आजकल बच्चे और किशोर जिस प्रकार मोबाइल और कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह आने वाले समय में इनके लिए घातक हो सकता है। अध्यनकर्ताओं के अनुसार तकनीकी गैजेट्स का लंबे समय तक इस्तेमाल घातक हो सकता है। बच्चे और किशोर मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलते समय काफी देर तक एक ही जगह पर बैठे रहते हैं। इससे रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। एक ही मुद्रा में बैठकर काम करने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचता है। ऐसे में अभिभावकों को देखना चाहिये की बच्चों तय समय से ज्यादा गैजेट्स का इस्तेमाल न करें। अभिभावक इस मामले में बच्चों और किशोरों को बताये कि यह उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह है। उन्हें समझाएं कि जीवनशैली में बदलाव व्यायाम और खानपान सही रख कर ही रीढ़ की हड्डी को होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार रीढ़ की हड्डी की बिमारी रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी (आरएसआई) को बार-बार एक ही प्रकार की गतिशीलता और ओवर यूज की वजह से मांसपेशियों, टेंडंस और नव्र्स में दर्द के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस स्थिति को ओवरयूज सिंड्रोम, वर्क रिलेटेड अपर लिंब डिसॉर्डर या नॉन-स्पेसिफिक अपर लिंब के रूप में भी जाना जाता है.
उन्होंने कहा कि स्क्रीन का इतना लंबा और अनावश्यक एक्सपोजर स्पाइन पर बेकार का तनाव डालता है और इससे लिगामेंट में स्प्रेन का खतरा बढ़ जाता है जो वर्टिब्रा को बांधकर रखता है, ऐसे में मांसपेशियों में कड़ापन आने लगता है और डिस्क में समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है।
इंसान की रीढ़ को मूवमेंट के सपोर्ट के लिए डिजाइन की गई है और अगर यह इस्तेमाल में रहती हैं तो स्वस्थ्य बनी रहती है। आज के युवाओं को समस्या इसलिए हो रही है, क्योंकि वे निष्क्रिय जीवनशैली जी रहे हैं, जिसमें गैजेट पर निर्भरता काफी ज्यादा बढ़ गई है। अधिकतर युवाओं में देखी जा रही आम समस्या है सर्विकल स्पाइन और पीठ की, जैसे कि स्लिप डिस्क, रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी, सोर बैक और लिमामेंट की चोट।
इस मामले में सबसे जरूरी है समय पर समस्या की पहचान, जिससे मेडिकल और सर्जिकल इंटर्वेशन की जरूरत कम पड़ती है और समस्या का समाधान जीवनशैली में बदलाव लागू किया जा सकता है। इसके तहत अच्छा पोषण, हल्का व्यायाम और नियमित अंतराल में थोड़ी-थोड़ी देर तक टहलकर सिटिंग टाइम को कम करके दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।
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