
डॉ.महेन्द्र यादव की पाती थोड़ी जज़्बाती
बिनचिंग और सीचुएशनशिप जैसे शब्द आज के रिश्तों में स्थायित्व और स्पष्टता की कमी को दर्शाते हैं।
रिश्ते हमेशा से इंसानी भावनाओं के केंद्र में रहे हैं — कभी स्पष्ट, कभी जटिल, लेकिन आज के युग में वे पहले से कहीं ज़्यादा अस्थायी, उलझे और अनाम हो गए हैं।
“Situationship” और “Binching” जैसे शब्द आज के युवाओं के बीच आम होते जा रहे हैं। लेकिन इनके पीछे छुपा है एक बड़ा भावनात्मक और सामाजिक संकट।
सीचुएशनशिप का अर्थ है — दो लोग एक-दूसरे के बेहद करीब होते हैं, एक-दूसरे की ज़िंदगी में नियमित शामिल होते हैं, पर अपने संबंध को कोई परिभाषा नहीं देना चाहते।
यह ‘न दोस्ती, न प्रेम’ की स्थिति है – जहाँ उम्मीदें होती हैं, लेकिन अधिकार नहीं।
बिनचिंग इससे भी आगे की अवस्था है। इसमें कोई स्पष्ट जुड़ाव नहीं होता, लेकिन भावनात्मक, शारीरिक या सामाजिक स्तर पर साथ बना रहता है — सिर्फ इसलिए क्योंकि “अभी ठीक लग रहा है।” यह एक तरह की अस्थायी और आत्म-केंद्रित संबंध शैली है जिसमें गंभीरता और ज़िम्मेदारी से परहेज़ किया जाता है।
ऐसा क्यों हो रहा है?
डिजिटल युग ने संबंधों को तात्कालिकता में बदल दिया है।
करियर और स्वतंत्रता की होड़ में रिश्तों को सेकेंडरी बना दिया गया है।
Emotional fatigue और Fear of commitment ने लोगों को “बिना नाम वाले रिश्ते” अपनाने को मजबूर किया है।
परिणाम क्या है?
इन रिश्तों से जुड़ा व्यक्ति एक समय बाद खुद को ठगा सा महसूस करता है। न वो किसी रिश्ते में होता है, न ही अकेला होता है।
इससे उत्पन्न होता है —
आत्म-संदेह
असुरक्षा
और भावनात्मक थकावट।
निष्कर्ष:
संबंधों को नाम देना ज़रूरी नहीं, पर उन्हें समझना और निभाना ज़रूरी है। प्यार को ट्रेंड नहीं, विश्वास और ज़िम्मेदारी बनाइए। आधुनिकता के साथ भावनात्मक परिपक्वता भी ज़रूरी है।