बूझ सरीखी बात हैं, कहन सरीखी नाहि
जेते ज्ञानी देखिये, तेते संसै माहि।
उपरोक्त वर्णित दोहे में संत कबीर कहते हैं कि, आत्मसाक्षात्कार, स्व-स्वरूप की बात तो समझने तथा अनुभव करने की है, यह वादविवाद का विषय नहीं है। वाद विवाद करने वाले जितने वाचिक ज्ञानी हैं वे सब संशय में पड़ जाते हैं।
प. पू. श्री माताजी, प्रणित सहजयोग ध्यान एक साक्षात अनुभव है, जिसे अपने सूक्ष्म तंत्र पर जाना जा सकता है। साधारणतः जब हम ध्यान करने बैठते हैं और अपनी आंखें बंद करते हैं तो बहुत सारे विचार अपने मानसपटल पर आने लगते हैं । हम पांच मिनट के लिये भी अपनी आंखें बंद करके शांत नही बैठ सकते, अपने-आप का सामना नही कर सकते। एक क्षण के लिये भी हम हमारे विचारों से छुटकारा नहीं पा सकते। बैचने हो जाते हैं और अपने मन को कहीं न कहीं उलझाते रहते हैं, विचारों का निषेध करने की कोशिश करते हैं। पंरतु यह स्थिति ध्यान नहीं है और ऐसे में हम निर्विचार अवस्था का अनुभव कभी भी कर ही नहीं सकते। अपने – आपसे एक प्रश्न पूछें क्या मैं एक क्षण के लिये भी शांत या निर्विचार रह सकता हूं ? अगर आपका उत्तर नकारात्मक है तो सहजयोग ध्यान आपके लिए सहायक हो सकता है। सहजयोग ध्यान सीखने के लिये आपको अपनी इच्छाशक्ति और जिज्ञासा जागृत कर अपना आत्मसाक्षात्कार मांगना होगा। सहजयोग में साधक को सूक्ष्म तंत्र के बारे में बताया जाता है तत्पश्चात सूक्ष्मशरीर में मे स्थित इड़ा-पिंगला नाड़ी का संतुलन कर मध्य नाड़ी सुषुम्णा द्वारा सहस्रार चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने की कला सिखायी जाती है। श्रीमाताजी कहते हैं हमारा सहजयोग, “आधि कळस मग पाया इस न्याय से चलता है ध्यान करने आये साधक को सर्वप्रथम र्निविचार अवस्था प्राप्त होती है और इसके बाद आत्मपरीक्षण से साधक चित्त शुद्धि कर अपने आपको स्वच्छ और दुर्गुणों से दूर रखता है। श्रीमाताजी कहते हैं, सहजयोग एक अनुभूतिजन्य योग है । इस योग में आपको उस ज्ञान की साक्षात् अनुभूति होती है । जिसे वर्णित करने के लिये सभी धर्मग्रंथों ने उपमाओं व दृष्टांतों की झड़ी लगा दी है वह आत्मज्ञान, निर्विचारिता, व निरानंद सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के साथ सहज में ही प्राप्त हो जाता है।
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।