रब्बानी ने कहा है कि हर नागरिक के मन में परमाणु हथियारों को लेकर सवाल उठना लाजिमी है
इस्लामाबाद । कंगाल हो चुके पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में अब पूरी दुनिया में चर्चाएं तेज हो गई हैं। इन सबके बीच पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के पूर्व सीनेट चेयरमैन और सांसद रजा रब्बानी ने कहा है कि देश के लोगों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि कहीं पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कोई दबाव तो नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकों को यह भी जानना चाहिए कि क्या चीन के साथ रणनीतिक रिश्तों पर कोई खतरा है? पाकिस्तान को इस समय उम्मीद की कोई रोशनी नजर नहीं आ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से जो बेलआउट पैकेज मिलने वाला था, वह भी अटक गया है। अब ऐसे में यह मुल्क संकट से बाहर कैसे निकलेगा, इस पर सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं। रजा रब्बानी ने कहा है कि हर नागरिक के मन में परमाणु हथियारों को लेकर सवाल उठना लाजिमी है। उन्हें यह जानने का भी पूरा हक है कि क्या पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में एक ताकत के तौर पर बड़ा रोल अदा करने को मिलेगा ताकि उसकी सेना अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाए? उनकी मानें तो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को ऐसे तमाम सवालों के जवाब बयान जारी कर देने चाहिए। उनके शब्दों में ये और ऐसे तमाम सवाल हैं जिनके जवाब पीएम शहबाज को सदन में या फिर साझा सत्र के दौरान देने चाहिए। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर पाकिस्तान पूरी तरह से दिवालिया हो गया तो फिर उसके परमाणु हथियारों की वजह से क्षेत्र में खतरा बढ़ सकता है।
इस दौरान उन्होंने आईएमएफ की तरफ से मिलने वाले पैकेज की सख्त जरूरत पर भी बात कही। उन्होंने कहा कि संसद को इस पूरे मुद्दे पर भरोसे में लेना होगा। संसद को यह भी बताना होगा कि चीन को छोड़कर बाकी मित्र देश क्यों पाकिस्तान की मदद के लिए अनिच्छा जाहिर कर रहे हैं। रजा रब्बानी के मुताबिक आईएमएफ के समझौते को साइन कर उसके पैरों में लेट जाना और चीन को छोड़कर बाकी दोस्तों की मदद न मिलना, इन सबके बारे में सरकार को बताना चाहिए। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को ऐसी भूमिका निभाने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो उसके राष्ट्रीय और रणनीतिक हितों के खिलाफ है। रब्बानी के मुताबिक सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और आतंकवाद में इजाफे से जुड़े मसलों पर भी चर्चा करने में पूरी तरह से फेल रही है। उनका कहना था कि चाहे पुरानी पीटीआई की सरकार हो या फिर वर्तमान सरकार, वह सिर्फ संसद से और सविंधान 1973 से किसी भी तरह से छुटकारा पाना चाहती है।