अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के महिला कृषकों को बीज उत्पादन पंजीयन में शतप्रतिशत छूट का प्रावधान
बालोद, 03 नवंबर 2025
जिले में रबी वर्ष 2025-26 में नेशनल मिशन ऑन इडिवल ऑयल-ऑयलसीड योजनांतर्गत पहली बार नवीन फसल के रुप में 125 हेक्टेयर कुसुम की खेती जा रही है। जिसका बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत कृषकों का पंजीयन कराया जाएगा। कृषि विभाग के उप संचालक ने बताया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के महिला कृषकों को बीज उत्पादन पंजीयन में शतप्रतिशत छूट का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि कुसुम भर्री एवं कन्हार जैसे भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी होती का चयन करना चाहिए। सिंचित फसल को मटासी जैसी हल्की भूमि पर भी ले सकतें है, कुसुम उत्पादन हेतु अच्छी जल निकास की व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है। बुआई अक्टूबर माह से नवम्बर माह के अंतिम सप्ताह तक हो जानी चाहिए। बीज की मात्रा 10 से 12 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरुरत होती है, बुआई कतार बोनी सीड ड्रील के माध्यम से करने पर अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। सूक्ष्म पोषक तत्व के रुप में सल्फर का उपयोग करने से इसकी तेल की मात्रा में वृद्धि होती है। यह 120 से 150 दिन की फसल है, इसका औसत उत्पादन 08 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त होता है। उत्पाद की कीमत औसतन 08 हजार रूपये प्रति क्विंटल प्राप्त होती है। इसलिए तिलहन फसल कुसुम जिले के कृषकों के लिए एक बेहतर विकल्प है। इसका तेल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है और इसे खाने के साथ-साथ सौंदर्य उत्थान में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल में कोलेस्ट्रॉल कम करने और दिल को स्वस्थ रखने में मददगार होता है। इसके अलावा कुसुम की खेती से कम लागत और कम मेहनत में अच्छी आमदनी की संभावनाएं हैं, इसलिए कुसुम एक लाभकारी फसल है। कुसुम को चटख रंगों की पंखुड़ियों तथा नारंगी रंग की डाई (कामिन) व इसके बीजों के कारण खेती की जाती है। इसके बीजों में 26 से 36 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसका तेल सुनहरे पीले रंग का होता है और विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। इसका तेल सूरजमुखी के ही तेल की तरह स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसमें उपयुक्त मात्रा में लिनोलिक अम्ल (78 प्रतिशत) होता है जो रक्त के कोलेस्टेरॉल की मात्रा में कमी लाता है।
