मध्यप्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की स्थिति स्पष्ट हो चुकी है लेकिन आम जनता मध्यप्रदेश के चुनावों के परिणामों अनजान हैं
सरपंचों को छोड़कर जनपद सदस्य एवं जिला पंचायत सदस्यों की स्थिति से जनता को अवगत कराया जाना चाहिए जिससे भाजपा, कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों की स्थिति से जनता और मतदाता के मन का भ्रम दुर हो जाए ।
नहीं तो रीवा जिले में भाजपा का सफाया हो गया लेकिन संगठन अपनी डफ़ली बजाकर जनता की आवाज दबाने की कोशिश कर जनता को भ्रम में डालने का काम करेगा ,
ठीक ऐसा ही सागर का उदाहरण है जहां कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया है
लेकिन वहां कांग्रेस जनता को भ्रम में रखकर अपनी डफ़ली बजाकर जनता को सही निर्णय लेने में असमंजस पैदा करेगी
इसलिए निर्वाचन आयोग को भी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में विजेता उम्मीदवारों की दलिय स्थिति स्पष्ट करना चाहिए ।
यदि चुनाव आयोग विजेता उम्मीदवारों की दलिय स्थिति स्पष्ट करने में असक्षम है तो उसके पीछे भी कही ना कही चुनाव आयोग की भेदभाव पूर्ण नीति ही है
क्योंकि नगर परिषद के वार्डो में 1500 से 2500 मतदाता होते हैं वहां पर चुनाव आयोग दलिय चुनाव चिन्हों के आधार पर चुनाव करवाता है
वही दुसरी ओर जनपद पंचायत के एक वार्ड में 6000 से 8000 मतदाता एवं जिला पंचायत वार्ड में 50,000 से 55000 मतदाता होते हैं तब भी चुनाव में भाजपा , कांग्रेस, सपा , बसपा , इत्यादि दलों के चुनाव चिन्हों पर आधारित चुनाव नहीं होता है
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ प्रजापति ने जनहित को दृष्टिगत रखते हुए मांग की है कि चुनाव आयोग का ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव कराने का, ओर शहरी क्षेत्रों में चुनाव कराने का एक समान व्यवहार होना चाहिए लेकिन चुनाव आयोग के भेदभावपूर्ण व्यवहार से ग्रामीण अंचलों में दलिय स्थिति स्पष्ट भी नहीं हो पा रही है ।
इसलिए चुनाव आयोग को ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरी क्षेत्रों में चुनाव की एक समान चुनाव चिन्ह आधारित व्यवस्था लागू करनी चाहिए ।