
ऑटिज्म से ग्रसित कुछ लोगों में अच्छी कन्वर्सेशन स्किल्स हो सकती हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो ठीक से बोल नहीं पाते। कुछ लोगों को रोजमर्रा के सामान्य कार्यों में भी दूसरों की मदद की जरूरत हो सकती है और वहीं कुछ लोग बिना किसी मदद के सभी कार्य कर सकते हैं। WHO के अनुसार, दुनियाभर में हर 100 बच्चे में से 1 बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है। इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता होना बेहद जरुरी है। ऑटिज्म को लेकर विस्तार से जानकारी दे रही हैं इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी अस्पताल की डॉ. रुचिरा पहारे, कन्सल्टेन्ट, पीडियाट्रिक्स, आइए जानते हैं-
क्या होता है ऑटिज्म रोग
ऑटिज्म एक विकासात्मक विकलांगता है जो बच्चों के दिमाग में बदलाव के कारण होता है। इस समस्या का मेडिकल नाम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है। आमतौर पर इसके लक्षण बच्चों में दो-तीन साल की उम्र में नजर आने लगते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों का व्यवहार, कम्यूनीकेशन, इंटरेक्शन और सीखने की क्षमता ज्यादातर दूसरे लोगों से अलग होती है।
ऑटिज्म के लक्षण
बच्चों में ऑटिज्म का निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर पहचान कर सकते हैं-
– एक ही एक्शन बार-बार दोहराना, जैसे बैठे-बैठे हिलते रहना, एक ही शब्द को बार-बार दोहराना
– देर से बोलने का विकास
– बुलाने पर जवाब न देना
– लोगों से बात करते समय उनसे नजरें न मिलाना
– लोगों की बात समझने में दिक्कत होना
– चुनिंदा चीजों में दिलचस्पी लेना
– लोगों की बातों को अनसुना करना
– फिजिकल टच पसंद न करना
– रोबोटिक या फ्लैट आवाज में बात करना
– ज्यादा तेज आवाज से परेशान होना या चिढ़ना
– अकेले रहना ज्यादा पसंद करना
– लोगों के साथ रिश्ते न बना पाना
यदि बच्चे में कोई भी असामान्य लक्षण नजर आते हैं तो तुरंत ऐसे अस्पताल जाएं जहां चौबीस घंटे विशेषज्ञों की सुविधा दी गई हो ताकि समय पर चेकअप कराने के साथ ही इलाज मिल सके।
ऑटिज्म रोग के कारण
ऑटिज्म होने के पीछे कोई सटीक कारणों का पता अभी नही पता चल सका है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आनुवांशिकता और वातावरण इसकी बड़ी वजह हो सकते हैं।
ऑटिज्म का इलाज
मौजूदा समय में ऑटिज्म का सटीक उपचार नहीं है, लेकिन बच्चों में इस समस्या से जुड़े लक्षणों को कम करने का प्रयास किया जा सकता है, जैसे- बिहेवियर थैरेपी, स्पीच थैरेपी, ऑक्यूपेशनल थैरेपी के द्वारा या जरूरत पड़ने पर दवा देकर ऑटिज्म के लक्षणों को कम किया जा सकता है ताकि ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों को सामान्य जीवन जीने में कोई परेशानी न आए।