भोपाल । राष्ट्र-ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर ने अपनी जान की परवाह न करते हुए तिरंगे की शान को बनाये रखा था।
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य का एक छोटा सा ग्राम है ‘कडवी शिवापूर’। मात्र 1500 लोगों की आबादी वाला यह ग्राम बैलगाँव जिले की मुरगुड तहसील में आता है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के नायक केवल शहरी ही नहीं,निपट ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र के शहीदों / क्रान्तिकारियों / स्वतन्त्रता सेनानियों ने आजादी-लता को अपने रक्त से सींचा है’। शहीद साताप्पा का जन्म इसी कडवी शिवापुर में एक सामान्य जैन किसान परिवार में 1914 में हुआ। उनके पिता का नाम भरमाया था।
साताप्पा मात्र 16 वर्ष का थे, तभी सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ। इस आन्दोलन में जगह-जगह स्वयं सेवक संघ बनाये जा रहे थे। बालक साताप्पा ने भी अपना नाम मुरगुड के एक दल में लिखा दिया। यहीं से शुरू हुई क्रान्तिकारी यात्रा, जिसने 1942 में देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पण के बाद विराम मिला।
पास-पड़ौस के ग्रामों में जन-जागरण का सन्देश पहुँचाने का काम साताप्पा को सदैव सौंपा जाता रहा। अपने गाँव कडवी शिवापूर के लोगों को तैयार कर उन्होंने एक ‘स्वयं सेवक पंथ’ बना लिया। यह पंथ रोज कोई न कोई कार्यक्रम करता था। रोज रात्रि में बैठकर कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जाती थी। सरकारी अधिकारियों को इसकी खबर लगना स्वाभाविक था। साताप्पा को अनेक बार अनेक तरह की धमकियां दी गई, तरह-तरह से डराया गया, पर वे डरे नहीं। 1940 में वे दो बार जेल में बन्द कर दिये गये, पर उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई, अपितु दिन-प्रतिदिन उनकी देश-प्रेम की भावना दृढ़ होती गई।
12 अगस्त 1942 को गाँव के लोगों ने साताप्पा के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला। ग्राम की स्वतन्त्रता, प्रदेश की स्वतन्त्रता, देश की स्वतन्त्रता और स्वयं हमारी स्वतन्त्रता के नारे लगाते हुआ जुलूस ग्राम-पंचायत पहुँच कर एक सभा का रूप ले लिया। सभा के अन्त में ‘ग्राम-स्वातन्त्र्य’ की घोषणा की गई। ग्राम पंचायत के ऊपर तिरंगा ध्वज फहरा दिया गया। ग्राम पंचायत में जितने भी दस्तावेज थे उन पर कब्जा कर लिया गया और वहाँ नियुक्त सरकारी कारिन्दों को पंचायत छोड़ने पर विवश कर दिया।
सरकारी कर्मचारियों ने मुरगुड जाकर घटना की सारी जानकारी पुलिस-प्रशासन को दी। 15 अगस्त 1942 को पुलिस-प्रशासन ने लगभग 50 बन्दूकधारी और 10-15 लाठीधारी पुलिसवालों का दल शिवापूर भेजा। इधर 50-60 युवकों की टोली गाँव में साताप्पा के नेतृत्व में प्रभात फेरी निकाल रही थी। गीत गाते और नारे लगाते युवकों का दल शान्तिपूर्वक ग्राम पंचायत की ओर चला जा रहा था। दल के आगे साताप्पा राष्ट्रीय ध्वज लेकर चल रहे थे।
बन्दूकधारी पुलिस दल ने युवकों को घेर लिया। एक पुलिस अधिकारी गरजा ‘तुम्हारा झण्डा नीचे करो नहीं तो नाहक गोली खाओगे।’ पर साताप्पा झुके नहीं, उन्होंने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा ‘चाहे जान भले ही चली जावे, झण्डा नीचा नहीं करेंगे।
अंग्रेज अधिकारी इस उत्तर से चिढ़ गया। उसने मजिस्ट्रेट का हुक्म दिखाया और गरज कर कहा
“फिर कहता हूँ, नाहक मारे जाओगे, झण्डा नीचे करो।’
वीर साताप्पा ने कड़ककर प्रत्युत्तर दिया ‘प्राण गेलातरी बेहेत्तर, पण झेंडा खाली घेणार नाही, घेऊ देणार नाहीं।’ इधर सारे बुवक गर्जना करने लगे “तिरंगी झेंड्याचा विजय असो।।
स्वतंत्र भारताचा विजय असो।।”
यह सुनकर अफसर आग-बबूला हो गया। साताप्पा ने ध्वज को अपने से अलग नहीं किया, न ही नीचे की ओर झुकाया। बौखला कर अंग्रेज अफसर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। धाय…..घाय….दो तीन गोलियां चलों, जो आगे खड़े साताप्पा को लगीं। उनकी छाती से रक्त की धार फूट पड़ी और मुंह से निकला ‘वन्दे मातरम्’।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन साताप्या नीचे गिर पड़े। बालाप्पा आडिन, गुंडाप्पा पटगुंदी, सावंत जोडही, रुद्राप्या मंगली, गंगाप्पा अरबल्ली, महादेव टोपण्णावर आदि अनेक युवक गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेज अफसर ने ग्राम पंचायत पर कब्जा कर लिया।
खून से लथपथ साताप्पा को घर लाया गया। पर उनकी शहादत हो चुकी थी। मरकर वह अमर हो गए।