नई दिल्ली । प्राइवेट नौकरी करने वालों को 50 पार होते ही नौकरी खोजने में कठिनाइयां आने लगती हैं। सीनियर लेवल पर हायरिंग के वक्त कंपनियां अनुभव से पहले उम्र देखती हैं। यह चलन कोरोना महामारी के बाद और बढ़ गया है। 50 के आसपास के लोगों को तो हायरिंग मैनेजर कॉल तक नहीं करते। यदि हम पिछले 4 वर्षों के डेटा की तुलना करें तो पाएंगे कि 21 से 28 साल तक की उम्र के काफी लोगों की हायरिंग हुई है मतलब कंपनी में उनकी संख्या बढ़ गई है, जबकि 28-50 साल तक के लोगों की संख्या में कमी हुई है। 50 वर्ष से अधिक आयु वालों को तो लगभग बाहर ही कर दिया गया है। बेशक, आप कह सकते हैं ज्यादा उम्र वालों के पास लम्बा अनुभव होता है, मगर मैनेजमेंट को लगता है कि उनका दिमाग पुराने ख्यालों से भरा रहता है और नई पीढ़ी नए रास्ते खोजने में सक्षम है। स्टार्टअप्स में तो उम्र का महत्व और भी अधिक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, एक मेन्युफेक्चिरिंग कंपनी में मैनेजमेंट लेवल पर एक सीनियर की भर्ती में 45 वर्षीय उम्मीदवार को भी खारिज कर दिया गया। खारिज किए जाने का आधार यह था कि उसके पास काम करने के लिए केवल 13 साल बचे हैं। इस वजह से कंपनी में उसके लिए आगे बढ़ने की जगह नहीं होगी।यदि एक मेन्युफेक्चिरिंग सेक्टर को छोड़ दें तो बाकी सभी सेक्टर्स में 50 के आसपास वाली उम्र के लोगों के लिए दरवाजे लगातार बंद होते जा रहे हैं। एफएमसीजी, फार्मा , बैंकिंग और वित्त, गैर-बैंकिंग वित्त, और जीवन बीमा जैसे सभी क्षेत्र युवाओं को तरजीह देते हैं। मेन्युफेक्चिरिंग सेक्टर में ज्यादा उम्र के लोगों को इसलिए तवज्जो मिलती है, क्योंकि उनके पास लम्बा तजुर्बा होता है। मेन्युफेक्चिरिंग या विनिर्माण सेक्टर में अनुभव और मैच्योरिटी का स्तर अधिक मायने रखता है। इसके अलावा युवाओं का इस सेक्टर में अधिक रुझान नहीं है। युवाओं का पहला रुझान सर्विस सेक्टर में है। आंकड़ों से काफी हद तक तस्वीर साफ होती है कि उम्रदराज लोगों के लिए नौकरियों के दरवाजे बंद होते जा रहे हैं। फिर भी 50 के आसपास के लोगों को खुद को अपग्रेड करना जरूरी है।
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