
— डॉ. महेन्द्र यादव की पाती, थोड़ी जज़्बाती
“पहलगाम की वादियों में अब भी गूंज रही होगी वो चीख,
जहां कुछ सवाल थे… और जवाब में गोलियां थीं।”
कभी सोचिए… आप अपने परिवार के साथ घूमने गए हों। बच्चों ने गुलमोहर के फूल थाम रखे हों, पत्नी की आंखों में पहाड़ों की चमक हो, और आप मुस्कुरा रहे हों… कि तभी कोई आए, आपकी हँसी को पहचानने से मना कर दे। आपकी मुस्कुराहट से कहे — ‘पहले अपना धर्म बताओ।’
आप धर्म बताते हैं, और अगली सांस से पहले — आपकी दुनिया चुप हो जाती है।
हां, यही हुआ है पहलगाम में।
26 घरों में हमेशा के लिए मातम पसर गया, 26 घरों का चूल्हा-धुआं बंद हो गया, 26 माओं के माथे का सिंदूर उजड़ गया, और 26 बच्चों ने अपने पिता का आखिरी चेहरा गोलियों में देखा।
बड़े गर्व से कहती है यह धरती — ‘अतिथि देवो भव:।’
पर अब यही धरती, शर्म से आंखें झुका रही है।
किसी ने पूछा — “कलमा पढ़ लो, जान बख्श देंगे।”
एक पति ने कांपती जुबान से कहा — “मुझे नहीं आता…”
…और पत्नी की आंखों के सामने उसका माथा छलनी हो गया।
क्या अब इस देश में जीने के लिए धर्म याद रखना ज़रूरी हो गया है?
क्या अब नाम से पहले जात और मजहब बताना अनिवार्य हो गया है?
ये महज़ हमला नहीं था…
ये इंसानियत की चिता पर हथियारों का नाच था।
ये गोली किसी धर्म पर नहीं, ‘जीवन’ पर चलाई गई थी।
बोलिए ना…
उन सिसकियों का क्या करें जो अस्पताल के दरवाज़े पर अब भी पड़ी हैं?
उस 8 साल की बच्ची को क्या जवाब दें, जो पूछ रही है —
“पापा अब कब आएँगे…?”
उस बेटी हिमांशी का क्या कसूर जिसकी शादी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल से 4 दिन पहले ही हुई है।
मैं पूछता हूँ —
अगर मरने से पहले धर्म पूछा जा रहा है,
तो क्या जीने के लिए भी अब कोई पहचान-पत्र रखना होगा?
क्या पहलगाम की हवा में अब केवल लाशों की गंध बहेगी?
क्या हमारी चुप्पी, आने वाले और नरसंहारों की सीढ़ी बनेगी?
—
मैं डॉ. महेन्द्र यादव, अंतर्राष्ट्रीय ठहाका सम्मेलन की आधारशिला रखने वाला एक कवि,
जिसे हँसी बांटनी थी — पर आज आंखें नम हैं…
मैं नहीं जानता कि मैं मुसलमान हूँ, हिंदू हूँ, या सिर्फ़ एक इंसान…
पर आज, मैं उस 26वीं चीख़ की तरफ से लिख रहा हूँ —
जिसे कोई सुन नहीं पाया।
मेरे देश… इंसान बचा ले।
वरना मज़हब की राख में कहीं इंसानियत का दिल जल जाएगा।
पढ़िए, सोचिए, और चुप मत रहिए…
क्योंकि अगला पहलगाम, आपके घर के पास भी हो सकता है।
– डॉ. महेन्द्र यादव
(हँसी लिखने वाला कवि… आज आंसुओं की पाती लिख रहा है)