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उज्जैन / श्री महाकालेश्वर भगवान की श्रावण/भाद्रपद माह में निकलने वाली सवारी के क्रम 26 अगस्त 2024 को निकाली जायेगी
श्री महाकालेश्वर भगवान की षष्ठम सोमवार की सवारी में भी मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी डॉ.मोहन यादव की मंशानुरूप जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी की सवारी में जनजातीय कलाकारों का दल भी सहभागिता करेगा।
26 अगस्त को बैतुल का गोण्ड जनजातीय थातिया नृत्य दल श्री मिलाप इवने व श्री अविनाश धुर्वे के नेतृत्व में श्री महाकालेश्वर भगवान की षष्ठम सवारी में पालकी के आगे भजन मंडलियों के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगा।
बैतुल के ग्रामीण क्षेत्रों के कई ग्रामों में इनकी सघनता है। गाँव के पशुओं को चराने के लिए ठाट्या भी इनके साथ ही रहते आए हैं। पारंपरिक रूप से पूरे गाँव के पशुओं को चराना इनकी आजीविका का साधन है। बैतुल का गोण्ड जनजातीय थातिया नृत्य बासुरी द्वारा किया जाता है | ये नृत्य गोवेर्धन एवं लक्ष्मी पूजन की रात्रि से प्रारम्भ किया जाता है| अक्टूबर से नवम्बर तक बैतुल जिले में पूर्वजों की परम्परा का निर्वहन करते हुए यह नृत्य किया जाता है | कहीं-कहीं इन्हें ‘ग्वाल बंसी ठाट्या’ नाम से भी जाना जाता है। इन्हें’ गोंड गायकी’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘गायकी’ शब्द का सामान्य अर्थ है, गाय से सम्बद्ध या गाय की देखभाल करने वाला।
नृत्य, गायन और वाद्यों का वादन होता ही है। हालांकि आधुनिकता का असर सांस्कृतिक प्रतीकों पर भी बहुत गहरे रूप से पड़ रहा है फिर भी बैतूल, खण्डवा के जनजातीय क्षेत्रों में मनाई जाने वाली दीपावली के अवसर पर इस जनजाति की कला के सभी रूप मुखरता से दिखाई देते हैं। शिल्प, नृत्य, गायन, वादन और वाचिक परंपरा का दीपावली पर समेकित प्रदर्शन वैसा ही होता है जैसे वर्षा ऋतु में मोर अपने पूरे पंखों को फैला कर नृत्य करता है |
इनकी वेशभूषा धोती, कुर्ता, पगड़ी, रंग-बिरंगा थुरा, जाकेट एवं कवडी और बैलो की पुछ के बलों से बनी कौडी वाले वस्त्र, पैरों में घुघरु और हाथ में बासुरी लेकर नृत्य किया जाता है |
वादन में ढोल, टिमकी, ताशा, मंजीरा, बासुरी की धुन के माध्यम से नृत्य किया जाता है |