निप्र जावरा मध्यप्रदेश के रतलाम जिले की शिक्षा व्यवस्था अपने आप में एक गंभीर विषय बन चुकीं हैं, शासकीय स्कूलों में अथिति के बिना जैसे शिक्षा व्यवस्था लचर है उसी तरह प्रायवेट स्कूलों में व्यवसाय दृष्टि से शिक्षा के हाल बेहाल हो चुके हैं, अंग्रेजी भाषा का प्रभाव दिखा कर कई स्कूल माता पिता को काल्पनिक दुनियां में ले जाकर विद्यार्थी को बीच मझधार में उलझा रहें हैं, मीडिया रिपोर्ट और सूत्रों से जब स्कूलों की तह तक जाकर देखा तो पाया कि ग्रामीण और शहरी स्कूलों में कई प्रायवेट स्कूल बाहर के ज़िले से आकर व्यवसायिक भूमिका के रूप में संचालित किए जा रहे हैं वहीं कई स्कूलों के संचालकों के संबंध राजनीतिक पाए गए, वहीं कई स्कूल ऐसे है जहां ज़िला शिक्षा अधिकारी पहुंच से दूर स्कूलों तक अपनी नज़र पहुंचा नहीं पाते या यूं कहो की उनके द्वारा भेजे निरक्षण अधिकारी को बाहर कुछ और बताया जाता है और पर्दे के पीछे जो हो रहा हैं उससे बेखबर कर गुमराह कर दिया जाता हैं वर्तमान परिस्थितियों में बीएड और डीएलएंड किए हुए शिक्षक मिलना एक बड़ी ख़ोज हैं जहां बीएड डी एल एंड किए शिक्षक सरकारी शिक्षक या अथिति शिक्षक की कमी पूरी करने से प्राईवेट स्कूल की ओर रुख कम ही कर पाते हैं नतीजन शहरी और ग्रामीण के स्कूल व्यवसायिक भूमिका चलाने के लिए प्राईवेट स्कूल को इस तरह मेंटेन करते हैं जहां कम से कम दो या अधिक तीन दिखाने के लिए शासकीय नियम अनुरूप बीएड और डी एल एंड शिक्षक रखते हैं बाकी उन्ही के पढ़ाए १२ वी पास , निरंतर अध्यन्नरत बीए या बी एस सी या किसी भी विषय से ग्रेजुएट शिक्षक को रख कर स्कूल के विद्यार्थियों की शिक्षा पूर्ण कराते हैं कई बार एक शिक्षक एक विषय से अधिक विषय पढ़ाता है जिस कारण विद्यार्थी खुद को शिक्षक की अन्य विषय में लगाम नहीं होने के कारण असहज महसूस करता है वो किसी से कह नहीं पाता क्योंकि उसे उसी स्कूल में पढ़ना होता है और घर पर माता पिता व्यस्थ जीवन होने के कारण उससे यह जान नहीं पाते की उसकी शिक्षा कैसी चल रहीं हैं, और युवा विद्यार्थी धीरे धीरे बैकवर्ड हो जाता हैं जिस कारण वह किसी न किसी सब्जेक्ट में फेल हो ही जाता हैं वहीं माता पिता इस सोच में रह जाते हैं की बच्चा पढ़ाई में कमज़ोर है। हाल ही में पूर्व के शासकीय स्कूल में ९ से १२ के विद्यार्थियों के फैल होने की समीक्षा की तो पाया कि शासकीय स्कूलों में विषय शिक्षक की कमी थीं वहीं प्रायवेट स्कूलों में भी विषय शिक्षक की कमी थीं एक और शासकीय स्कूलों के विद्यार्थियों के मुकाबले प्रायवेट स्कूलों के उन विद्यार्थियों को पास होने का फ़ायदा था जो प्रायवेट में ९ वी और ११ वी कक्षा में अध्ययनरत थें उन्हें स्कूल द्वारा ही पास कर दिया गया जबकि शासकीय स्कूलों में ब्लाक और ज़िले स्तर पर उत्तरपुस्तिका जांची जाने के कारण बच्चें विषय में कमज़ोर पाए जाते हैं तो पूरक परीक्षा देते हैं या अधिक विषय में कम नंबर के कारण फैल हो जाते हैं। स्कूलों की ऐसी स्थिति को देखकर लगता हैं की शिक्षा अब अंतिम चरण पर अपनी तलाश में निकल चुकीं हैं।