
कल्पना की ख़तरनाक आदत
कुछ दिन पहले मुझे एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। जब मैं सभागार पहुँचा, तो मैंने एक कोने में कुछ परिचित अतिथि देखे। मैं मुस्कुराते हुए उनकी ओर बढ़ा और एक-एक करके सबसे हाथ मिलाने लगा।
अजनबियों से भी शिष्टाचारवश हाथ मिलाया, लेकिन तभी एक व्यक्ति ने मेरा हाथ अनदेखा कर दिया। यह देखकर मुझे बहुत अजीब लगा। कुछ सेकंड बाद, मैंने अपना हाथ वापस खींच लिया और मन ही मन सोचने लगा, “यह क्या बेतुकी बात है?” अचानक अपमानित महसूस कर, मैं उस व्यक्ति से नाराज़ हो गया।
मेरे मन में विचार उमड़ने लगे – “आख़िर उसने ऐसा क्यों किया?” सभी ने मेरा अभिवादन स्वीकार किया, फिर इस व्यक्ति ने ऐसा व्यवहार क्यों किया? मैंने तो कुछ गलत भी नहीं किया था! गुस्से में मैंने उसे घूरकर देखा और फिर बाकी लोगों का अभिवादन कर अपनी सीट पर बैठ गया।
लेकिन बैठने के बाद भी मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ। मैं बार-बार उस व्यक्ति की ओर देख रहा था, यह जानने के लिए कि वह अन्य लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
और तभी, मुझे एक चौंकाने वाला एहसास हुआ – वह व्यक्ति दृष्टिहीन था! उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन वह देख नहीं सकता था। जो लोग उससे हाथ मिला रहे थे, वे पहले उसे हल्के से छूते थे और फिर हाथ मिलाते थे।
यह जानकर मेरी शर्मिंदगी कई गुना बढ़ गई। असल में, वह मेरा एक प्रशंसक था, जिसने मेरी कई वार्ताएँ गहराई से सुनी थीं। वह विशेष रूप से मेरी बात सुनने के लिए कार्यक्रम में आया था। जब मुझे यह पता चला, तो मेरी आत्मग्लानि और बढ़ गई। मुझे खुद पर गुस्सा आने लगा।
उस दिन, मैंने अपनी पूरी स्पीच बदल दी और नया विषय चुना –
“कल्पना की ख़तरनाक आदत”
कल्पना ज़हर की तरह होती है
1. हम अनुमान लगाते हैं, सत्यापन नहीं करते
कोई फोन नहीं उठाता, तो हम मान लेते हैं कि वह हमें नज़रअंदाज कर रहा है।
कोई हमें आर्थिक मदद नहीं करता, तो हम उसे कंजूस और स्वार्थी समझ लेते हैं।
कोई हमें कॉल या मैसेज नहीं करता, तो हम सोचते हैं कि उसे हमारी परवाह नहीं है।
लेकिन हम यह कभी नहीं सोचते कि शायद वे किसी समस्या में हों।
2. जीवन की विविधता को समझें
हर व्यक्ति का जीवन अलग होता है।
जिसने आपको पैसे देने का वादा किया था, हो सकता है उसकी खुद की आर्थिक स्थिति खराब हो गई हो।
जिसने फोन नहीं उठाया, हो सकता है वह व्यस्त हो या किसी मुश्किल घड़ी से गुज़र रहा हो।
महत्वपूर्ण सबक
संदेह का लाभ दें: दूसरों के की परेशानी के बारे में सोचे तुरंत निष्कर्ष पर न पहुँचें।
पुष्टि करें, अनुमान नहीं लगाएं: प्रतिक्रिया देने से पहले अपने विचारों की सत्यता जांचें।
नाराज़ होना अपरिपक्वता है: हर छोटी बात पर आहत होना बचकाना व्यवहार है।
निष्कर्ष
कल्पना की आदत कभी-कभी हमें ग़लतफ़हमी और बेवजह की नकारात्मकता में धकेल सकती है। इसलिए, सोचने से पहले सत्यापन करें, नाराज़ होने से पहले स्थिति को समझें, और दूसरों को संदेह का लाभ दें।
जीवन जियो शुद्धि से, काम करो बुद्धि से
क्योंकि जो दिखता है, हमेशा वही सच नहीं होता!