मोदी के नाम पर भाजपा लड़ेगी चुनाव
भोपाल/नई दिल्ली। मप्र में करीब 7 माह बाद चुनावी शंखनाद हो जाएगा। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं। साथ ही साथ अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए सर्वे कराए जा रहे हैं। हालही में संघ के स्वयंसेवकों के सर्वे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इंकम्बेंसी सामने आई है। इसके बाद आरएसएस और पार्टी के रणनीतिकारों ने मप्र जीतने के लिए नो रिपीट फॉर्मूला बनाया है। इसके तहत पार्टी आगामी चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी।
भाजपा की इसी रणनीति के तहत भाजपा के दिग्गज नेताओं के दौरे भी शुरू हो गए हैं और संकेत मिलने लगे हैं कि पार्टी विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लडऩे वाली है। राज्य में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस सत्ता में आई थी। उस समय भी संघ ने अपने सर्वे के बाद चुनावी चेहरा बदलने की बात कही थी, लेकिन पार्टी ने शिवराज पर विश्वास जताया था। भाजपा ने इस बार प्रदेश में 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पिछले चुनाव में हारी हुई 100 सीटों को जीतने का प्लान भी तैयार हो चुका है। हारी हुई 100 सीटों पर कमल खिलाने के लिए प्रभारी तय किए जा चुके हैं। साथ ही शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी नेताओं को आपसी गुटबाजी खत्म करने के दिशा-निर्देश दे दिए हैं।
कमलनाथ की रणनीति बनी चुनौती
मप्र की सियासत में एक बार फिर से विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस कमलनाथ की अगुवाई में फिर से चुनावी जंग फतह करने का सियासी तानाबाना बुन रही है तो भाजपा ने भी कमलनाथ को मात देने के लिए खास प्लान बनाया है। पीएम मोदी के नाम और काम, शिवराज सिंह चौहान के चेहरे, हिंदुत्व के एजेंडे और गुजरात की तरह नो रिपीट जैसे पांच फॉर्मूले के सहारे मप्र चुनाव जीतने का रोडमैप भाजपा ने तैयार किया है। ऐसे में अब देखना है कि भाजपा अपनी इस रणनीति से क्या कमलनाथ के सियासी दांव के फेल कर पाएगी? विधानसभा चुनाव में भाजपा शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी में है। इस बार शिवराज की छवि का मेकओवर कर भाजपा उन्हें आगे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी की है। सूत्रों की मानें तो पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने तय किया है कि शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ा जाएगा और पार्टी ने उन्हें अपनी छवि को पूरी तरह से बदलकर मतदाताओं को पहुंचने का खाका तैयार किया है। शिवराज की मप्र में मामा वाली छवि का पूरा इस्तेमाल किया जाएगा। इस लोकप्रियता के दम पर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश रहेगी, क्योंकि पार्टी में फिलहाल शिवराज के जैसा कोई दूसरा चेहरा नहीं है, जिसे पार्टी आगे कर चुनावी मैदान में उतर सके। इसीलिए भाजपा शिवराज के चेहरे पर ही दांव लगाना बेहतर समझ रही है।
मोदी के नाम और काम की ब्रांडिंग
भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और काम को लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने का रोडमैप तैयार किया है। देश में ब्रांड मोदी की चमक अभी भी बरकरार है और भाजपा की यही सबसे बड़ी ताकत है। इसीलिए भाजपा पीएम मोदी के नाम, काम और चेहरे पर चुनाव लड़ती है और वोट मांगती है। पीएम मोदी भी चुनावी फिजा को अपने मुताबिक मोडऩा जानते हैं और हारती हुई बाजी को जीत में तब्दील करने का हुनर आता है। केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के जरिए लाभार्थियों का एक नया वोटबैंक भाजपा ने तैयार किया है तो महिलाओं के बीच भी पीएम मोदी का अपनी लोकप्रियता है। भाजपा पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़कर उनकी लोकप्रियता को भुनाने की कवायद कर रही है।
हिंदुत्व का एजेंडा
भाजपा के हिंदुत्व की काट कोई भी पार्टी तलाश नहीं सकी है। भाजपा के लिए सियासी तौर पर यह मुद्दा काफी मुफीद माना जाता है। ऐसे में भाजपा मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व के एजेंडे को धार देगी। उज्जैन में महाकाल कॉरीडोर और तीर्थ दर्शन जैसी अन्य धार्मिक योजनाओं को उपलब्धि के तौर पर चुनाव में पेश करने का प्लान बनाया है। शिवराज सिंह इन दिनों हिंदुत्व के रंग में पूरी तरह से नजर आ रहे हैं, जिसके संदेश साफ हैं।
कई मौजूदा विधायकों के टिकट खतरे में
भाजपा मप्र में भी नो रिपीट थ्योरी के फॉर्मूले को आजमाने की तैयारी में है। मोदी-शाह के इस अचूक प्लान से पार्टी गुजरात में 27 वर्षों से सत्ता में लगातार बनी हुई है। भाजपा अब मप्र के चुनाव में भी सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए अपने कुछ मौजूदा विधायकों का टिकट काट सकती है। भाजपा टिकट बंटवारे में सिर्फ और सिर्फ जीतने की क्षमता रखने वाले नेताओं पर ही दांव लगाएगी। नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट नहीं मिल सकेगा। सूत्रों के अनुसार, पार्टी कई मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है और उनकी जगह नए चेहरों को उतारा जा सकता है। एमपी में मौजूदा जिन विधायकों के खिलाफ उनके ही क्षेत्र में माहौल सही नहीं है या फिर जिनकी उम्र 70 प्लस हो रही है, उन विधायकों की जगह नए चेहरे को टिकट दिए सकते हैं।