निप्र, जावरा मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सत्ता की कुर्सी की चाह में सत्ता और विपक्ष के राजनीतिक उठा पटक में लोकतंत्र के लिए करने वाले जनहितैषी कार्यों को ही भूल गए है ,जिसका प्रभाव चुनाव न करवाने से अस्त- व्यस्त होती ग्रामीण पंचायतीराज व्यवस्था से स्पष्ट हो रहा है जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में बिना सरपंच ओर जनपद अध्यक्ष के पंचायतीराज व्यवस्था लचर पड़ी है ,वही जिला कार्यपालन अधिकारी सीईओ से लेकर जनपद पंचायत सीईओ का भी पंचायत की गम्भीर समस्याओं को लेकर व्यवस्था को सुचारू करने में कोई ध्यान नही है , पंचायत में कोई जनता की समस्याओं से अवगत नही हो पा रहा वही पंचायत द्वारा शिकायत पर भी सचिव से लेकर अधिकारियों द्वारा कोई प्रतिक्रिया नही दी जा रही , जिसका अभिप्राय जावरा जनपद पंचायत के कलालिया गाँव के सरपंच प्रतिनिधि राधेश्याम सुनारिया का सांसद द्वारा पंचायत को गोद लेने से सड़क किनारे नाली, श्मशान ,पिंगला नदी की पुल पर बाउंड्रीवाल ओर दुर्घटना सम्भावित कलालिया फंटे पर स्ट्रीट लाइटों की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर विरोध प्रदर्शन करने से स्पष्ट हो रहा है, जहाँ क्षेत्रीय विधायक ने तक पंचायत के प्रति अब तक कोई सुध नही ली है, वही पूर्व में जब बिनोली गांव में कम्प्यूटर कक्ष को शौचालय बना दिया गया तो जावरा सीईओ से जवाब माँगने पर जल्द व्यवस्था सुचारू करने की बात कही गई तो कार्य को सुचारू करवाने से पहले सीईओ आर. बी.एस दंडोतिया सेवानिवृत्त हो गए है, वही समस्या एसडीएम के सज्ञान में होने पर भी दो माह बीतने पर संज्ञान में नही लिया गया, एक ओर जिला जनपद पंचायत कार्यपालन अधिकारी सीईओ जमुना भीड़े द्वारा ग्रामीण व्यवस्था का मौका मुआयना नही किया जाता सिर्फ कार्यालय से ही पूरे जिले के ग्रामीण क्षेत्रो के विकास कार्यों की अधूरी सूचना ली जाती है,वही पिपलोदा जनपद सीईओ से लेकर जावरा जनपद सीईओ की कार्यप्रणाली सिर्फ़ कार्यालय तक सीमित रही वर्तमान में जावरा जनपद सीईओ के सेवानिवृत्त होने पर पिपलोदा सीईओ अल्फिया खान को ही जावरा का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया, जोकि काबुलखेड़ी ओर मामटखेड़ा,तालिदाना, जैसी पंचायत में ग्रामवासियों की मूलभूत सुविधाओं को सुचारू करने में विफल रही क्या वह “दो जनपद पंचायतों का सही से कार्य निर्वाहणं कर पाएंगी”, पंचायत की व्यवस्था को लेकर एसडीएम हिमांशु प्रजापति से जवाब मांगने पर सीईओ का कार्य है कह कर गुमराह कर दिया जाता है ,आखिर अधिकारियों के सीमित कार्य के दायरे के पीछे जनहितैषी मुद्दों को नजरअंदाज करने के पीछे ” कौन है जिम्मेदारी “शासन या स्वयं प्रशासन?