
उज्जैन में इन दिनों एक नया प्रकोप फैल चुका है। यह कोई वायरस नहीं, बल्कि “समाजसेवी बनने की बीमारी” है, जिसका लक्षण है – होर्डिंग लगवाने की अत्यधिक इच्छा और चेहरे के आकार में असमान्य वृद्धि। अब समाजसेवा करने के लिए न किसी ज़रूरतमंद की मदद करनी होती है, न ही किसी बुज़ुर्ग का सहारा बनना पड़ता है। बस एक अच्छा फोटोग्राफर, थोड़ी फोटोशॉपिंग, और होर्डिंग वाला नंबर चाहिए — बाकी समाज खुद ही सेवित हो जाएगा! इन नए समाजसेवियों की खास बात यह है कि इनके समाज सेवा के प्रमाण-पत्र इनकी दीवारों पर टंगे होर्डिंग होते हैं, न कि किसी वृद्धाश्रम, अनाथालय, या गरीब की थाली में।
शहर की गलियों में घूम जाइए — चार चौराहे छोड़िए, अपने मोहल्ले में भी जिन्हें कोई नहीं जानता, वे 20×20 फीट की मुस्कुराती तस्वीर के साथ “लोकप्रिय समाजसेवी” घोषित हो चुके हैं। इनका समाजसेवा का प्रारंभ अपने नाम के आगे “श्रीमान समाजसेवी” लिखवाने से होता है, और समापन जन्मदिन पर 5 होर्डिंग, 3 बधाई संदेश, और 1 मिठाई की पेटी पर होता है।अब यह बात अलग है कि उनके सगे भाई का इलाज अधूरा पड़ा है, बहन की शादी में चुप्पी साधे बैठे थे, और पास-पड़ोस के लोग भी उन्हें “कौन?” कहकर पहचानते हैं। कई तथाकथित समाजसेवी तो ऐसे हैं कि 100 रुपए की समाज की रसीद कटवाने में इतना घबराते हैं, जैसे कोई बड़ा जुर्म करने जा रहे हों। लेकिन फेसबुक पर समाज सेवा करते हुए 4 किलो स्टेटस रोज़ डालते हैं। “आज फलाना समाज के कार्यक्रम में उपस्थित होकर गौरवान्वित हुआ” — अब हकीकत ये है कि उन्होंने सिर्फ स्टेज के पास सेल्फी ली थी और तुरंत निकल लिए।
इनका आदर्श वाक्य है –
“सेल्फी लो, फोटो बढ़ाओ, समाजसेवा कहलाओ।”
कुछ तो इतने परिपक्व हो चुके हैं कि इनके पास “पिछले 5 वर्षों में लगाए गए होर्डिंगों का पोर्टफोलियो” तक है। कोई काम मिल जाए तो ठीक, वरना फोटो के नीचे “समाज का सेवक – जन जन का प्यारा” खुद ही लिख देते हैं।
शहर में ऐसी बाढ़ आई है कि जहाँ पानी नहीं पहुँचा, वहाँ समाजसेवी पहुँच गया है — लेकिन फोटो खिंचवाने के लिए!
बाढ़ राहत के नाम पर 1 रुपए न दान देंगे, लेकिन कैमरे के सामने किसी बाल्टी को पकड़कर फोटो खिंचवाना नहीं भूलेंगे।
उज्जैन अब इन छद्म समाजसेवियों का तीर्थ बन चुका है। जहां हर चौराहे पर एक नया “लोकप्रिय समाजसेवी” अवतरित हो रहा है — जो न समाज को जानता है, न समाज उसे।
आख़िर में समाज को चेतावनी:
“होर्डिंग पर लिखे ‘समाजसेवी’ को देखकर प्रभावित न हों — हो सकता है वो सिर्फ़ ‘सेवा’ शब्द की फ़ोटो कॉपी कर रहा हो!”
