
विरले ही पैदा होते डॉ. शिव शर्मा जैसे व्यक्तित्व
पुण्यतिथि – 22 मई पर विशेष आदरांजलि
अस्सी वर्ष की आयु में आज ही के दिन 22 मई 2019 को डा. शिव शर्मा इस दुनिया से रुखसत कर गए | राष्ट्रीय – अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रख्यात व्यंग्यकार , राजनीतिक विश्लेषक और हास्य व्यंग्य के प्रणेता के रूप में ख्याति प्राप्त डॉ.शिव शर्मा आज भले ही हमारे बीच नही है लेकिन समस्त उज्जैन वासियों की बातों में यादों में वे सदैव हंसते मुस्कुराते रहेंगे जब भी 11 जनवरी (विश्व हास्य दिवस) अन्तर्राष्टीय ठहाका सम्मेलन एवं 1 अप्रेल ( मूर्ख दिवस) टेपा सम्मेलन की तारीख आएगी डॉ. शिव शर्मा हमारे मन मस्तिष्क में जीवित हो जाएंगे।
पूरे चार वर्ष हो गए आदरणीय डॉ. शिव शर्मा जी को इस दुनिया से गए। आज उनकी पुण्यतिथी हैं
और याद आ रही है उनकी कुछ वो बाते जो आपसे साझा कर रहा हूँ।
बात उन दिनों की है जब 8 वें अंतर्राष्ट्रीय ठहाका सम्मेलन 2008 की तैयारियां चल रही थी आयोजन से ठीक चार दिन पूर्व ठहाका में एंकर की प्रमुख भूमिका निर्वहन करने वाले हास्य कवि पंडित ओम व्यास ओम ने यह कह कर ठहाका मचं पर आने से इनकार कर दिया कि जो टीम बनाई गई है उसमे उनकी सहमति नही ली गई उन्होंने एक शर्त रख दी कि वे मंच पर तभी आएंगे जब टीम में उनके हिसाब से फेरबदल किया जाएगा ।
यह बात मुझे चुभ गई और मैने कड़ा निर्णय लेते हुए पंडित जी को टीम से बाहर कर दिया।
अब मेरे सामने संकट पैदा हो गया कि चार दिन बाद ही आयोजन है अब ऐनवक्त पर सूत्रधार की भूमिका किसे सौंपी जाए।
में पहुंच गया शहर के श्रेष्ठ मंच संचालक डॉ.पिलकेन्द्र अरोरा जी के पास उनसे गुहार लगाई की वे 11 जनवरी को ठहाका में संचालन की जिम्मेदारी निभाए लेकिन उन्होंने यह कह कर साफ इंकार कर दिया कि में टेपा सम्मेलन से जुड़ा हूँ और मेरी नैतिकता मुझे इस बात की इजाजत नही देती की में आपके मंच पर आऊं।
अब में और ठहाका की पूरी टीम घोर संकट में पड़ गए कि अब क्या करेंगे ? तब मेरे दिमाग मे विचार आया कि क्यों न डॉ. शिव शर्मा जी से मदद ली जाए और में पहुंच गया ऋषि नगर स्थित टेपा निवास पर ,
में व्यक्तिगत रूप से शर्मा जी से पहले कभी मिला नही था यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी, देखकर ही वह मुझे पहचान गए बोले और ठहाका के राजकुमार कैसे हो मेने उन्हें पूरी व्यथा सुनाई और बताया कि किस तरह पंडित ओम व्यास जी ने शर्त रखी फिर पिलकेन्द्र जी ने नैतिकता की दुहाई देकर ठहाका मंच पर आने से मना कर दिया।
सहज और सरल स्वभाव के धनी आदरणीय सर जी ने मुझे ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत कर तू बहुत नेक काम कर रहा है लोगो को हंसा रहा है तेरा आयोजन बहुत अच्छे तरीके से होगा हम सब मिलकर उसमे मेहनत करेंगे और उन्होंने तुरंत पिलकेन्द्र जी को फोन लगाकर आदेश दिया कि तुझे ठहाका का संचालन करना है में स्वयम और टेपा की पूरी टीम आयोजन स्थल पर मौजूद रहेंगे बस फिर क्या था ठहाका निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हुआ और सर्वाधिक पसंद किया गया। सर ने मुझे समझाया कि कब तक लोगो के हाथ पैर जोड़ता फिरेगा मंच संचालन तू खुद किया कर और तब से इस भूमिका में भी मेने खुद को ढाल लिया
मेरे आग्रह पर सर ने ठहाका में संरक्षक की भूमिका स्वीकार की और उनके मार्गदर्शन में ठहाका मध्यप्रदेश का सर्वाधिक लोकप्रिय आयोजन बन गया।