पुराना उज्जैन हमारा उज्जैन
फ्लेसबैक #पुरानी_यादें
वक़्त बदला दुनिया बदली तुम बदले हम बदले यह शहर बदला सब कुछ बदला नही बदली तो वो है सिर्फ यादे ,यादे जो अक्सर याद आती हैं।
90 के दशक में उज्जैन में त्रिमूर्ति टॉकीज के अलावा मेट्रो और निर्मल सागर,स्वर्ग – सुंदरम टॉकीज की शुरुआत भी हो चुकी थी।
इस दशक में बड़ी तादाद में सिनेमाहाल खुल चुके थे पुराने शहर में रीगल,कैलाश,मोहन,नरेन्द्र प्रकाश,त्रिमूर्ति,निर्मल सागर,मेट्रो एक और टॉकीज था जिसका मुझे नाम याद नही आ रहा दूध तलाई पर रेलवे स्टेशन के सामने
और नए शहर याने फ्रीगंज में अशोक,स्वर्ग – सुंदरम और भतवाल टॉकीज
इतने सारे सिनेमाहाल में भतवाल टॉकीज बहुत पिछड़ गया था।
पुराना और तंगहाल था भतवाल
पुरानी फिल्मे इसमे लगा करती थी।
आज में जिस फ़िल्म का जिक्र कर रहा हूं वह सन 1993 में इस टॉकीज में मेने देखी थी और उसका नाम था
“आनन्द” यह 1971 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फ़िल्म के निर्माता, निर्देशक, लेखक एवं संपादक ऋषिकेश मुखर्जी हैं। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार राजेश खन्ना एवं अमिताभ बच्चन हैं। इस फ़िल्म को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के अलावा फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में छः श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया था।
कैंसर के विशेषज्ञ डॉ॰ भास्कर बैनर्जी (अमिताभ बच्चन) को साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है कि उसने आनन्द जैसे उपन्यास की रचना की और डॉ॰ भास्कर बैनर्जी अपनी सफ़ाई में यह कहता है कि यह उसकी डायरी के कुछ पन्ने हैं और वह कोई लेखक नहीं है और यह उपन्यास सही घटनाओं पर आधारित है।
अब फ़िल्म अतीत में चली जाती है जब एक जुझारू डॉक्टर भास्कर बैनर्जी मुंबई की झोपड़पट्टी में मरीज़ों की देखभाल कर रहा है और देखता है कि भुखमरी और बदहाली इस हद तक फैली हुयी है कि वह किसी के लिये कुछ भी करने में अक्षम है। वहीं उसके दोस्त डॉ॰ प्रकाश कुलकर्णी (रमेश देव) का जमा जमाया अस्पताल है जो बिन बीमार मरीज़ों को भी देख लेता है और उनसे अच्छी रक़म ऐंठता है जबकि ग़रीब मरीज़, जो कि भास्कर भेजता ही रहता है, के वह बिना पैसे ही सारे टॅस्ट करवा देता है। एक दिन प्रकाश को दिल्ली से उसके एक स्त्री रोग विशेषज्ञ दोस्त डॉ॰ त्रिवेदी का ख़त आता है कि वह अपने दोस्त आनन्द (राजेश खन्ना) को उसके पास भेज रहा है। प्रकाश आनन्द से कुछ साल पहले मिला था और उसका अच्छा दोस्त बन गया था। आनन्द को अंतड़ियों का कैंसर है और यह बात वह जानता है कि ज़्यादा से ज़्यादा वह छः महीने ही ज़िन्दा रहेगा। जब प्रकाश और भास्कर, प्रकाश के दफ़्तर में बैठे हुये होते हैं तो आनन्द वहाँ आ धमकता है और अपनी मज़ाक की आदत शुरु कर देता है जिससे भास्कर बैनर्जी को ग़ुस्सा आ जाता है और वह आनन्द से पूछता है कि उसे मालूम भी है कि उसे क्या बीमारी है, तो आनन्द उसे बताता है कि उसे कैंसर है और वह ज़्यादा से ज़्यादा वह छः महीने ही ज़िन्दा रहेगा। यह सुनकर भास्कर आनन्द का क़ायल हो जाता है कि यह मालूम होते हुये भी कि वह कुछ ही दिनों का महमान है, आनन्द इतना ज़िन्दादिल है।
आनन्द अब भास्कर के घर रहने लगता है और किसी तरह यह पता लगा लेता है कि भास्कर एक लड़की रेनू (सुमिता सान्याल) से प्रेम करता है लेकिन इस प्रेम को ज़ाहिर करने की उसमें हिम्मत नहीं है। आनन्द एक पहलवान (दारा सिंह) की मदद से रेनू की माँ (दुर्गा खोटे) से मिलकर भास्कर और रेनू का रिश्ता पक्का करवा लेता है लेकिन रेनू की माँ को यह बता देता है कि भास्कर और रेनू की शादी में वह नहीं रहेगा। इसी बीच आनन्द को रंगमंच में काम करने वाला एक कलाकार ईसा भाई सूरतवाला (जॉनी वॉकर) भी मिल जाता है और उससे आनन्द कुछ संवाद सीखकर भास्कर के टेप रिकॉर्डर में टेप कर लेता है।
अब आनन्द की तबियत दिन पर दिन गिरती जाती है और एक दिन वह बिस्तर पर लेट जाता है। भास्कर कोई करिश्मे की तलाश में किसी होम्योपैथिक डॉक्टर के पास जाता है और अपने पीछे प्रकाश और रेनू को आनन्द की देखभाल करने के लिए छोड़ जाता है लेकिन उसके लौटने तक आनन्द दम तोड़ चुका होता है और पार्श्व में आनन्द का वही रंगमंच से टेप किया संवाद चल रहा होता है और यहीं फ़िल्म ख़त्म हो जाती है।