( अमिताभ पाण्डेय )
स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। ऐसा हम कई बार पढ़ते सुनते रहते हैं। सच भी है। यदि हमारी सेहत बेहतर है, हम स्वस्थ हैं तो सब कुछ अच्छा लगता है। बेहतर स्वास्थ्य मनुष्य को खुशहाल, शांतिप्रिय, प्रगतिशील बनाए रखता है। स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारी शांति, खुशहाली और स्वतंत्रता से है। यदि कोई अस्वस्थ है। किसी दबाव या प्रभाव में हैं, स्वतंत्र नहीं है तो फिर उसका मन किसी काम में नहीं लगता। वह अपने आपको बंधन में बंधा हुआ, अस्वस्थ महसूस करता है। बीमार आदमी खुश नहीं रह पाता है। वह बीमारी के कारण शांतिपूर्वक आनंदमय जीवन नहीं बिता सकता है। इसी प्रकार परतंत्र होते हुए, बंधन या गुलामी में रहते हुए कोई भी व्यक्ति शांति और खुशहाली का आनंद नहीं ले सकता।इसके लिए मनुष्य का स्वतंत्र होना बड़ा जरूरी है ।
यदि हमें अपने आसपास स्वतंत्रता, शांति ,खुशहाली का वातावरण महसूस करते रहना है तो इसके लिए सबसे पहले खुद को सभी तरह के बंधनों से मुक्त और स्वस्थ बनाए रखना होगा। स्वस्थ रहने के लिए उस वातावरण से दूर रहना होगा जिसमें बीमार होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। अभी तो हाल यह है कि हमारे आसपास खाद्य पदार्थों में मिलावट, कृषि में बढ़ते रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल, और प्रदूषण जैसे कई खतरे हैं जिसके कारण नई नई बीमारियां फैल रही है। इसके साथ ही पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से हमारी जीवन शैली में जो बदलाव आए हैं उसके कारण भी नई नई बीमारियां पैदा हो रही हैं ।
हवा में फैलते विभिन्न संक्रामक रोग पहले ही आमजन के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं ।
पिछले दिनों जो सबसे बड़ा संक्रामक रोग कोरोना के रूप में सामने आया, उसने देश दुनिया की सामाजिक,आर्थिक स्थितियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। कोरोना को इस सदी की सबसे भयानक बीमारी के रूप में देखा जा रहा है।
यह ऐसी महामारी है जिसका सटीक उपचार अब तक नहीं मिल पाया है। इसको खत्म करने के लिए जो वैक्सीन बनाए गए, उनसे लोगों को राहत मिली है। यह वैक्सीन पूरी तरह प्रभावी नहीं माने जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी कोरोना महामारी के वायरस नए-नए रूप बदलकर सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक इस को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रभावी दवाइयों को खोजने का काम लगातार कर रहे हैं। फिलहाल हम यह का सकते हैं कि कोरोना के वायरस जिस तरह नए-नए रूप बदलकर जानलेवा साबित हो रहे हैं, उसको देखते हुए अधिक सावधानी और सुरक्षा के उपाय लगातार करते रहने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी ने दुनिया के सभी देशों में लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला। स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होने का परिणाम यह हुआ कि शांति खुशहाली भी खत्म हो गई। कोरोना के कारण सरकार ने लाकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाए। इनसे आम आदमी की स्वतंत्रता भी बाधित हो गई। आम आदमी अपने घर में रहने पर मजबूर हुए ।
लोग अपने घरों में सिमट कर रह गए। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। बिना समाज में लोगों से मिले जुले नहीं रह सकता। इसके विपरित लाकडाउन में लोग अपने घरों में महीनों तक बैठे रहे।
कोरोना के कारण लाकडाउन में अकेले रहने से भी बहुत से लोगों की जान चली गई।
इस महामारी का डर आज भी लोगों के मन में गहरे तक समाया हुआ है। इस दौरान आत्महत्या के मामले भी बढ़ गए। कोरोना के कारण आम आदमी के मन में स्वास्थ्य को लेकर जो डर समा गया उसने शांति और खुशहाली , स्वतन्त्रता को बहुत नुकसान पहुंचाया। दूसरी ओर बाजार की ताकतों ने कोरोना महामारी के डर को खूब भुनाया और मुनाफा कमाया। स्वास्थ्य के साथ ही शांति खुशहाली और आम आदमी की स्वतंत्रता पर कोरोना के रूप में आए इस संकट को लोग अब तक महसूस कर रहे हैं।
इस महामारी दौरान समाज में ऐसी स्थितियां निर्मित हुई कि आम आदमी का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित प्रभावित हुआ। बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे मनोरोगी हो गए जिनका उपचार अब भी चल रहा है। कोरोना महामारी से समाज पर हुए विविध प्रभावों को लेकर चर्चा और चिंतन करने के लिए हाल ही में मध्यप्रदेश के धार्मिक शहर ओंकारेश्वर में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। यह आयोजन सामाजिक सरोकार पर विमर्श के लिए मशहूर स्वयंसेवी संस्था विकास संवाद ने किया। इसमें गांधीवादी विचारकों, वरिष्ठ पत्रकारों , प्रकृति प्रेमियों, चिकित्सकों , सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही युवा साथियों ने भाग लिया। उन्होंने स्वास्थ्य के लिए शांति, शांति के लिए स्वास्थ्य विषय पर अपने विचार प्रकट किए। सेमिनार में शामिल वक्ताओं का कहना था कि बाजारवादी व्यवस्था में कोरोना जैसी महामारी समाज की दुश्मन बन गई ।
बीमारी में मुनाफा हासिल करने वाले लोगों ने खूब पैसा कमाया। महामारी के दौर में दवा कंपनियां, बीमा कंपनियां सबसे ज्यादा फायदे में रही। गरीब आदमी को अपने उपचार के लिए घर की संपत्ति बेचने पर मजबूर होना पड़ा। कर्ज लेकर उपचार करवाने पर मजबूर होना पड़ा। कोरोना काल में सरकारी व्यवस्थाओं ने आम आदमी को निराश किया
इसका लाभ निजी अस्पतालों ने खूब उठाया। महिलाओं और बच्चों को भी बहुत परेशानी हुई। शासन के सूचना तंत्र ने बहुत सी जरूरी और उपयोगी जानकारियों को आम जनता तक नहीं पहुंचने दिया। सही और प्रमाणिक सूचनाएं नहीं मिलने के कारण सोशल मीडिया पर अफवाह , डर और गलत सूचनाएं लगातार फैलती गई। इससे लोगों की मानसिक स्थिति बिगड़ी। हालात ऐसे बने कि अब तक भी कई लोग मानसिक अवसाद से बाहर नहीं आ पाए हैं।
इस सेमिनार के दौरान अपने संबोधन में वक्ताओं ने कहा कि हमें बाजारवादी व्यवस्था का प्रभाव कम करने के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चलना होगा । महात्मा गांधी यह मानते थे कि समाज में अधिक डाक्टर का होना अच्छी बात नहीं है।
गांधी जी का विचार था कि बीमारी का उपचार करने की बजाय , लोग बीमार ना हो ऐसी जीवन शैली को अपनाना चाहिए। भारतीय संस्कृति में आहार-विहार, खानपान को लेकर जो पुरानी परंपराएं हैं , यदि उनका पालन अपने जीवन में किया जाए तो बीमार होने से बचा जा सकता है ।
वक्ताओं की बात में यह भी सामने आया कि वर्तमान समय में एक साजिश के तहत भारत की प्राचीन परंपराओं, उपचार के देसी नुस्खे, पुरानी आयुर्वेदिक औषधियों को हाशिए पर डालने का काम बाजारवादी ताकते कर रही है। नई नई बीमारी का डर बताकर महंगी दवा खरीदने पर लोगो को मजबूर किया जा रहा ही। दवाइयां खरीदने के कारण हर साल लोग कर्जदार बन रहे हैं। भारत की बड़ी आबादी उपचार के लिए कर्जदार बन गई है।
ऐसी स्थिति में यदि हमें स्वस्थ बने रहना है तो अपनी पुरानी परंपराओं की ओर लौटना होगा। भारतीय जीवनशैली की पुरातन पद्धति को अपनाना होगा जो कि जलवायु और वातावरण के लिए पूरी तरह अनुकूल है। यदि हम ऐसा करेंगे तो स्वस्थ रहते हुए शांति और खुशहाली के साथ स्वतंत्रता का अनुभव करते हुए आनंदमय जीवन को बिता सकेंगे।
यह बताना जरूरी होगा कि सेमिनार मीडियाकर्मियों के लिए महत्वपूर्ण रहा।
इस उद्देश्य से कि इसमें शांति, खुशहाली, स्वास्थ्य , स्वतंत्रता और संविधान में इसके लिए उल्लेखित अधिकार के विषय में उपयोगी जानकारी मिली।
विद्वान वक्ताओं के विचारों को जानने , समझने के बाद मीडियाकर्मी इस बारे में लिखेंगे। लिखकर समाज में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को बढ़ाएंगे।
सेमिनार में शामिल सभी प्रतिभागियों ने संकल्प लिया कि हम सब अपनी समझ को समाज के हित में बेहतर बनाएंगे। अन्याय करने वाली, शोषण करनेवाली, मुनाफा कमानेवाली ताकतों के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष में सहयोग करेंगे।
हाशिए पर खड़े समाज को जीवन का अधिकार , स्वास्थ्य का अधिकार मिल सके ।
उनकी जागरूकता बढ़ सके । इस संकल्प को मजबूत बनाते हुए हम सब जहां जो भी काम कर रहे हैं उसे जनहित में सामाजिक सरोकार को पूरा करने के लिए लगातार करते रहेंगे।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं ,
संपर्क : 9424466269 )