आजकल बच्चे किशोर और युवा ही सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं जो इन्हें बीमार बना रहा है। इससे बच्चे अवसाद का शिकार हो सकते हैं। ये लोग सोशल मीडिया के जरिए किसी दूसरे की प्रोफाइल में झांककर यह धारणा बना लेते हैं कि उनके जीवन में कुछ खास नहीं रह गया है।
बढ़ रहे अवसाद के मामले
शोधकर्ताओं का मानना है कि सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म की वजह से हमारा लोगों से आमना-सामना कम होता जा रहा है। यह न सिर्फ व्यवहारिक रूप से हमें प्रभावित कर रहा है बल्कि हमें बीमार भी बना रहा है। अवसाद और कई शारीरिक समस्याओं की वजह भी यही है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि सोशल मीडिया निराशा भी बढ़ता है जिसमें फंस कर बच्चे किशोर और युवा अपनी जान दे रहे हैं। इसमें बताया गया है कि सोशल मीडिया इंसानों में पनप रही निराशा और हताशा का एक बड़ा कारण है। ऐसे में केवल दवा या साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट का सहारा लेने की बजाय चिकित्सकों को तत्काल सोशल नेटवर्किंग को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जिसमें दोस्तों और परिवार का प्रभाव भी शामिल है।
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