“उज्जैन का बेतरतीब ट्राफिक और समझदार जनता”
उज्जैन, महाकाल की नगरी, जहां धार्मिकता की खुशबू से लेकर व्यावहारिकता की दुर्गंध तक सबकुछ एक ही हवा में घुला मिला है। लेकिन आज मैं आपको बताने जा रहा हूँ, हमारे प्यारे शहर की ऐसी बात, जो शायद किसी भी शहर के लिए गर्व की बात न हो—यहां की बेतरतीब ट्राफिक व्यवस्था और उस पर उज्जैन की समझदार जनता का खास योगदान!
आपको शायद सुनकर हंसी आए, लेकिन हमारे उज्जैन वाले भाई साहबों को ट्राफिक का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान ही है जो इन्हें किसी भी सड़क को अपने घर का आँगन समझने की हिम्मत देता है। बीच सड़क पर गाड़ी रोक कर लंबी-चौड़ी बातों में मशगूल होना तो जैसे यहां की जनता का पसंदीदा शगल है। कहीं पर भी गाड़ी पार्क करना है? कोई दिक्कत नहीं। सड़क पर ही जगह है, खड़ी कर दीजिए!
ट्रेफिक नियम? अरे भाई, वो तो बडे़ शहरों में होते हैं, जहां लोग नियम से चलते हैं। उज्जैन वालों को तो नियमों से उलट जाना अच्छा लगता है। रांग साइड में घुसना हमारे उज्जैनियों के लिए जैसे किसी वीडियो गेम का लेवल पास करने जैसा होता है। और सिग्नल? भला वो क्यों मानें? रेड लाइट देख कर भी यहां के चालक बड़ी आसानी से अपनी गाड़ी निकाल ले जाते हैं, जैसे कोई मजाक हो।
अब अगर आप सोच रहे हैं कि पुलिस वालों से कुछ उम्मीद करनी चाहिए, तो ज़रा रुकिए। हमारी ट्राफिक पुलिस का ट्राफिक से उतना ही लेना-देना है जितना एक मछली का रेगिस्तान से। गांव से भोले-भाले लोगों को पकड़ कर उनसे कमाई करने में माहिर ये पुलिस वाले, जब कभी गलती से किसी रईसजादे की गाड़ी रोक लेते हैं, तो तुरंत किसी नेता का फोन आ जाता है। भाई, यह उज्जैन है—यहां नब्बे नेता, नौ पहलवान और एक जनता का गणित चलता है।
और हमारे प्यारे दुकानदार? उनकी बात ही निराली है। सड़क पर ही अपनी दुकान का विस्तार करना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। इनके ग्राहक भी गाड़ी सड़क पर ही खड़ी कर देते हैं, जैसे वो सड़क उनकी निजी संपत्ति हो। अब इन सबका नतीजा यह होता है कि हर थोड़ी देर में जाम लग जाता है, और बाहर से आने वाले बेचारे परेशान हो जाते हैं। लेकिन हमारे उज्जैन वालों को तो आदत हो गई है, इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अब तो बस यही उम्मीद है कि महाकाल बाबा स्वयं मनुष्य रूप में जन्म लेकर आएं और आइपीएस बनकर इस शहर की यातायात व्यवस्था ठीक करें। तभी शायद इस ट्राफिक मुसीबत से छुटकारा मिल सकेगा।
लेकिन, एक दिलचस्प बात यह है कि इस बेतरतीब ट्राफिक और अव्यवस्था के बावजूद, हम उज्जैनवासी जिंदादिली से जीते हैं। चाहे सड़क पर जाम हो या नियमों की धज्जियां उड़ रही हों, हम अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहते हैं, बिना किसी शिकवे-शिकायत के। शायद, यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है—हमारी समझदारी और हमारे ऊपर का नियंत्रण खो देने की अद्वितीय क्षमता।
तो चलिए, इस बेतरतीब ट्राफिक और समझदार जनता के साथ हम उज्जैन को ऐसा ही रहने दें, क्योंकि भला हमारा उज्जैन इतना ‘समझदार’ न होता, तो क्या होता? आखिर, किसी को तो नियम तोड़ने का हुनर दिखाना ही होगा!