*दूसरी हिजरी में हुई थी शुरुआत*
*माहे रमजान की मुबारकबाद*
अशोकनगर ,चंदेरी पुष्कर श्रीवास्तव,अनीस उल्ला खान
इस्लाम के पांच फर्ज में से एक है रोजा रखना, जो पांच फर्ज है उनमें कलमा(अल्लाह को एक मानना) नमाज, जकात (दान)रोजा और हज(मक्का में काबा) शामिल हैं। रमजान को पाक महीना भी कहा जाता है और माना जाता है यह महीना रब को इंसान से और इंसान को रब से जोड़ता है माना जाता है कि इस्लामिक कैलेंडर के नौंवे महीने रमजान में रोजा रखने की शुरुआत दूसरी हिजरी में हुई है। इस्लामिक कैलेंडर चांद की स्थितियों के आधार पर चलता है हिजरी कैलेंडर की शुरुआत 622 ईस्वी में हुई थी जब हज़रत मोहम्मद साहब मक्का से मदीना गए थे इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान एक महीने का नाम है जो शाबान महीने के बाद आता है। यह महीना आठ महीने के बाद यानि नौंवे नंबर पर आता है। चांद देखकर रमजान की शुरुआत होती है। और चांद देखकर ही ईद मनाई जाती है। अमूमन देशों में रमजान के महीनों को कुरान का महीना भी कहा जाता है। रमजान की पहले 10 दोनों को रहमत का महीना कहा जाता है। इन 10 दिनों में मुसलमान जितने नेक काम करता है जरूरतमंदों की मदद करता है अल्लाह उसे पर रहमत करता है दूसरे अशरे को मगफिरत यानि माफी का अशरा कहा जाता है। यें अशरा 11वें रोज़े से 20वें रोज़े तक चलता है। माना जाता है कि इसमें अल्लाह की इबादत करके अगर सच्चे मन से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाए तो अल्लाह गुनाहों को माफ कर देता है। तीसरे अशरे को बहुत माना जाता है।ये जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए है। तीसरे अशरे के बीच 26वें रमजान को शवेकद्र मनाईं जाती है। इस शव में कुरान पाक की तिलावत और नफिल नमाज़ अदा कर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है। फिर एक महीना होने पर चांद देखकर ही ईद मनाई जाती है। भारत देश में सामान्यतः हिंदी महीने के दोज पर ही चांद के दीदार होते हैं।
*रमजान या रमादान*
पिछले कुछ सालों में यह भी देखने में आया है कि कई लोग रमजान और रमदान को लेकर भ्रम में उलझे हुए हैं सोशल मीडिया पर रमजान और रमजान के मैसेज फारवर्ड होने पर क्रिया और प्रतिक्रिया भी देखने मिली है। दरअसल रमजान और रमदान का यह मामला फारसी और अरबी की वर्णमाला की वजह से है रमजान फारसी का शब्द है जो उर्दू में शामिल हो गया है रमदान अरबी का लफ्ज है असल में रमजान लिखने में अरबी में ज्वाद बोलने में ज(जेड) की बजाय द(डी) ध्वनि देता है ऐसे में अरबी बोलने वाले लोग रमदान कहते हैं। भारत में फारसी का ज्यादा प्रभाव रहा है ऐसे में भारत में से रमजान कहते हैं। अरब दुनिया में इसे रमदान या रमादान कहा जाता है भारत में उर्दू ज्यादा लिखी पढ़ी और बोली जाती है इसलिए भारत में इसे रमजान कहा जाता है। अब चाहे रमजान कहे या रमदान दोनों ही शब्द सही है