
पीएम मोदी की वर्चुअल उपस्थिति में सोमनाथ में सौराष्ट्र-तमिल संगम का समापन समारोह
अहमदाबाद | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को सोमनाथ में सौराष्ट्र-तमिल संगम के समापन समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि सौराष्ट्र तमिल संगम सरदार पटेल और सुब्रमणयम भारती के ‘राष्ट्र प्रथम’ के संकल्प का संगम है। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना के साथ आयोजित सौराष्ट्र-तमिल संगम के समापन समारोह में वर्चुअल तरीके से उपस्थित पीएम मोदी ने सर्वप्रथम तमिल भाषा में संबोधन कर तमिल बंधुओं का अभिवादन किया, जिसकी प्रतिक्रिया में संगम में पहुंचे तमिल बंधुओं ने हर्ष के साथ प्रधानमंत्री का स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने सोमनाथ में आज सौराष्ट्र-तमिल संगम में उपस्थित हजारों सौराष्ट्रियन तमिलों तथा सौराष्ट्र के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि अतिथियों का स्वागत करना एक विशेष अनुभव है, लेकिन दशकों बाद अपनी पैतृक भूमि में वापस लौटने का अनुभव और आनंद अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि सौराष्ट्र के लोगों ने तमिलनाडु के मित्रों के लिए रेड कार्पेट बिछाई है, जो उसी उत्साह के साथ राज्य की यात्रा पर हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने 2010 में मदुरै में सौराष्ट्र के 50,000 से अधिक लोगों के साथ सौराष्ट्र-तमिल संगम कार्यक्रम का आयोजन किया था। प्रधानमंत्री ने सौराष्ट्र पहुंचे तमिलनाडु के अतिथियों के समान स्नेह और उत्साह का उल्लेख किया। उन्होंने तमिलनाडु के अतिथियों के गुजरात प्रवास और केवड़िया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के दर्शन करने का जिक्र करते हुए कहा कि सौराष्ट्र में भूतकाल की अनमोल स्मृतियों, वर्तमान के प्रति अपनत्व और अनुभव तथा भविष्य के लिए संकल्प और प्रेरणाओं को तमिल संगम में देखा जा सकता है। उन्होंने आज के इस आयोजन के लिए सौराष्ट्र एवं तमिलनाडु के सभी लोगों बधाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि भारत की आजादी के अमृत काल में हम सौराष्ट्र-तमिल संगम जैसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रमों के गवाह हैं, जो न केवल तमिलनाडु और सौराष्ट्र का संगम है, बल्कि देवी मीनाक्षी के रूप में शक्ति की उपासना का और देवी पार्वती का त्योहार भी है। इसके अलावा, यह संगम भगवान सोमनाथ और भगवान रामनाथ के रूप में शिव की आत्मा का त्योहार है। इसी तरह, यह सुंदरेश्वर और नागेश्वर की भूमि का संगम है। यह श्री कृष्ण और श्री रंगनाथ का, नर्मदा और वागई, डांडिया और कोलायट्टम का संगम है और द्वारका एवं पुरी जैसी पवित्र परंपरा व सांस्कृतिक धरोहर का भी संगम है। उन्होंने आगे कहा कि हमें इस धरोहर के साथ राष्ट्र निर्माण के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विविधता को विशिष्टता के रूप में देखता है। उन्होंने कहा कि हम देश भर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों, कलाओं और विधाओं का उत्सव मनाते हैं। भारत की आस्था और आध्यात्मिकता में विविधता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह विविधता हमारे संबंधों और सहयोग को मजबूत बनाती है। उन्होंने कहा कि जब विभिन्न धाराएं एक साथ आती हैं, तब एक संगम सृजित होता है। भारत सदियों से कुंभ जैसी परंपरा में नदियों के संगम से लेकर विचारों के संगम की परंपराओं को पोषित करता आया है। यह संगम की शक्ति है जिसे सौराष्ट्र-तमिल संगम आज एक नए स्वरूप में आगे ले जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल साहेब के आशीर्वाद से ऐसे महान उत्सवों के रूप में देश की एकता आकार ले रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के स्वप्न की परिपूर्णता है, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का सपना देखा था। पीएम मोदी ने विरासत पर गर्व के ‘पंच प्राण’ को याद करते हुए कहा कि, “अपनी विरासत का गर्व तब बढ़ेगा, जब हम उसे जानेंगे, गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर स्वयं को जानने का प्रयास करेंगे।” उन्होंने कहा कि काशी-तमिल संगम और सौराष्ट्र-तमिल संगम जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम इस दिशा में प्रभावी अभियान बन रहे हैं। उन्होंने गुजरात और तमिलनाडु के बीच सदियों पुराने संबंधों को उजागर करते हुए कहा कि पौराणिक काल से इन दोनों राज्यों के बीच गहरा संबंध रहा है। सौराष्ट्र और तमिलनाडु का यह सांस्कृतिक मेल ऐसा प्रवाह है जो हजारों वर्षों से गतिशील है। प्रधानमंत्री ने 2047 के लक्ष्य, गुलामी और उसके बाद सात दशकों की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए विचलित करने वाली और विनाशकारी ताकतों के खिलाफ आगाह किया। उन्होंने कहा कि भारत के पास सबसे मुश्किल हालात में भी कुछ नया करने की शक्ति है और सौराष्ट्र और तमिलनाडु का साझा इतिहास हमें यह भरोसा देता है।
मोदी ने सोमनाथ पर हुए हमलों और उसके चलते तमिलनाडु में पलायन को याद करते हुए कहा कि देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले लोग कभी भी नई भाषा, नए लोग और नए वातावरण की चिंता नहीं करते। उन्होंने दोहराया कि सौराष्ट्र से बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी आस्था और पहचान को बचाने के लिए तमिलनाडु में पलायन किया था और तमिलनाडु के लोगों ने खुले दिल से उनका स्वागत किया था, और उन्हें नए जीवन के लिए सभी तरह की सुविधाएं प्रदान की थीं। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का इससे बड़ा और बुलंद उदाहरण और क्या हो सकता है? उन्होंने महान संत तिरुवल्लवर का स्मरण करते हुए कहा कि सुख, समृद्धि और भाग्य उन लोगों के साथ रहता है, जो अपने घर में दूसरे लोगों का उत्साह के साथ स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें संघर्षों को नहीं बल्कि संगम और समागमों को आगे ले जाना है। हम मतभेद नहीं खोजना चाहते, हम भावनात्मक रूप से जुड़ना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के लोगों का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन्होंने सौराष्ट्र के लोगों का तमिलनाडु में बसने के लिए स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि तमिल संस्कृति को अपनाने वाले लोगों ने भारत की उस अमर परंपरा को दर्शाया है जो सभी को साथ लेकर समावेश के साथ आगे बढ़ती है, साथ ही सौराष्ट्र की भाषा, खान-पान और रीत-रिवाजों को भी याद रखा है। प्रधानमंत्री ने खुशी व्यक्त की कि हमारे पूर्वजों के योगदान को कर्तव्य भाव के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है। संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने लोगों से यह अनुरोध किया कि वे स्थानीय स्तर पर देश के विभिन्न हिस्सों से लोगों को आमंत्रित करें। उन्होंने विश्वास जताया कि सौराष्ट्र-तमिल संगम इस दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साबित होगा।