
पटटाचार्य पद पर सुशोभन प्रसंग – 30 अप्रैल- इंदौर
लेखक – ऋषभ जैन, शाहगढ़
भारत भूमि सृष्टि की शुरूआत से ही विश्वविश्रुत धर्म, आध्यात्म, दर्शन और योग की ज्ञान परम्परा और संस्कृति से पुष्पित- पल्लवित रही है। इस धरा ने एक मायने में सम्पूर्ण विश्व को संस्कारित- दीक्षित किया और आज भी कर रही है। वेदिक ऋषि- मुनियों से लेकर जैन साधक इस अनुकरणीय परम्परा में अपना अहर्निश योगदान देते रहे हैं। जैन साधकों की चर्या और क्रियाएँ जन-सामान्य के लिए प्रेरणा- पुंज हैं। ऐसे ही साधक हैं, आध्यात्म के पुरोधा, आध्यात्म योगी दिगम्बर जैनाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर महाराज। इनके गुरू आचार्य 108 विराग सागर महाराज ने जब अनुमान प्रमाण से जान लिया कि आने वाले दूसरे दिन वे इस संसार को विदा करने वाले हैं, तब 3 जुलाई 2024 को वीडियो संदेश द्वारा अपना पट्टाचार्य (गणाचार्य) का पद सु-योग्य शिष्य विशुद्ध सागर महाराज को देने की घोषणा कर दी।
अपने गुरू का अचानक जाना और गणाचार्य जैसे बहुप्रतिष्ठित पद के दायित्व का मिलनस आम बात नहीं है, परन्तु आचार्य विशुद्ध सागर महाराज अपने गुरू के बिछुड़ जाने से गमगीन थे। अन्य वरिष्ठ दिगम्बराचार्यों द्वारा समझाने पर अंतत: विशुद्ध सागर महाराज इस दायित्व को संभालने के लिए राजी हुए। इंदौर के संभ्रान्त और धर्मानुरागी मनीष गोधा परिवार ने अपने बलबूते पर इंदौर के सुमति धाम में ऐतिहासिक जैन महाकुंभ का आयोजन के लिए आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज को पट्टाचार्य पद से अंलकृत कराने की मंशा जाहिर की। जैन धर्म के ढाई हजार वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका है कि 388 साधकों की उपस्थिति में आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज पट्टाचार्य पद पर अलंकृत होंगे।
भारतीय वसुन्धरा पर अनादि सनातन श्रमण-संस्कृति, जैन धर्म में दिगम्बर आचार्य, उपाध्याय एवं वीतरागी दिगम्बरी यथाजात,पगविहारी, करपात्री मुनियों का स्तुत्य एवं महत्वपूर्ण योगदान है। क्षमाशीलता, अहिंसा-प्रियता, शाकाहार, निष्पृहता, सत्याचरण, ब्रह्यचर्य, अपरिग्रहता आत्मोकर्ष ही उनका लक्ष्य रहता है। इन तमाम खूबियों के साथ दिगम्बर संत विशुद्ध सागर महाराज पिछले 36 साल से धर्म प्रभावना कर रहे हैं। आपसे प्रेरणा लेकर अब तक 56 गृहस्थ मुनि- दीक्षा,06 छुल्लक दीक्षा लेकर संयम मार्ग को प्रशस्त कर रहे हैं। आचार्य श्री के संघ की विशेषता है कि उनसे दीक्षित युवा मुनि लौकिक शिक्षा यथा इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउटेंटस और अन्य विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। कुछ मुनियों ने लाखों रूपयों का पैकेज छोड़कर आत्म साधना मार्ग को चुना है। आचार्य की प्रेरणा से हजारों धर्मावलम्बी व्रतादि ग्रहण कर अपना जीवन सार्थक कर रहे हैं।
आचार्य विराग सागर बने विशुद्ध सागर के दीक्षा प्रदाता
मध्यप्रदेश के चम्बल संभाग के भिण्ड जिले के रूर गाँव में 19 दिसम्बर 1971 को सभ्रान्त परिवार के श्री राजनारायण के यहाँ योग्य संतान का जन्म हुआ। नाम रखा “राजेन्द्र’ पर इन्हें स्नेह से “लला’ नाम से पुकारा जाता था। “लला’ ने बाल्यकाल में मात्र 10 वष्र की अल्पायु में जैनत्व के मूल नियमों का पालन करना शुरू कर दिया था। फिर सत्रह बसंत देखते-देखते वैराग्य जाग्रत हुआ तदसमय मुनि श्री विराग सागर महाराज के भिण्ड प्रवास में उनकी देशना से प्रभावित होकर 11 अक्टूबर 1989 को भिण्ड में छुल्लक दीक्षा अंगीकार की । इसके बाद 19 जून 1991 को ऐलक दीक्षा, और 5 महीने ही बीत पाए थे कि आचार्य श्री विराग सागर महाराज से ही पन्ना जिले के जैनतीर्थ श्रेयांसगिरि में 21 नवम्बर 1991 को दिगम्बर मुनि की दीक्षा ली । अब नाम रखा गया “विशुद्ध सागर’। गुरू विराग सागर महाराज ने आपकी लगन और धर्म प्रभावना को देखते हुए आपको औरांगाबाद (महाराष्ट्र) में 31 मार्च 2007 महावीर जयंती के पावन दिन आपको आचार्य पद से विभूषित किया ।
आध्यात्म और साधना की महिमा के कुछ प्रसंग
विशुद्ध सागर महाराज की जिनदीक्षा से लेकर अब तक अनगिनत अदभुत, चमत्कारिक घटनाएँ घट चुकी हैं। वर्ष 1999 में उत्तरप्रदेश के झाँसी से सटे जैनतीर्थ करगुवाँ में देव वंदना के दौरान एकाएक एक सर्प ने आपके पैर के अंगुष्ठ को मुख से दबा लिया। महाराज ने सोचा कोई चूहा बगैरह होगा, चला जाए। पुन: देखने पर पाया कि वह तो काला सर्प है1 महाराज ने सर्प को सम्बोधित किया ” भो-ज्ञानी मंदिर में जाओ, जिनेन्द प्रभु के दर्शन करो और मुझे भी सामायिक करने दो, अगर पिछले जन्म का कुछ कुछ कर्ज हो तो चुका लो’ इतना कहना था कि सर्प अंगुष्ठ छोड़ चटाई के नीचे जाकर बैठ गया।
वर्ष 2000 के सागर चातुर्मास में पिड़रूआ निवासी वयोवृद्ध कवि ज्ञानचन्द्र की पुत्र-बधू की पीठ पर सफेद दाग हो गया । ज्ञानचन्द्र जी महाराज के चरणों का गन्धोदक प्रतिदिन घर ले जाते और पुत्र वधू उसे रोग के स्थान पर लगा लेती। पन्द्रह दिन ही बीते थे कि रोग दूर हो गया। जब यह बात महाराज को बताई गई तो महाराज ने कहा कि ” मैंने कोई मंत्र नहीं दिया, यह तुम्हारी भक्ति और दिगम्बर मुनि के प्रति श्रृद्धा का प्रतिफल है”।
एक अन्य प्रसंग में आचार्य श्री ने विदिशा के आसपास संघ सहित सुबह विहार के निकलते ही संघ को चेताया कि आज कुछ अनहोनी घटना घट सकती है। संघ का विहार कुछ ही दूरी पर आगे चला था। विदिशा के अशोक जैन आचार्य श्री के साथ चलने लगे। आचार्य श्री एक स्थान पर रूककर शौच-क्रिया के लिए खेत की ओर चल दिए । पाँच मिनिट बाद अशोक जैन को घबराहट हुए और वहीं गिर गये। साथ में चल रहे अन्य मुनि यह समझ गए कि इनकी आयु कुछ पल की ही बची है। उन्हें णमोकार मंत्र सुनाया। आचार्य श्री वापस आए तब तक अशोक के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। साथ चल रहे लोगों का कहना था कि गुरूवर निमित्त ज्ञानी है तभी उनको आभास हो गया था कि अनहोनी होने वाली है।
एक प्रसंग भोपाल का भी है, जिसमें वर्ष 2010 में आचार्य श्री संघ सहित साकेत नगर स्थित जैन मंदिर दर्शन के लिए पहुँचे। मंदिर से बाहर आए तो कुछ शरारती तत्वों ने गाली देते हुए अभद्र व्यवहार प्रारंभ कर दिया । इनमें से एक व्यक्ति जो उपद्रवियों का मुखिया जान पड़ता था, पत्थर लेकर मारने के भाव से महाराज के सामने खड़ा हो गया । आचार्य ने आक्रोशित व्यक्ति के मुख की ओर करूणा दृष्टि से देखा और हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। तभी इस व्यक्ति के मन के पिघलने में वक्त नहीं लगा और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। पता ही नहीं चला कि उसके हाथ का पत्थर नीचे कब गिर गया ? महाराज के साथ चल रहे श्रावकों ने कहा कि पुलिस को रिपोर्ट कर अपराधी को सजा दिलाना चाहिए परन्तु महाराज ने मना कर दिया। स्थानीय पुलिस को जैसे भी पता चला पुलिस अधिकारी ने महाराज के पास जाकर बिनती की कि उपद्रवी लोगों को क्या दण्ड दिया जाए ? आचार्य महाराज ने कहा कि ‘ भैया उन्हें दण्ड देने की बात क्यों करते हो वे भी भटकते भगवान हैं’। इस तरह की सैकड़ों घटनाएँ घटित हुईं हैं।
इकलौते आचार्य जिन्होंने अब तक 1 लाख कि.मी. से ज्यादा किया पग विहार
आचार्य श्री इकलौते ऐसे दिगम्बरराचार्य हैं जिन्होंने अब तक देश के 12 राज्यों में 1 लाख 2 हजार 800 किलोमीटर पग विहार कर धार्मिक- आध्यात्मिक चेतना का प्रसार कर लोक मंगल और प्राणी मात्र के कल्याण को गति दी है। आपने वर्ष 2024 में ही नवम्बर माह में नांदणी का चातुर्मास पश्चात श्रमण बेलगोला, मुम्बई,कचनेर और जालना से होते हुए इंदौर तक 2800 किलोमीटर का सतत विहार करते हुए 07 पंच कल्याणक और लघुपंच कल्याणक कराए हैं। आचार्य श्री के सान्निध में अब तक 154 पंचकल्याणक कराकर भगवानों की प्रतिष्ठा हो चुकी हैं। साथ ही 1990 से 2024 तक विभिन्न स्थानों पर 35 चातुर्मास पूर्ण कर चुके हैं। सर्वाधिक पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के लिए आपका नाम यू.एस.ए. बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज हो चुका है।
सर्वाधिक साहित्य सृजन
साहित्य तत्व-ज्ञान को प्रदान करता है। साहित्य से तत्व विद्या सुरक्षित रहा करती है। साहित्य हमारी धरोहर है। साहित्य से हमारे संस्कार सुरक्षित हुआ करते हैं। आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी, जो हिन्दी के साथ-साथ प्राकृत, संस्कृत, मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी- गुजराती आदि भाषाओं में पारंगत हैं, ने विपुल मात्रा में साहित्य सृजित किया है। लौकिक शिक्षा भले ही दसवीं कक्षा तक ही हुई हो इतनी अल्प शिक्षा के बाद भी नीतिशास्त्र का अलौकिक ग्रन्थ ” सत्यार्थ बोध’ सृजित कर विश्व कीर्तिमान बनाया है। इस ग्रन्थ के सृजन पर ब्रिटिश नेशनल यूनिवर्सिटी क्वीन मेरी यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका द्वारा आपको डी.लिट उपाधि से सम्मानित किया गया है।
वस्तुत: सत्यार्थ बोध आध्यात्म योगी विशुद्ध सागर के अंतरंग मन के चित्त के चिंतन,मंथन, चैतन्य के तत्व ज्ञान से उदभूत मौलिक कृति है। यह पाश्चात्य संस्कृति से अंशात पथ भ्रमित मानव को स्वात्म संस्कृति के प्रति चैतन्य कर सुप्त मानवीय आदर्शों को जाग्रत करता है।
उत्कृष्ट प्रवचनकार
आचार्य श्री हिन्दी के साथ प्राकृत,संस्कृत और अप्रभंश का गहरे स्तर का ज्ञान रखने वाले उत्कृष्ट चिंतक, सर्जक के साथ ही सम्प्रेषणीय प्रवचनकार भी है। प्रवचन देना दैनिक दिनचर्या का अंग है । प्रतिदिन संघस्थ साधुओं की तीन कक्षाएँ बिला नागा लेते हैं। जन-सामान्य आश्चर्य करते हैं कि आप इतने व्यस्त रहकर और लगातार पग विहार कर ग्रन्थों का सृजन कब करते हैं ?
सर्वाधिक समय मौन साधना
आपने जीवन पर्यन्त वस्त्र त्याग कर निर्ग्रन्थ अवस्था स्वीकार की है। जीवन पर्यन्त वाहन से विचरण न करने का नियम लिया है। जीवन पर्यन्त नमक, तेल, दही एवं मीठा आदि सेवन का त्याग किया है। रात्रि में पूर्ण मौन रहते हैं। अष्टमी, चतुर्दशी, अष्टानिका और पर्यूषण पर्व में मौन साधना करते हैं। आहार में मात्र दो अन्न ग्रहण करते हैं, जिसमें भी चावल सेवन का पूर्ण त्याग है
विशिष्ट पड़ाव है सुमति धाम में गणाचार्य पद पर सुशोभन
आचार्य श्री की अब तक की कीर्ति कलश यात्रा का नया और विशिष्ट पड़ाव है 30 अप्रैल 2025 को सुबह इंदौर स्थित सुमति धाम में गणाचार्य (पटटाचार्य) पद पर सुशोभन। इस सारस्वत संस्कार के साक्षी होंगे 388 जैन साधक, धर्मावलम्बी, श्रृद्धालु और समाज जन। इस शुभ प्रसंग पर 27 अप्रैल से ही कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं और 2 मई तक चलेंगे। पहले दिन सुबह जन सैलाब की मौजूदगी में शोभा यात्रा निकली आचार्य श्री सहित सभी साधकों की भव्य अगवानी हुई सुमति धाम में। प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने जैन साधकों की अगवानी की और पूरी शोभा-यात्रा में चल रहे जन सैलाव का कुशल संचालन किया ।