हम सभी के जीवन में कुछ स्थान व घटनायें ऐसी होती हैं, जो हर्ष व विषाद दोनों भावों को समाहित कर सदैव स्मृति पटल पर अंकित रहती हैं और यदि यह घटनायें ऐतिहासिक परिदृश्य के साथ जुड़ी हुई हों तो इनका महत्व और अधिक बढ जाता है। मेरे जीवन में भी ऐसा ही एक स्थान है-चंदेरी, जो मेरे गृह जिले अशोकनगर से 65 किमी की दूरी पर है और मेरे आरंभिक प्रचारक जीवन में मेरा कार्यक्षेत्र रहा है। वहां का किला, जौहर स्मारक, खूनी दरवाजा प्रारंभ से मेरा ध्यान खींचते रहे हैं। आज की व्यस्तता के बीच में भी जब भी 28-29 जनवरी का दिन आता है तो बरबस ही मन चंदेरी की ओर खिंच जाता है। क्या है इन स्मारको में ? क्यों इनको स्मरण करने की आवश्यकता है ? तो उत्तर मिलता है कि हमारा राष्ट्र स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह स्वत्व के भाव के जागरण का काल है। हम स्वदेश,स्वदेशी, स्वभाषा,स्वभूषा, के लिये स्वाभिमान का अनुभव कर रहे हैं। ऐसे में हमें अपने प्राचीन गौरव के प्रति भी स्वाभिमान का भाव और सम्मान रखना चाहिए। सदैव उन स्थानों, घटनाओं, व्यक्तियों को जानने व समझने का प्रयत्न करना चाहिए, जिन्हें किसी कालखंड में एक सुनियोजित तरीके से विस्मृत कर दिया गया।
अपनी साड़ियों व हथकरधा उद्योग के लिये प्रसिद्ध चंदेरी के ऐतिहासिक महत्व को भी ऐसे ही भुला दिया गया। वह चंदेरी, जो साक्षी है राजा मेदिनीराय के साहस व शौर्य का, वह चंदेरी जो समाहित किये हुये है रानी मणिमाला व 1600 क्षत्राणियों के स्वत्व व सतीत्व की रक्षा हेतु किए गए सामूहिक जौहर को। इतिहास का एक ऐसा कालखंड जब बाबर जैसा आततायी आक्रमणकारी अपनी विस्तारवादी, विध्वंसक नीति के साथ 495 वर्ष पहले 27 जनवरी 1528 की रात को अपनी कुदृष्टि चंदेरी के किले पर डालता है और प्रात: सूर्य उदय होते ही भीषण युद्ध होता है। इसमें राजा मेदिनीराय वीरगति को प्राप्त होते हैं। राजा की मृत्यु और बाबर के महल के अंदर प्रवेश करने की जानकारी जैसे ही रानी मणिमाला के पास पंहुचती है, वह 1600 क्षत्राणियों के साथ अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर का निर्णय लेती हैं । महल के अंदर बनाये गये जौहर कुंड में एक-एक कर सभी क्षत्राणियां समिधा के समान स्वयं की आहुति देती हैं जिसको देख 495 वर्ष पहले बर्बर बाबर भी कांप गया और उसकी चौथी बीबी दिलावर बेगम तो बेहोश होकर गिर गयी।
इसी जौहर की स्मृति में वहाँ एक स्मारक बनाया गया है और प्रतिवर्ष इन वीरांगनाओं को श्रृद्धांजली देने आयोजन होते हैं।
क्या हुआ था उस दिन ?
27 जनवरी 1528 की रात का अंतिम पहर बीतने वाला था कि अचानक प्रहरियों को उत्तर दिशा की ओर से धूल का बवंडर चंदेरी की ओर बढ़ता दिखाई दिया। धीरे-धीरे घोड़ों की टापों की आवाजें तेज होती गईं और धूल का गुबार दुर्ग को घेर चुका था। मंत्रियों ने महाराज मेदिनी राय को सूचना दी कि बाबर चंदेरी के किले के पास तक तोपों से तैयार सेना के साथ पहुंच चुका है। कुछ देर बाद एक प्रहरी राजा के पास बाबर का पत्र लेकर पहुंचता है। खानवा के युद्ध में राजपूतों को हराने के बाद बाबर चंदेरी को कब्जे में करने के इरादे से यहां पहुंचा था। उसने पत्र में दुर्ग उसे सौंपकर उसके साथ आने को कहा। हालांकि राजा ने इनकार कर दिया। बाबर ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी देते हुए आक्रमण कर दिया। राजा ने राणा सांगा के पास मदद मांगते हुए एक पत्र भेजा और सेना के साथ युद्ध के मैदान में कूद पड़े। बाबर और मेदिनी राय के बीच भीषण युद्ध हुआ।
सतीत्व को बचाने 1600 रानियां अग्निकुंड में कूदी
28 जनवरी 1528 को युद्ध के मैदान में राजा मेदिनी राय वीर गति को प्राप्त हो गए। दिन ढलते रानी मणिमाला के पास सूचना आई कि राजा अब नहीं रहे। उन्हें यह भी पता चला कि दुश्मन दुर्ग पर कब्जा करने के लिए किसी भी समय महल में प्रवेश कर सकता है। राजा की मौत की सूचना सुनकर और शत्रु से अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानी ने जौहर का निर्णय लिया। महल के भीतर ही कुंड में जौहर करने के लिए आग जलाई गई। रानी मणिमाला 1600 से अधिक वीरांगनाओं के साथ जौहर कुंड के पास पहुंची और सभी एक-एक कर कूद गईं।
बाबर की चौथी बेगम दृश्य देख हुई बेहोश
युद्ध में सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये । यहां केवल खून ही खून दिखाई दे रहा था। इतना खून जमा हुआ कि इस स्थान को खूनी दरवाजा कहा गया। रानी के जौहर की बात बाबर तक पहुंची तो वह तत्काल रक्त से सनी तलवार लेकर महल में दाखिल हुआ। जौहर कुंड तक पहुंचने के बाद बाबर ने यहां का जो दृश्य देखा, उससे वह घबरा गया। कहा जाता है कि उसकी चौथी बेगम दिलावर भी मौके पर पहुंची और जौहर देखकर बेहोश हो गई। 495 वर्ष पहले जिस स्थान पर यह जौहर हुआ आज भी वहां के पत्थरों का रंग काला है।
15 कोस दूर तक दिखी धधक रही जौहर की ज्वाला
रानी के जौहर की बात आग की तरह राज्य में फैल चुकी थी। जौहर की धधकती आग 15 कोस दूर तक दिखाई दे रही थी। जौहर का पता चलते ही सुदूर अंचल की प्रजा भी किले की ओर भागी। ग्वालियर घराने ने रानी मणिमाला के जौहर की स्मृति में यहां पर एक स्मारक बनवाया। स्मारक के पास स्थित कुंड के आसपास लगे नागफनी के पौधों के कांटों की चुभन आज भी जौहर का स्मरण कराती हैं। महिलाएं आज भी इस स्थान पर पूजा करने जाती हैं और मेरा स्वयं भी जब-जब चंदेरी जाना होता है, इस स्थान पर जाने की सदैव मंशा रहती है और मन में पं श्याम नारायण पांडे जी की यही पंक्तियां गूंजती हैं-
सुन्दरियों ने जहाँ देश-हित, जौहर व्रत करना सीखा।
स्वतंत्रता के लिए जहाँ के बच्चों ने भी मरना सीखा।
वहीं जा रहा पूजन करने, लेने सतियों की पद-धूल।
·वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढ़ेगा माला, फूल।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री हैं)
हम सभी के जीवन में कुछ स्थान व घटनायें ऐसी होती हैं, जो हर्ष व विषाद दोनों भावों को समाहित कर सदैव स्मृति पटल पर अंकित रहती हैं और यदि यह घटनायें ऐतिहासिक परिदृश्य के साथ जुड़ी हुई हों तो इनका महत्व और अधिक बढ जाता है। मेरे जीवन में भी ऐसा ही एक स्थान है-चंदेरी, जो मेरे गृह जिले अशोकनगर से 65 किमी की दूरी पर है और मेरे आरंभिक प्रचारक जीवन में मेरा कार्यक्षेत्र रहा है। वहां का किला, जौहर स्मारक, खूनी दरवाजा प्रारंभ से मेरा ध्यान खींचते रहे हैं। आज की व्यस्तता के बीच में भी जब भी 28-29 जनवरी का दिन आता है तो बरबस ही मन चंदेरी की ओर खिंच जाता है। क्या है इन स्मारको में ? क्यों इनको स्मरण करने की आवश्यकता है ? तो उत्तर मिलता है कि हमारा राष्ट्र स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह स्वत्व के भाव के जागरण का काल है। हम स्वदेश,स्वदेशी, स्वभाषा,स्वभूषा, के लिये स्वाभिमान का अनुभव कर रहे हैं। ऐसे में हमें अपने प्राचीन गौरव के प्रति भी स्वाभिमान का भाव और सम्मान रखना चाहिए। सदैव उन स्थानों, घटनाओं, व्यक्तियों को जानने व समझने का प्रयत्न करना चाहिए, जिन्हें किसी कालखंड में एक सुनियोजित तरीके से विस्मृत कर दिया गया।
अपनी साड़ियों व हथकरधा उद्योग के लिये प्रसिद्ध चंदेरी के ऐतिहासिक महत्व को भी ऐसे ही भुला दिया गया। वह चंदेरी, जो साक्षी है राजा मेदिनीराय के साहस व शौर्य का, वह चंदेरी जो समाहित किये हुये है रानी मणिमाला व 1600 क्षत्राणियों के स्वत्व व सतीत्व की रक्षा हेतु किए गए सामूहिक जौहर को। इतिहास का एक ऐसा कालखंड जब बाबर जैसा आततायी आक्रमणकारी अपनी विस्तारवादी, विध्वंसक नीति के साथ 495 वर्ष पहले 27 जनवरी 1528 की रात को अपनी कुदृष्टि चंदेरी के किले पर डालता है और प्रात: सूर्य उदय होते ही भीषण युद्ध होता है। इसमें राजा मेदिनीराय वीरगति को प्राप्त होते हैं। राजा की मृत्यु और बाबर के महल के अंदर प्रवेश करने की जानकारी जैसे ही रानी मणिमाला के पास पंहुचती है, वह 1600 क्षत्राणियों के साथ अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर का निर्णय लेती हैं । महल के अंदर बनाये गये जौहर कुंड में एक-एक कर सभी क्षत्राणियां समिधा के समान स्वयं की आहुति देती हैं जिसको देख 495 वर्ष पहले बर्बर बाबर भी कांप गया और उसकी चौथी बीबी दिलावर बेगम तो बेहोश होकर गिर गयी।
इसी जौहर की स्मृति में वहाँ एक स्मारक बनाया गया है और प्रतिवर्ष इन वीरांगनाओं को श्रृद्धांजली देने आयोजन होते हैं।
क्या हुआ था उस दिन ?
27 जनवरी 1528 की रात का अंतिम पहर बीतने वाला था कि अचानक प्रहरियों को उत्तर दिशा की ओर से धूल का बवंडर चंदेरी की ओर बढ़ता दिखाई दिया। धीरे-धीरे घोड़ों की टापों की आवाजें तेज होती गईं और धूल का गुबार दुर्ग को घेर चुका था। मंत्रियों ने महाराज मेदिनी राय को सूचना दी कि बाबर चंदेरी के किले के पास तक तोपों से तैयार सेना के साथ पहुंच चुका है। कुछ देर बाद एक प्रहरी राजा के पास बाबर का पत्र लेकर पहुंचता है। खानवा के युद्ध में राजपूतों को हराने के बाद बाबर चंदेरी को कब्जे में करने के इरादे से यहां पहुंचा था। उसने पत्र में दुर्ग उसे सौंपकर उसके साथ आने को कहा। हालांकि राजा ने इनकार कर दिया। बाबर ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी देते हुए आक्रमण कर दिया। राजा ने राणा सांगा के पास मदद मांगते हुए एक पत्र भेजा और सेना के साथ युद्ध के मैदान में कूद पड़े। बाबर और मेदिनी राय के बीच भीषण युद्ध हुआ।
सतीत्व को बचाने 1600 रानियां अग्निकुंड में कूदी
28 जनवरी 1528 को युद्ध के मैदान में राजा मेदिनी राय वीर गति को प्राप्त हो गए। दिन ढलते रानी मणिमाला के पास सूचना आई कि राजा अब नहीं रहे। उन्हें यह भी पता चला कि दुश्मन दुर्ग पर कब्जा करने के लिए किसी भी समय महल में प्रवेश कर सकता है। राजा की मौत की सूचना सुनकर और शत्रु से अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानी ने जौहर का निर्णय लिया। महल के भीतर ही कुंड में जौहर करने के लिए आग जलाई गई। रानी मणिमाला 1600 से अधिक वीरांगनाओं के साथ जौहर कुंड के पास पहुंची और सभी एक-एक कर कूद गईं।
बाबर की चौथी बेगम दृश्य देख हुई बेहोश
युद्ध में सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये । यहां केवल खून ही खून दिखाई दे रहा था। इतना खून जमा हुआ कि इस स्थान को खूनी दरवाजा कहा गया। रानी के जौहर की बात बाबर तक पहुंची तो वह तत्काल रक्त से सनी तलवार लेकर महल में दाखिल हुआ। जौहर कुंड तक पहुंचने के बाद बाबर ने यहां का जो दृश्य देखा, उससे वह घबरा गया। कहा जाता है कि उसकी चौथी बेगम दिलावर भी मौके पर पहुंची और जौहर देखकर बेहोश हो गई। 495 वर्ष पहले जिस स्थान पर यह जौहर हुआ आज भी वहां के पत्थरों का रंग काला है।
15 कोस दूर तक दिखी धधक रही जौहर की ज्वाला
रानी के जौहर की बात आग की तरह राज्य में फैल चुकी थी। जौहर की धधकती आग 15 कोस दूर तक दिखाई दे रही थी। जौहर का पता चलते ही सुदूर अंचल की प्रजा भी किले की ओर भागी। ग्वालियर घराने ने रानी मणिमाला के जौहर की स्मृति में यहां पर एक स्मारक बनवाया। स्मारक के पास स्थित कुंड के आसपास लगे नागफनी के पौधों के कांटों की चुभन आज भी जौहर का स्मरण कराती हैं। महिलाएं आज भी इस स्थान पर पूजा करने जाती हैं और मेरा स्वयं भी जब-जब चंदेरी जाना होता है, इस स्थान पर जाने की सदैव मंशा रहती है और मन में पं श्याम नारायण पांडे जी की यही पंक्तियां गूंजती हैं-
सुन्दरियों ने जहाँ देश-हित, जौहर व्रत करना सीखा।
स्वतंत्रता के लिए जहाँ के बच्चों ने भी मरना सीखा।
वहीं जा रहा पूजन करने, लेने सतियों की पद-धूल।
·वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढ़ेगा माला, फूल।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री हैं)