
आज मेरी आत्मा ने ऊपर से बड़ा मजेदार ठहाका लगाया। देखो, आज मेरे बच्चों ने पंडित जी को बुलाया है! बड़ी मेहनत से पकवान बनाए हैं, और आदरपूर्वक परोसे हैं। वही व्यंजन, जिन्हें कभी मेरे सामने सूंघने तक नहीं दिया गया, आज मेरे नाम पर बड़े प्रेम से तैयार किए गए हैं।
और मज़ा तो तब आया जब कौए और कुत्ते भी इस दावत में शामिल हुए। उन्हें भी बड़े चाव से भोजन कराया गया, ठीक वैसे ही जैसे शायद कभी मुझे खिलाना भूल गए थे। ये वही बच्चे हैं, जिन्होंने घर में मेरे लिए थोड़ी सी जगह भी नहीं छोड़ी थी और वृद्धाश्रम भेजने में ज़रा भी संकोच नहीं किया था।
आज देखो! मेरी तस्वीर भगवान के पास सजी-धजी रखी है। वही तस्वीर, जिसे जीते जी धूल में पड़ा छोड़ दिया था। और हां, मेरे लिए पैसा कभी था नहीं, लेकिन आज पंडित जी को पूरे पांच सौ का नोट, मिठाई का डिब्बा और सात नए कपड़ों का जोड़ा थमा दिया है, वो भी ‘मां-बाप का श्राद्ध’ कहकर!
क्या यह सब दिखावा नहीं है? अपने ही दिल को समझाने का एक झूठा नाटक। ये सब मेरे भूत बनकर सताने के डर से किया जा रहा है। पर अरे भाई, इतना तो समझ लो – मां-बाप कभी अपने बच्चों से नाराज़ नहीं होते, और भूत भी नहीं बनते! उन्हें बस थोड़ा प्यार, थोड़ा सम्मान और थोड़ा समय चाहिए, जबकि वे जीवित हों।
असली श्राद्ध वो नहीं जो मरने के बाद किया जाता है। असली श्राद्ध वो है, जब तुम अपने मां-बाप को जीते जी सम्मान दो। न पकवान चाहिए, न धन-दौलत। बस थोड़ा सा वक़्त और थोड़ा सा साथ।
तो, हे बच्चों, समझ लो! मरने के बाद किया गया ये दिखावा किसी काम का नहीं। जीते जी अपने मां-बाप को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाओ। यही असली श्रद्धांजलि है। वरना, ऊपर बैठी आत्माएं तो ठहाका लगाएंगी ही!
पाती की सीख
आज का समय व्यस्तता और प्रतिस्पर्धा का है, लेकिन एक छोटा सा कदम आपके रिश्तों को अनमोल बना सकता है। मां-बाप को सम्मान देकर ही आप सच्ची प्रेरणा और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।