“माधव एक्सप्रेस” भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 7 करोड़ की परियोजना की सौगात देते हुए विपक्ष पर शब्दों से प्रहार किया कि ‘कांग्रेस पार्टी के लिए छत्तीसगढ़ एक एटीएम की तरह है। कोल माफिया, सैंड माफिया, लैंड माफिया, न जाने कैसे-कैसे माफिया यहां फल-फूल रहे हैं। यहां सूबे के मुखिया से लेकर तमाम मंत्रियों और अधिकारियों तक पर घोटाले के गंभीर से गंभीर आरोप लगते रहे हैं। आज छत्तीसगढ़ सरकार, कांग्रेस के करप्शन और कुशासन का मॉडल बन चुकी है। कांग्रेस के कोर-कोर में करप्शन है। करप्शन के बिना कांग्रेस सांस भी नहीं ले सकती है। करप्शन, कांग्रेस की सबसे बड़ी विचारधारा है। जिनके दामन दागदार हैं, वे आज एक साथ आने की कोशिश कर रहे हैं। जो एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसते थे, वे आज साथ आने के बहाने खोजने लगे हैं।’एक बड़ा पंजा दीवार बनकर खड़ा हो गया है’छत्तीसगढ़ के विकास के सामने एक बहुत बड़ा पंजा दीवार बनकर खड़ा हो गया है। ये कांग्रेस का पंजा है, जो आपसे आपका हक छीन रहा है। इस पंजे ने ठान लिया है कि वह छत्तीसगढ़ को लूट-लूट कर बर्बाद कर देगा। गंगा जी की झूठी कसम खाने का पाप कांग्रेस ही कर सकती है। गंगा जी की कसम खाकर इन्होंने एक घोषणा-पत्र जारी किया था और उसमें बड़ी-बड़ी बातें की थी, लेकिन आज उस घोषणा-पत्र की याद दिलाते ही कांग्रेस की याददाश्त ही चली जाती है। छत्तीसगढ़ से 36 वादे जो कांग्रेस ने किए थे, उसमें एक ये था कि राज्य में शराब बंदी की जाएगी। 5 वर्ष बीत गए, लेकिन सच ये है कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में हजारों करोड़ का शराब घोटाला कर दिया है और इसकी पूरी जानकारी अखबारों में भरी पड़ी है। वही दुसरी ओर उन्हीं की सरकार के कार्यकाल में मध्यप्रदेश राज्य के सीधी जिले में आदिवासी शोषण की ख़बर के साथ साक्षरता की कमी के चलते आदिवासी बहुल क्षेत्र ठगी के शिकार की पूर्व में जमीन बेचने के मामले में प्रदेश में पहली बार 3 आईएएस अधिकारीयों के खिलाफ घोटाले को लेकर एक साथ एफआईआर दर्ज कर मामला प्रशासन की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है. उक्त मामले में लोकायुक्त के आदेश पर 3 आईएएस अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई, जिनमें 3 सीनियर IAS अफसरों में मुख्य रूप से ग्वालियर के कमिश्नर दीपक सिंह, आबकारी आयुक्त ओपी श्रीवास्तव और उप सचिव बसंत कुर्रे को आरोपी बनाए गए. मिडिया रिपोर्ट के अनुसार मामला साल 2007 से 2012 के बीच का है तीनों आईएएस जबलपुर में बतौर एडीएम पद तैनात थे, इन्होंने आदिवासी जमीन का फर्जीवाड़ा जबलपुर में किया. वही साल 2007 से 2012 के बीच में अंजाम दिया गया , इन पर आरोप है कि तीनों अफसरों ने कुंडम इलाक में आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति दे दी थी. इसकी जानकारी के बाद लोकायुक्त ने मामले का संज्ञान लिया था. जो की संदिग्ध पाया गया अब लोकायुक्त ने ही तीनों आईएएस अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है. अब माना जा रहा है कि जल्द ही इन बड़े अफसरों के खिलाफ एक्शन भी हो सकता है लेकिन प्रदेश में कितने ही ऐसे मामले अधिकारीयों के खिलाफ़ न जाने के कारण दब जाते है, वही छत्तीसगढ़ की तरह अगर मध्यप्रदेश की बात करे तो भूमाफियाओं का खेल यहां भी एक समान है।