निप्र रतलाम मध्यप्रदेश शासन की शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था को देखकर लगता है सत्ता ही नहीं विपक्ष भी प्रदेश में शिक्षा को भविष्य का खतरा समझते है, शायद इसीलिए भारत की आज़ादी के 76 वर्ष बीत जाने पर भी मध्यप्रदेश जैसे राज्य में भी शिक्षा को लेकर कोई बदलाव नहीं आया, आज युवा डिजिटल भारत में शिक्षा स्कूलों तक शिक्षकों की कमी के चलते ऑनलाइन होकर हवा हो गई है, वर्तमान सरकार शिक्षा व्यवस्था और शिक्षक की कमी पर बात नहीं करना चाहती जिससे प्रदेश में शिक्षा की स्थिति वर्तमान ज्ञान कौशल विकास से बाहर हैं,अगर शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की ज्योत प्रज्वलित करने वाली भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले व शिक्षा समाज के अग्रणी महात्मा ज्योतिबा फुले आज वर्तमान परिस्थितियों में होते तो वे भी अतिथि शिक्षकों को घर घर जाकर विद्यार्थियों के भविष्य को संवारने का कहते और शिक्षा क्षेत्र बदलाव के लिए हुंकार भरते, विगत कई वर्षों से प्रदेश शिक्षा व्यवस्था में जो बदलाव आया है उसमे न सिर्फ बेरोजगार युवाओं की भीड़ तैयार हो रही हैं ,साथ ही ज्ञान न होने से सामाजिक भेदभाव और आर्थिक रूप से खुद को असहज होकर आत्मनिर्भर नही बना पाने वाली कमजोर युवा नीव भी समस्या बनकर उभर रही है, पूर्व में आए 10वी व 12 के रिजल्ट के गुणवत्ता हीन प्रदर्शन के बाद भी शासन सिर्फ चुनावी रणनीति बनाने में व्यस्थ है आगामी चुनाव को लेकर बेरोजगार युवाओं को पार्टी कार्यकर्ता बना कर साथ घुमा रही है, प्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग पर ध्यान नहीं दे पा रही, जिससे ना अब तक शिक्षकों की व्यवस्था दूरस्थ हो पाई हैं ना सामान्य व्यवस्थाओं की, प्रदेश के मुख्य रतलाम जिले में सीएम राइस स्कूल के ड्रेस कोड और बसों के टेंडरों तक कोई प्रतिक्रिया अब तक न हो सकी जैसा की स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बताया गया रतलाम जिले के जिला संयुक्त अतिथि शिक्षक संघ अध्यक्ष कृष्ण कन्हैया सैनी द्वारा बताया गया की शासन अतिथि शिक्षकों के हित में कोई कार्य नहीं कर रही वर्तमान में प्रदेश अतिथि शिक्षक अभी चार माह अप्रैल से जुलाई हो गया बेरोजगार बैठे हैं भरण पोषण के लिए वेतन भी अब तक नहीं दिया गया है रोजगार की तलाश में शिक्षकों की स्थिति बेहद ख़राब है अतिथि शिक्षक आगमी शिक्षा विभाग के आदेश का इंतजार कर रहे हैं कब स्कूल वापसी हो,12 से 13 वर्षों से लगातार सेवा के बाद भी नियमितिकरण पर ध्यान नहीं जबकि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, प्रदेश के दूरदराज ग्रामीण इलाकों में अतिथि शिक्षक कम वेतन मान पर कार्य कर युवा भविष्य के लिए अपने अधिकारों का शोषण होता देख रहें हैं, कितनी बार आवेदन प्रेषित किए शासन के जनप्रतिनिधियों को प्रदेश मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन प्रेषित किया की वर्ष वार बोनस अंक के साथ अतिथि शिक्षकों को नियमित करने की नीति बनाए उनके अधिकारों का हनन न करें, लेकिन कोई प्रतिक्रिया शासन स्तर से नहीं हो पा रही वही जब ग्रामीण युवा व पालकों से शिक्षा के संबंध में चर्चा की गई तो ग्रामीणों ने बताया कि गरीबी के कारण मजदूरी मजबूरी है भूखे पेट को रोटी की आस है बच्चे स्कूल तो जाते है लेकिन शिक्षकों की कमी से वे वापस घर आ जाते हैं, चुनाव आते ही सत्ता विपक्ष के नेता शासकीय योजनाओं को बताने आ रहे हैं वो भी कुछ समय बाद आना बन्द हो जाएंगे, सीएम राइज से लेकर कई स्कूलों में गणित, अंग्रेजी और अन्य मुख्य विषयों में शिक्षकों की कमी है लेकिन शिक्षा की बात कोई नहीं करता सब चुप्पी साधे बैठे हैं।