नईदिल्ली(माधव एक्सप्रेस/मनमीत सिंह)
मोदी और अडानी वर्षों से राहुल गांधी के निशाने पर हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में उन्होंने खासतौर पर इन दोनों पर फोकस किया था. ये सिलसिला आज भी जारी है. ऐसे में किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री के मुख से अगर मोदी या अडानी की तारीफ के सुर फूटे तो उसके क्या मायने निकाले जाएंगे?
अशोक गहलोत ने कांग्रेस नेतृत्व को विकट स्थिति में फंसा दिया है. पार्टी चाहकर भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से उनकी छुट्टी नहीं कर पा रही है. कहने को गहलोत सोनिया गांधी से मिलकर माफी भी मांग चुके हैं. इस माफी की जानकारी भी खुद गहलौत ने ही सार्वजनिक की थी. लेकिन क्या उनकी माफी सिर्फ दिखावा थी और असलियत में वे झुकने को तैयार नहीं हैं? पहले गौतम अडानी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करके उन्होंने गांधी परिवार और अपनी पार्टी को परेशान कर दिया है. धुर विरोधियों की गहलोत द्वारा तारीफ़ का आखिर मकसद क्या है?
अशोक गहलोत ने कांग्रेस नेतृत्व को विकट स्थिति में फंसा दिया है. पार्टी चाहकर भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से उनकी छुट्टी नहीं कर पा रही है. कहने को गहलोत सोनिया गांधी से मिलकर माफी भी मांग चुके हैं. इस माफी की जानकारी भी खुद गहलौत ने ही सार्वजनिक की थी. लेकिन क्या उनकी माफी सिर्फ दिखावा थी और असलियत में वे झुकने को तैयार नहीं हैं? पहले गौतम अडानी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करके उन्होंने गांधी परिवार और अपनी पार्टी को परेशान कर दिया है. धुर विरोधियों की गहलोत द्वारा तारीफ़ का आखिर मकसद क्या है?
मोदी और अडानी वर्षों से राहुल गांधी के निशाने पर हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में उन्होंने खासतौर पर इन दोनों पर फोकस किया था. ये सिलसिला आज भी जारी है. ऐसे में किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री के मुख से अगर मोदी या अडानी की तारीफ के सुर फूटे तो उसके क्या मायने निकाले जाएंगे? 25 सितंबर के पहले तक अशोक गहलोत की गिनती गांधी परिवार के बेहद भरोसेमंद लोगों में थीं. उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की भी तैयारी थी. लेकिन इस तारीख को जयपुर में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर बुलाई गई पार्टी के विधायक दल की बैठक का गहलोत समर्थकों ने बहिष्कार करके अपने बागी तेवर दिखा दिए थे. इन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे भी सौंपे थे. सीधे तौर पर यह केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती थी. लेकिन चतुर गहलोत ने आगे सीधे टकराव को टाला. माफी मांग कर फौरी संघर्ष स्थगित किया. पर यह आत्मसमर्पण नहीं था.
सोनिया से माफी और अडानी की तारीफ
अशोक गहलोत ने 29 सितंबर को सोनिया गांधी से भेंट कर केंद्रीय नेतृत्व की मंशा के अनुकूल जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक न हो पाने के लिए माफी मांगी थी. समझा गया कि आगे राजस्थान में वही होगा जो पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चाहेगा. लेकिन सिर्फ आठ दिन बाद सात अक्टूबर को जयपुर की बिजनेस समिट में गहलौत , गौतम भाई की प्रशंसा कर रहे थे. ये गौतम भाई वही अडानी हैं , जिनकी मोदी से निकटता का जिक्र करते हुए राहुल गांधी दोनों पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ते. समिट में गहलोत ने गौतम अडानी की कारोबारी काबिलियत की तारीफ की थी , तो दूसरी तरफ अडानी ने अगले पांच – सात साल में राजस्थान में पैंसठ हजार करोड़ के निवेश का वादा किया. अडानी की तारीफ की खबरों से सजी गहलोत और अडानी की मुस्कुराती तस्वीरों ने भाजपा को खिलखिलाने का मौका दिया तो कांग्रेसियों को बगलें झांकने के लिए मजबूर किया था. अपनी पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी ने यह कहकर बचाव का रास्ता निकाला कि कोई भी मुख्यमंत्री अपने राज्य में इतने बड़े निवेश के प्रस्तावों का स्वागत करेगा. साथ में जोड़ दिया था कि अगर राजस्थान सरकार अडानी को कोई बेजा फायदा पहुंचाते दिखेगी तो वे इसका विरोध करेंगे.
मोदी के प्रति राहुल की कटुता जगजाहिर
गहलोत यहीं नहीं रुके. एक नवंबर को मानगढ़ धाम के कार्यक्रम में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी प्रशंसा कर डाली. उधर मोदी ने गहलोत से अपने मुख्यमंत्री रहने के समय से चले आ रहे संबंधों की याद दिलाकर रिश्तों की मिठास बढ़ाई. मोदी ने मुख्यमंत्री के तौर पर गहलोत की वरिष्ठता का हवाला दिया. गहलौत ने मुस्करा कर आभार जताया. मोदी के प्रति राहुल कितने कटु हैं , ये जगजाहिर है. खुद मोदी भी गांधी परिवार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते. मोदी की विदेश यात्राओं और इन यात्राओं की उपलब्धियों को कांग्रेस पार्टी लगातार नकारती रही है. लेकिन प्रधानमंत्री, कुछ केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा शासित राज्यों मध्यप्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्रियों के साथ मंच साझा करते हुए गहलोत आखिर मोदी के प्रति इतने उदार क्यों थे ?
कांग्रेस की नजर में देश का लोकतंत्र खतरे में
कश्मीर से कन्याकुमारी की 3,570 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा के पग – पग पर राहुल गांधी देश के लोकतंत्र को खतरे में बता रहे हैं. उन्हें देश को जगाने और जोड़ने के लिए निकलना पड़ता है. क्यों ? क्योंकि वे और उनकी पार्टी मानती है कि मोदी सरकार विभाजनकारी ताकतों को बढ़ावा दे रही है. दूसरी ओर क्या गहलोत की सोच अपनी पार्टी से अलग है ? उनका भाषण तो कुछ ऐसा ही बताता है. मोदी की तारीफ में मानगढ़ के कार्यक्रम में गहलोत ने कहा , ” विदेशों में पी. एम. मोदी को खूब सम्मान मिलता है और वह इसलिए क्योंकि वे जिस देश के प्रधानमंत्री हैं, वह देश महात्मा गांधी का है और वह देश जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत और गहरी हैं और सत्तर साल बाद भी वहां लोकतंत्र जिंदा है. दूसरे देशों के लोग ये सोचकर गर्व करते हैं कि ऐसे देश के प्रधानमंत्री हमारे देश में आ रहे हैं. ”
पहले अडानी और अब मोदी की तारीफ ने किया कांग्रेस को असहज
सत्ता दल और विपक्ष के बीच खींचतान या आरोप – प्रत्यारोप लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है. लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद से मोदी और गांधी परिवार के बीच रिश्ते सहज और सामान्य नहीं रहे हैं. मोदी पर हमले के लिए राहुल गांधी देश के दो बड़े उद्योगपतियों अडानी और अंबानी के नाम का खूब इस्तेमाल करते हैं. उन अडानी के प्रति उदार होकर गहलोत ने क्या संदेश दिया ?…और अब उससे भी आगे बढ़कर मोदी की तारीफ करके गहलोत ने पार्टी को असहज स्थिति में डाल दिया है. इसकी टाइमिंग और जगह और चौंकाने वाली है. गुजरात चुनावों की तारीख की कभी भी घोषणा हो सकती है. खुद गहलौत गुजरात चुनाव के लिए पार्टी के वरिष्ठ पर्यवेक्षक हैं. जिस स्थान पर कार्यक्रम हुआ , वह गुजरात का सीमावर्ती है . मोदी के गुजरात के दौरे चल रहे हैं. उस मौके पर प्रतिद्वंदी खेमे के एक वरिष्ठ नेता की प्रशंसा खुद मोदी या भाजपा को क्यों नहीं भाएगी ?