निप्र, रतलाम मध्य प्रदेश नगर निकाय चुनाव हो या त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनाव 2014 के बाद से लंबे अर्से बाद आठ वर्ष कार्यकाल बीतने के दौरान 2022 के परिणाम स्वरूप चुनाव होने के बाद भी जनप्रतिनिधी अपने नैतिक कर्तव्यों से विहीन है, मध्य प्रदेश में सरकार चाहे भारतीय जनता पार्टी की हो और विपक्ष चाहे कांग्रेस का हो दोनों ही दलों के नेता नेताओं के निकाय और पंचायत के जनप्रतिनिधि कार्यों को लेकर शासन से फंड नहीं मिलने की समस्या को लेकर के अपना रोना रोते रहते हैं ,ग्रामीण पंचायती राज ग्राम स्तर की सबसे मजबूत पंचायती राज का उद्देश्य आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना है। जिसे त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत के रूप में ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और ज़िला पंचायत स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों और शिल्पकारों के लिए जल, कृषि, पशुपालन और आर्थिक सामाजिक विकास की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं लेकिन वर्तमान में किसानों और शिल्पकारों के लिए जमीनी स्तर के नेता कमज़ोर होते दिखाई दे रहे हैं, जो किसी भीं कार्य को कराने की बात पर सिर्फ़ शासन के फंड की बात करते नज़र आते हैं ऐसे में जनप्रतिनिधी को चुन कर लाना लोकतंत्र में जन विश्वास की हत्या को व्यक्त कर रहा हैं वहीं निकाय चुनाव को देखा जाए तो पार्षद भीं किसी कार्य को लेकर फंड नहीं है या स्वीकृति नहीं मिल रही का रोना रोते रहते हैं वर्तमान में जावरा नगर पालिका मध्यप्रदेश के लिए उदाहरण हैं जहां प्रदेश में भाजपा सरकार होने के बाद भी जावरा नगर पालिका परिषद में कांग्रेस का अध्यक्ष होने पर भी भाजपा सरकार एक छोटी सी इकाई में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं कर पा रही जिससे विपक्षी नेता न होने से जनता की आवाज़ दबी सी नज़र आती हैं वहीं कहीं न कहीं भाजपा के नेता भीं आलाकमान तक बात न रख पाने की शांत भुमिका में कांग्रेस को भीतरी समर्थन देते समझ आ रहे हैं नगर निकाय और पंचायत राज के चुनें हुए जनप्रतिनिधियों में कई तो साक्षर नहीं होने के कारण तंत्र को समझ नहीं पा रहे तो कुछ महिला जनप्रतिनिधी के कार्यों को उनके पिता और पति,भाई, बेटे प्रतिनिधी बनकर उनका कार्यकाल पुर्ण करने में अपनी सहभागिता निभा रहे हैं।