जीवन है।
अब कवियों की बैठक में ‘प्रकाशन के बजाय, सुरक्षा’ पर चर्चा होती है। पहले कवि अपनी रचनाओं को पुस्तक रूप में संकलित करने की बात करते थे, अब वे यह पूछते हैं, “भाई, कविता छपवाने से पहले कोई सुरक्षित तरीका है?”
इससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में कवि अपनी कविताओं में कानूनी नोटिस शामिल करने लगेंगे:
“यह कविता 100% मौलिक है और अगर इसे चुराने की कोशिश की गई, तो साहित्यिक कोर्ट में मुकदमा दायर किया जाएगा।” शायद कवियों को अपने साथ वकील भी रखना पड़े, जो कविता पढ़ने से पहले कानूनी चेतावनी जारी करे।
अब यह भी मुमकिन है कि साहित्यिक कार्यक्रमों में कवि अपनी कविताओं पर ताले लगा लें और केवल उन्हीं को सुनाएं जो कानूनी अनुबंध पर हस्ताक्षर कर चुके हों। यह तो वही बात हो गई जैसे किसी को पुरानी हिंदी फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाने से पहले यह कह देना कि, “इस फिल्म की कहानी चुराई तो आपको सजा भुगतनी पड़ेगी।”
भविष्य का कवि
आशंका है कि भविष्य में कवि अपनी कविताओं को कागज पर नहीं, बल्कि कूटबद्ध (encrypted) फाइलों में लिखेंगे, जिन्हें केवल चुने हुए लोग ही पढ़ सकेंगे। शायद हमें एक दिन ऐसा भी देखने को मिले जब कवि मंच पर आकर कहे, “आपकी सुविधा के लिए मेरी कविता का पासवर्ड आपके ईमेल में भेज दिया गया है।”
इन्हीं हालातों में एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब कवि कविता लिखना ही बंद कर दें, और कहें, “कविता चोरी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि कविता लिखो ही मत!” फिर तो साहित्यिक सम्मेलनों में केवल चोरी हुई कविताओं का ही पाठ होगा और सुनने वाले हर बार यह सोचते रहेंगे कि “ये असली लेखक कौन है?”
कविता चोरी का यह भय साहित्यिक दुनिया का एक गंभीर व्यंग्य है। जो कवि कभी अपने विचारों को बेखौफ दुनिया के सामने रखते थे, वे अब चोरों से डरे बैठे हैं। शायद समय आ गया है कि कवियों के लिए एक ‘सुरक्षित कविता प्रकाशन समिति’ बनाई जाए, जहाँ कवि अपनी रचनाओं को छुपाकर रख सकें और केवल उस दिन बाहर निकालें जब चोरों का सफाया हो चुका हो।
तब तक, कवियों के लिए यही संदेश है: “लिखते रहो, पर चोरों से सावधान रहो।”