मुंगावली/माधव एक्सप्रेस
(शंकर सिंह राजपूत)
मुंगावली – मूर्धन्य पत्रकार अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी की 91वी पुण्यतिथि के अवसर पर नगर के पत्रकारजनों एवं नगर के गणमान्य नागरिकों के द्वारा सुबह 11 बजे विद्यार्थी चौराहे पर पहुँचकर विद्यार्थी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता जगत का एक ऐसा नाम जिसकी लेखनी से ब्रिटिश सरकार डरती थी आज ही के दिन कानपुर दंगों में आम लोगों को बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान की परवाह भी नहीं की और दंगाइयों द्वारा मार दिए गए मुंगावली गणेष शंकर विद्यार्थी की षिक्षा स्थली के साथ कर्मभूमि रही है उनके पिता उस समय की ग्वालियर रियासत के मुंगावली मंे स्थित ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे। यहीं गणेंष शंकर विद्यार्थी का बाल्यकाल बीता तथा शिक्षा-दीक्षा हुई। इसलिए मुंगावली के लोगो का विद्यार्थी जी से अलग ही लगाव है उनकी पुण्यतिथि पर माल्यार्पण किया गया इस मौके पर नगर सहित क्षैत्र के पत्रकार एवं कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।गरीबी की वजह से छोड़नी पड़ी पढ़ाईगणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के हाथगांव के कायस्थ परिवार में हुआ था उनके पिता मुंशी जयनारायण मुंगावली के स्कूल में हेडमास्टर रहे उन्होंने विद्यारंभ उर्दू से हुआ और 1905 ई. में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास कर इलाहबाद के कायस्थ पाठशाला कॉलेज में आगे की पढ़ाई की, लेकिन उससे पहले ही उन्हें गरीबी की वजह से पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। उनकी पत्रकारिता ने ब्रिटिश शासन की नींद हराम कर दी थीगणेश शंकर विद्यार्थी भारतीय इतिहास के एक पत्रकार, सच्चे देशभक्त, समाजसेवी और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय कार्यकर्ता थे उन्हें हिंदी पत्रकारिता का प्रमुक स्तंभ माना जाता है उनके लेखों में ऐसी गजब की ताकत होती थी कि उनकी पत्रकारिता ने ब्रिटिश शासन की नींद हराम कर दी थी उनकी बेमिसाल क्रांतिकारी पत्रकारिता के कारण ही गणेश शंकर विद्यार्थी और उनका अखबार प्रताप आज के दौर में भी पत्रकारिता जगत के लिए एक आदर्श माना जाता है।पांच बार जा चुके हैं जेल उन्होंने कई सारे युवाओं को लेखक, पत्रकार, और कवि बनने की ट्रेनिंग और प्रेरणा दी है ब्रिटिश सत्ता के अत्याचारों के विरूद्ध लिखने के कारण वह 5 बार जेल भी गए हैं इस दौरान प्रताप अखबार का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा संभाला करते थे।16 साल की उम्र में लिखी पहली किताबकॉलेज के समय ही गणेश शंकर विद्यार्थी का झुकाव पत्रकारिता की ओर हो गया था। 16 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली किताब आत्मोसर्गता नाम से लिखी थी सन् 1913 में कानपुर में ही गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप नाम से अपना खुद का हिंदी साप्ताहिक निकाला इसी दौरान ही वे राजनैतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय हुए धीरे-धीरे कांग्रेस में उनका कद काफी बढ़ने लगा सन् 1925 में हुए कानपुर अधिवेशन में स्वागत समिति के प्रधानमंत्री और 1930 में प्रांतीय समिति के अध्यक्ष होने के साथ उन्हें सत्याग्रह आंदोलन में भी एक प्रमुख भूमिका मिली थी। लोगों की जान बचाने में गंवा दी खुद की जानसन् 1931, 25 मार्च को कांग्रेस सम्मेलन के लिए उन्हें कानपुर से कराची जाना था, लेकिन इससे पहले विद्यार्थी कानपुर से निकलते उन्हें खबर मिली की शहर में सांप्रदायिक दंगे होने लगे हैं ऐसे में लोगों की जान बचाने के लिए वो फौरन घर से निकल गए और दंगाइयों से पीड़ितों को बचाने लगे लोगों को कहना था कि गणेश शंकर विद्यार्थी ने हिंदू-मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोगों की जान बचाई, लेकिन दंगाइयों ने उन्हें बेरहमी से मार दिया।