निप्र, जावरा मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार विगत कई वर्षो से सत्ता में काबिज थीं लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतता गया , शिवराज सरकार के कार्यों की उपलब्धियां चाहे चरम पर रही हो लेकिन राज्य के कई क्षेत्रों में बेरोजगारी, भुखमरी, व गरीब जनता के शोषण में कोई कमी नही आई है,वक्त बीतता गया और सत्ता में बैठे शिवराज सरकार की सत्ता पलट के बाद कॉंग्रेस की वापसी हुई, कुछ ही साल बीते थे कि कोरोना के दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ने फिर पलट फेर कर कांग्रेस सरकार को गिरा कर सत्ता की कुर्सी पर शिवराज सरकार को बिठा दिया, लेकिन कोरोना की लहर ने शासन के कार्यो को जनता के प्रति इतना उदारवादी रूप से प्रकट किया ,जिससे कई वीरान पड़े खण्डर अस्पतालो के हालतों में सुधार आया ,कई डॉक्टर की उपलब्धि बड़ाई गई तो कही नर्सिंग स्टाफ़ को अस्पताल में प्राथमिकता मिली वही आक्सीजन प्लांट से लेकर जांच मशीन सोनोग्राफी, एक्स -रे मशीन की उपयोगिता शासन के जनप्रतिनिधियों को समझ आई लेकिन डॉक्टरों की कमी को लेकर आज भी राज्य के कई अस्पताल अपनी कमियां गिना रहै है उन्ही में रतलाम जिले का जावरा शासकीय अस्पताल एक बड़ी चुनौती है जो तीन लाख की आबादी क्षेत्र से घिरे विधानसभा की जनता को विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण इलाज के अभाव में रतलाम से लेकर इंदौर, गुजरात जैसे अस्पताल में जाने को मजबूर करता है जिसके कारण कई गम्भीर हालात में मरीज अपनी जान गवा देते है परन्तु जिम्मेदार कोई ध्यान नही देते ,लेकिन वर्तमान में अस्पताल में कोरोना काल मे जनप्रतिनिधियों की बड़ी उपलब्धियों ने आक्सीजन प्लांट से लेकर जांच मशीनों की सौगात तो दी लेजिन कार्य तक नही नाम तक सीमित रह गई, अस्पताल में ईसीजी मशीन खराब होने पर भी किसी को कोई खबर नही है जो कि छः महीने से खराब है आखिर ह्रदय रोग विशषज्ञों का न होना उसकी उपयोगिता को जरूरत का न समझना दर्शाता है ,क्या क्षेत्रीय सत्ता व विपक्षी दल के जनप्रतिनिधि स्वास्थ्य सेवाओं में किसी के गभीर होने पर ही अपनी उपयोगिता जनता के बीच दिखाना चाहते है या किसी मुख्य बिंदु को अपना एजेंडा बनाना चाहते है ,कोई गरीब व्यक्ति अपने इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल में कई वर्षों से अपनी जेब कटवाता आ रहा है,हजारों ख़र्च पर भी कुछ लोभी डॉक्टरों की सलाना इन्कम लाखों टर्न अवर प्राप्त करने की भूख को भी सीमित नही कर सका ,हालात ऐसे है कि शासकीय अस्पताल को विशेषज्ञ डॉक्टरों की सौगात मिल भी जाए तो प्राइवेटाइजेशन का दबदबा भारी है जो शासकीय अस्पताल में मौजूद डॉक्टर को चंद हफ़्तों में स्थानातरित करने को मजबूर कर देता है ,जनता के मत के अधिकारो के लिए किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की उपयोगिता को समझना डॉक्टर और शासन के रखवालो के लिए इंसानियत ओर अपने धर्म और कर्म को समझने के बराबर है,जिसे सेवा कार्यो के रूप में आगे आकर अपना कर्तव्य समझना चाहिये। ओर राज्य की स्वास्थ्य कमियों को दूर करने के लिए कोई विचारशील कदम उठाना चाहिए।