नई दिल्ली, 17 नवम्बर। प्रैस काउंसिल ऑफ़ इंडिया (पी.सी.आई.) ने मंगलवार को इस बात के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को झाड़ लगाई कि उन्होंने जनवरी 2020, अर्थात् पिछले करीब तीन साल से अपने अनुकूल खबरें प्रकाशित नहीं करने के कारण राज्य के प्रमुख हिन्दी दैनिक राष्ट्रदूत को राज्य सरकार के विज्ञापन देना बंद कर रखा है। पी.सी.आई. ने प्रथम दृष्टया उन्हें विज्ञापन जारी किये जाने के मामले में इस समाचार पत्र के प्रति भेदभाव बरतने का दोषी ठहराया।
प्रैस काउंसिल के इस ऐतिहासिक फैसले से अन्य ऐसे बहुत से अखबारों को सरकार के दमन के खिलाफ़ संघर्ष में मदद मिलेगी, जो, यदि सरकार की राजनैतिक सोच का अनुसरण नहीं करते हैं तो उन्हें दबाने के लिए उनके विज्ञापनों में भारी कटौती कर दी जाती है, इस प्रकार कई अखबार तो बंद होने को मजबूर कर दिए जाते हैं।
पी.सी.आई. ने राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा 16 दिसम्बर, 2019 को जयपुर की एक प्रैस कॉन्प्रेस में दिये गये इस विवादास्पद बयान पर कडी नाराजगी व्यक्त की कि केवल उन्हीं अखबारों को सरकारी विज्ञापन मिलेंगे, जो सरकारी स्कीमों का प्रचार-प्रसार पूरे मनोयोग के साथ करेंगे।
पी.सी.आई. ने इसका स्वतः संज्ञान लेते हुये, राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर दिया तथा कहा कि, वह अशोक गहलोत की इस अनुचित टिप्पणी का स्पष्टीकरण दे। पी.सी.आई. ने मंगलवार को एक अंदरूनी जाँच रिपोर्ट को भी स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया यह बयान कि, विज्ञापन उन्हीं समाचार पत्रों को जारी किये जायेंगे, जो सरकारी स्कीमों का प्रचार-प्रसार करेंगे, एक ऐसा कदम है जिससे जनता के हित तथा उसके लिये महत्वपूर्ण समाचारों का प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार रूक जाने की संभावना है। अगर ऐसे बयानों पर अमल होता है तो इससे उन अखबारों की आर्थिक जीवन क्षमता पर प्रतिकूल असर पडने की संभावना है, जिन्हें संभवतया राजनैतिक कारणों से विज्ञापन नहीं दिये जायेंगे, तथा इसके चलते, जनता के हित तथा उसके लिये महत्वपूर्ण समाचारों के प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार करने की अखबरों की क्षमता पंगु हो जायेगी।
राष्ट्रदूत राजस्थान का तीसरा सर्वाधिक सर्कुलेशन वाला दैनिक है जिसके 7 संस्करण प्रकाशित होते हैं, लेकिन सरकारी विभागों, बोर्डों तथा निगमों द्वारा इसे दिये गए विज्ञापनों ने, विज्ञापनों से होने वाली आय के लिहाज से, इसे नौवे स्थान पर उतार दिया है। इस अखबार द्वारा पेश किये गये तथ्यात्मक आँकडे दर्शाते हैं कि, इसे वर्ष 2020 के प्रथम 10 महीनों तथा वर्ष 2022 के प्रथम सात महीनों में राज्य के डायरैक्टोरेट ऑफ इनफार्मेशन एंड पब्लिक रिलेशन (डी.आई.पी.आर.) से शून्य विज्ञापन प्राप्त हुये, अर्थात् कोई विज्ञापन प्राप्त नहीं हुआ। सन् 2021में भी, जब पी.सी.आई. ने भेदभाव बरतने के संबंध में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया, तब कहीं जाकर इसे करीब 10 प्रतिशत जैसी नगण्य राशि के ही विज्ञापन जारी किये गये।
जाँच रिपोर्ट में, भेदभाव पूर्ण तरीके तथा राज्य सरकार की मॉडल एडवरटिजमैंट पॉलिसी गाइड, 2014 के उल्लंघन को दर्शाने वाले बयान के लिये मुख्यमंत्री पर प्रहार किया गया है। पी.सी.आई. ने राज्य सरकार के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह मामला प्रैस काउंसिल के अधिकार क्षेत्र की परिधि में नहीं है तथा इसलिये इसे राज्य सरकार को कोई भी निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इसका अधिकार क्षेत्र केवल समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसियों तक सीमित है।
पी.सी.आई. इस अखबार की इस बात से सहमत थी कि, राज्य सरकार ने क्षेत्राधिकार के मुद्दे को जाँच रोकने के उद्देश्य से उठाया है, जबकि संसद के एक अधिनियम के जरिये स्थापित पी.सी.आई. के उद्देश्य में साप* तौर पर कहा गया है कि, इसका उद्देश्य भारत में प्रैस की स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करना तथा प्रैस के स्तर का सुधार करना है। पी.सी.आई. एक्ट, 1978 की धारा 13(1) इसी सिद्धांत को साकार करती है तथा धारा 13(2) आगे पुनः कहती है कि, प्रैस काउन्सिल का मुख्य काम समाचार एजेंसियों तथा समाचार पत्रों की, उनकी स्वतंत्रता बनाये रखने के मामले में, मदद करना है।
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