करोड़ों रूपया बर्बाद करने के बावजूद नदी बदहाल
इंदौर । कल रात से कान्ह नदी में पानी नहीं है। जहां देखों वहां गाद नजर आ रही है। करोड़ों रूपया नदी सुधार पर बर्बाद कर देने के बावजूद नदी अपने साफ सुथरे स्वरूप में नजर नहीं आ पा रही है।
शिवाजी मार्केट के पीछे कान्ह नदी में इतनी गाद जमा हो गई कि नदी में कीचड़ ही कीचड़ नजर आने लगा है। कुछ जगह तो गाद इतनी कड़क हो गई है कि उस पर कुत्ते व चील कौवे घूम फिर रहे है।
कान्ह नदी इंदौर की शान होती थी। 1940 से 1965 तक इस नदी का पानी इतना साफ देखा जाता था कि लोग नहाते थे। कृष्णपुरा छत्रीबाग बाराभाई व चिड़ियाघर कमला नेहरू झू के बांध पर लोग डुबकी लगाते थे लेकिन अब वह स्थिति नहीं रही है। सत्तर के दशक के बाद कान्ह नदी सबसे ज्यादा खराब हुई है। नदी के किनारों पर लोगों ने कब्जा (अतिक्रमण) कर लिया। वे नदी में गंदगी डालने लगे। सिर पर मैदा ढोने की प्रथा सत्तर के दशक में खत्म कर दी गई तो सारे शहर का मैला मल मूत्र गटरों नालों के जरिये खान नदी में मिलाया जाने लगा। नदी गंदे नाले में बदल गई। अब नाले टेपिंग कर सुधारने की कोशिश की गई लेकिन वह भी फैल हो गई। नालों का पानी रोकने के बावजूद कई जगह नदी में मिल रहा है। गाद को साफ करने के लिए नदी में पानी रोककर उसका बहाव रखने की तरफ किसी अफसर का ध्यान नहीं है। शिवाजी मार्केट से लेकर बाराभाई तक आधा दर्जन जगह पानी रोकने के बांध हैं लेकिन पटिये या लोहे के शटर लगाकर पानी रोकने पर किसी का ध्यान नहीं है। नदी सुधारने वालों को इतनी सी बात समझ में क्यों नहीं आ रही है। यह आश्चर्य का विषय है।