उज्जैन छोड़ कर जा चुके शख्स की दिल की बात
वक़्त बदला दुनिया बदली
तुम बदले हम बदले
सब कुछ बदला नही बदली तो वह थी यादें
यादें जो अक्सर याद आती है यादे जो अक्सर याद आती है।
कैसे भूल जाऊं मैं उज्जैन की महिमा न्यारी
घर से निकल यारो के साथ बातें करते थे प्यारी प्यारी
महादेव की दाल बाटी का अंदाज ही कुछ निराला था,
भोला गुरु की सब्जी पूड़ी का स्वाद भी तो प्यारा था,
साई दाल बाफले मिल कर हम तुम खाते थे,
बाफना के नमकीन ,जैन की कचोरी कितना मन को भाते थे
श्रीगंगा में जाने को हर पल मचलते थे
अपना स्वीट के छोले भटूरे खाने को भी तो तरसते थे
फ़ेमस वाले कि रबड़ी कुल्फी मन तृप्त कर जाती थी
लाला जी की दूध जलेबी अपने मन को भाती थी
कभी कभी मन कर जाता था राजनंदनी पर जाएंगे
ठंडी ठंडी बियर पीकर अपना दिल बहलाएँगे
सिंदल पान पर जाकर चॉकलेटी पान खाते थे
टॉवर चौपाटी पर खड़े होकर कितना हम इतराते थे
सांवरिया वाले का क्लब सेन्डविच, देवासगेट के पोहे,
शहीद पार्क की चाट पतासी, अब भी मन को मोहे
छोटे सराफे का गाजर का हलवा
लक्ष्मी विलास की चाय
बहुत याद आते है यह सब
बिल्कुल ना भुला जाय
सुबह सुबह दशहरा मैदान फिटमैक्स जिम पर जाकर
रोज दो घण्टे पसीना बहाना
फिर क्षिप्रा नदी पर जाकर ठण्डे पानी से नहाना
मंदिर प्रांगण में शिखर दर्शन कर दिन प्रारम्भ करना कौन भूल पाएगा,
क्या बाबा महाकाल हमे वापस उज्जैन बुलाएगा।