*शिव पुराण में शिव को पंचदेवो में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रुप में स्वीकार किया गया है – आचार्य जैमिन शुक्ल*
*शिव पुराण कथा के पूर्व नगर में निकली भव्य कलश यात्रा*
ढोल, ताशे, बैंड पर मातृ शक्ति ने किया गरबा रास
नगर के प्रमुख चौराह पर आचार्यजी का हुवा सम्मान
कथा के पूर्व विशेष रुप से गवली समाज के पदाधिकारियों द्धारा पंडितजी का सम्मान स्वागत किया गया।
थांदला से (विवेक व्यास, माधव एक्सप्रेस) स्थानीय सावलिया सेठ मन्दिर पर आज से नो दिवसीय भव्य शिव पुराण का वाचन दाहोद गुजरात के सुप्रसिद्ध आचार्य पण्डित जैमिन शुक्ल के मुखारविंद से प्रारंभ हुईं कथा में प्रथम दिवस ही मातृ शक्ति का कथा श्रवण के लिए विशेष उत्साह देखा गया। प्रथम दिवस आचार्य द्धारा शिव पुराण का महत्व, शिव पुराण का मत एवम शिव पुराण में बारह संहिताये के बारे में विस्तार से बताया आपने कथा में कहा की
शिव पुराण सभी पुराणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुराणों में से एक है। भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है। इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। । शिव पुराण में शिव को पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं।
‘शिव पुराण’ का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्रायः सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु ‘शिव पुराण’ में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
शिव पुराण में 12 संहितायें –
1. विघ्नेश्वर संहिता 2. रुद्र संहिता 3. वैनायक संहिता 4. भौम संहिता 5. मात्र संहिता 6. रूद्रएकादश संहिता7. कैलाश संहिता 8. शत् रूद्र संहिता 9. कोटि रूद्र संहिता 10. सहस्र कोटि रूद्र संहिता 11. वायवीय संहिता 12. धर्म संहिता
विघ्नेश्वर तथा रौद्रं वैनायक मनुत्तमम्। भौमं मात्र पुराणं च रूद्रैकादशं तथा।
कैलाशं शत्रूद्रं च कोटि रूद्राख्यमेव च। सहस्रकोटि रूद्राख्यंवायुवीय ततःपरम्
धर्मसंज्ञं पुराणं चेत्यैवं द्वादशः संहिता। तदैव लक्षणमुदिष्टं शैवं शाखा विभेदतः
इन संहिताओं के श्रवण करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा शिव धाम की प्राप्ति हो जाती है। मनुष्य को चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान, और वैराग्य से सम्पन्न हो बडे आदर से इनका श्रवण करे। बारह संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है।