सृष्टि का भार सौंपने स्वयं बाबा महाकाल पहुंचेंगे हरि के द्वार, साल में एक बार होता है हरिहर मिलन
उन्होंने बताया कि इस मिलन के पहले विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर से एक भव्य सवारी निकाली जाती है, यह सवारी रात 11 बजे श्री महाकालेश्वर मंदिर से प्रारंभ होती है। जो की परंपरागत मार्गों से होती हुई गोपाल मंदिर पहुंचती है, जहां रात 12 बजे हरि और हर का मिलन किया जाता है। क्योंकि यह सवारी वर्ष में एक बार निकल जाती है। इसीलिए इस सवारी को लेकर पूरे मार्ग की आकर्षक साज सजावट की जाती है और सवारी के दौरान यहां पर जमकर आतिशबाजी भी होती है। यह एक ऐतिहासिक क्षण होता है, जिसका साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में भक्तगण यहां पहुंचते हैं।
ऐसा पर्व जिसमें शैव और वैष्णव दोनों संप्रदाय के लोग होते हैं शामिल
अब तक आपने देखा होगा की शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच अलग-अलग मत होने से दोनों ही संप्रदाय के लोग एकजुटता के साथ कोई त्योहार नहीं मानते हैं। लेकिन ऐसा मिलन है, जिसमें से और वैष्णव दोनों ही संप्रदाय के लोग शामिल होते हैं और हरि से हर के मिलन के साक्षी बनते हैं। बताया जाता है कि सिंधिया रियासत के जमाने से हरि और हर के मिलन की परंपरा निभाई जा रही है, जिसका क्रम आज भी अनवरत जारी है।
वैसे भगवान शिव को तुलसीपत्र चढ़ता है, लेकिन यहां चढ़ाई जाती है तुलसी की माला
कहा जाता है भगवान शिव के पूजन में तुलसी पत्र प्रतिबंधित है। लेकिन हरिहर मिलन के वक्त भगवान शिव तुलसी पत्र से बनी माला धारण करते हैं। दोनों भगवानों की पूजा पद्धति को बदला जाता है। हरि हर मिलन के वक्त महाकाल मंदिर के पुजारी द्वारकाधीश की पूजा भगवान महाकाल की पूजा पद्धति से करते हैं और द्वारकाधीश को बिल्व पत्र की माला पहनाई जाती है। शिव पूजन के मंत्रों का वाचन किया जाता है। इसके बाद जब भगवान महाकाल का पूजन किया जाता है, तब गोपाल मंदिर के पुजारी बाबा महाकाल को तुलसी पत्रों की माला पहनाकर द्वारकाधीश की पूजन के वक्त पढ़े जाने वाले पवमान सूक्त का पाठ करते हैं।