150 से ज्यादा तपस्वियों ने किया एकासन तप
थांदला से(विवेक व्यास,माधव एक्सप्रेस) थंडला जिन शासन गौरव जैनाचार्य पूज्य गुरुदेव श्रीउमेशमुनिजी म सा “अणु” के सुशिष्य गणनायक प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव श्रीजिनेन्द्रमुनिजी म सा की आज्ञानुवर्तिनी विदुषी महासती पूज्या श्रीनिखिलशीलाजी म सा आदि ठाणा-4 चातुर्मास हेतु स्थानीय पौषध भवन स्थानक पर विराजित है। आपके सानिध्य में जप-तप-त्याग सहित कई विभिन्न धार्मिक गतिविधियां गतिमान है।
इसी क्रम में मालव केसरी प्रसिद्ध वक्ता पूज्य गुरुदेव श्रीसौभाग्यमलजी म.सा. का 37वॉ पुण्य स्मृति दिवस एकासन तप त्याग से उनके गुणानुवाद करते हुए उत्साहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर उपस्थित परिषद को संबोधित करते हुए पूज्या महासती श्रीनिखिलशीलाजी म सा ने फरमाया की भगवान महावीर देव इस अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर हुए।आपके शासन में कई आचार्य हुए तो कई विशिष्ट धर्म प्रभावक भी हुए तो कई विशिष्ट श्रावक-श्राविकाओं ने स्व पर का कल्याण किया है।उन्होंने कहा व्यक्ति जन्म से नही अपने कर्म से पहचाना जाता है, जन्मतिथि बीज के समान है और पुण्यतिथि वृक्ष के समान। पुण्यतिथि में उस पुण्यात्मा का सारा जीवन हमारे सामने आ जाता है।पुण्यतिथि पर हम विशेष तप आराधना करते है या धर्म आराधना करने की प्रेरणा देते है वही उन महापुरुषों के सद्गुणों को ग्रहण करने का लक्ष्य भी होना चाहिए।
ऐसे ही महापुरुष का जन्म मलावा की धरती नीमच के छोटे से सरवानिया ग्राम में माता केशरदेवी की कुक्षी से हुआ। जन्म के समय कौन जानता था कि ये इतने बड़े धर्मप्रभावक होंगे।
पिता चौथमलजी एवं माता केशरदेवी ने एक कोहिनूर रूपी हीरे को जन्म दिया था।आपके जन्म के समय आपके पिताजी की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी।जब घर मे बालक का जन्म होता है तो बाजे ढोल आदि बजाए जाते है लेकिन मालव केसरी जी के जन्म के समय ऐसा नही था क्योंकि आपके पिताजी की माली हालत कुछ ठीक नही थी।आपका बचपन बहुत ही संघर्षमय रहा। छोटी सी उम्र में माता-पिता का वियोग हो गया।एक व्यक्ति आपको बहाल-फुसलाकर खाचरोद ग्राम तक ले आया और उसने भी उन्हें वहाँ छोड़ दिया छोटा बालक चौराहे पर खड़ा इधर-उधर देख रहा है तभी श्रेष्ठी श्री मियाचंदजी की नजर बालक पर पड़ी।उन्होंने बालक से पूछा तुम्हारा नाम क्या है तब बालक ने धीरे से कहा “सौभाग्य” और साथ मे कहा मुझे भूख भी लगी है।तब श्रेस्ठि श्री मियाचंदजी बालक की घर ले आये एवं उसका पालन-पोषण पुत्रवत करने लगे।वही साधु-संतों का समागम प्राप्त कर आपने 10 वर्ष की छोटी सी उम्र में संयम ग्रहण किया। आप गर्भ में सामान्य थे लेकिन बाद में आगे चलकर विशिष्ट हो गए।आपका जीवन बूंदी के लड्डू के समान था जैसे लड्डू की हर बूंदी में मिठास होता है वैसे ही आपका जीवन भी जिधर से देखो सद्गुणों से ओतप्रोत था।आपका व्यक्तित्व चुम्बकीय था जो कोई आपके पास आता परम शांति का अनुभव करता था।आपमे कलह मिटाने की भी दक्षता रही हुई थी।श्रमण संघ के निर्माण में आपका अमूल्य योगदान था।आप अपने गुरु की ईश्वर कहकर पुकारते थे।आप हमेशा एकता के पक्षधर रहे।कई संघो को संगठित करने का कार्य भी आपके द्वारा प्रमुख रूप से किया गया। धर्मसभा में महासती पूज्या श्री प्रियशीलाजी म सा ने फरमाया की सामान्य श्रावक के 15 नियमों में जिनधर्म में रुचि होना भी एक नियम है। सभी धर्म अपने को श्रेष्ठ बताते है किन्तु सही गलत की पहचान हमे अपनी बुद्धि से करनी होती है।जिस प्रकार एक व्यापारी अपना खराब माल भी अच्छा बताकर बेचना चाहता है लेकिन ग्राहक को हि उसके अच्छे बुरे की पहचान करनी होती है।इसी प्रकार सभी धर्मो को कसौटी पर कसकर ही उनकी सही पहचान करना चाहिए।अपनी आत्मा से प्रतिकूल आचरण दूसरों के लिए नही करना चाहिए।जैसा व्यवहार हम हमारे लिए चाहते है वही व्यवहार हमे दूसरों के लिए भी करना चाहिए।समस्त जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना ही जिनधर्म का मूल है।दयाधर्म ही जीव को अंगीकार करने योग्य है।आपने मालव केसरीजी के विषय मे फरमाया की आप बचपन मे अनाथ हो गए थे लेकिन बाद में निर्ग्रन्थ प्रवचन की शरण ग्रहण कर कइयों के नाथ हो गए।जन्म के समय आपका दुर्भाग्य रहा हुआ था लेकिन निर्ग्रन्थ प्रवचन की शरण अंगीकार की तो अपना “सौभाग्य” नाम सार्थक किया।आप वाणी के जादूगर थे।जिनवचनो पर आपको दृढ़ श्रद्धा थी इसी श्रद्धा से आप स्वयं तीरे और कई भव्यजनो को तारा।
धर्मसभा में आज महासती पूज्या श्री निखिलशीलाजी म सा के मुखारविंद से श्री गौरव सुजानमलजी शाहजी ने अपनी तपस्या को आगे बढ़ाते हुए 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
तेले की लड़ी में आज श्री मयंक महेशजी व्होरा एवं आयंबिल की लड़ी में श्रीमती इंदु बहन कुवाड का क्रम था।
मालव केसरीजी के पुण्य स्मृति दिवस पर सामूहिक एकासन तप का आयोजन किया गया जिसमें 130 से अधिक आराधकों ने प्रत्याख्यान ग्रहण किये।जिनके सामूहिक एकासन महावीर भवन पर हुए।संघ में कई श्रावक श्राविकाएँ गुप्त तपस्या भी कर रहे है।सामूहिक एकासन करवाने का लाभ श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ थांदला ने लिया।