। मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल बढ़ेगा या नहीं? इस पर जल्दी ही फैसला होगा। वीडी का तीन साल का कार्यकाल अगले महीने पूरा हो रहा है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल 17 महीने बढ़ा दिया गया है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 9 राज्यों में विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह फैसला लिया है। नड्डा का कार्यकाल 20 जनवरी को खत्म हो रहा था, इसे बढ़ाकर जून 2024 तक कर दिया गया है। मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल बढ़ेगा या नहीं? इस पर जल्दी ही फैसला होगा। वीडी का तीन साल का कार्यकाल अगले महीने पूरा हो रहा है।
बीजेपी सूत्रों की मानें तो, नड्डा का कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद भी उनकी टीम में बड़े पैमाने पर बदलाव होना तय है। इसमें राष्ट्रीय पदाधिकारियों से लेकर राज्य के अध्यक्ष भी बदले जाना है। खासकर उन राज्यों में, जहां बीजेपी की सरकार है। दरअसल, पार्टी विधानसभा चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देख रही है।
वीडी शर्मा को मिल सकती है केंद्र में जिम्मेदारी…….
सूत्रों का कहना है कि यदि विष्णु दत्त (वीडी) शर्मा को हटाया तो उन्हें केंद्र में जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनके स्थान पर पार्टी चुनावी गणित के हिसाब से जातीय कार्ड खेल सकती है। इस नजर से प्रदेश में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी वोटबैंक को साधने की है। 2018 में हार की वजह इस बड़े वोटबैंक का छिटकना था। ऐसे में आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया जा सकता है। इसमें राज्यसभा सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी का नाम आगे है। सोलंकी मोदी-शाह की पसंद भी हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी पटरी भी बैठ जाएगी।
इसी तरह वीडी शर्मा का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया तो उनके स्थान पर सामान्य वर्ग के नेता को भी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके लिए पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला इस रेस में आगे हैं। इसकी वजह यह है कि शुक्ला के नाम पर शिवराज सहमत हो जाएंगे और अन्य नेताओं की तरफ से उनका विरोध नहीं होगा। खास बात यह है कि शुक्ला को अध्यक्ष बनाया जाता है तो बीजेपी विंध्य के साथ-साथ महाकौशल भी साध लेगी।
पिछले चुनाव के आंकड़े देखें तो प्रदेश के छह अंचलों में विंध्याचल एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जहां बीजेपी ने पिछले चुनावों से कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। यहां की 30 सीटों में से उसे 24 पर जीत मिली, लेकिन 2013 में विंध्य में प्रदर्शन सबसे कमजोर था। तब 30 में से 17 सीटें जीती थीं। इस बार 7 सीटें बढ़ी हैं, लेकिन महाकौशल में बीजेपी को बड़ा झटका लगा था। पूरे अंचल की बात करें तो 38 सीटें हैं। कांग्रेस 23, भाजपा 14 और 1 निर्दलीय के खाते में गई। पिछली बार कांग्रेस 13, भाजपा 24 और 1 निर्दलीय को मिली थी।
प्रदेश में बीजेपी यदि दलित वोटर्स को साधे रखने की रणनीति पर आगे बढ़ती है तो इस वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो बीजेपी के अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालसिंह आर्य को यह कुर्सी सौंपी जा सकती है। आर्य, शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में मंत्री रह चुके हैं। हालांकि वे 2018 में चुनाव हार गए थे।
मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए प्रदेश की 35 विधानसभा सीटें आरक्षित है, जबकि वोट बैंक के लिहाज से 17% वोट इसी वर्ग के हैं। यह वोट बैंक 50 से ज्यादा सीटों पर अपनी सीधी पकड़ रखता है और निर्णायक भूमिका में रहता है। वर्तमान में 35 सीटों में से भाजपा के पास 21 सीट है, 14 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इससे पहले भाजपा की झोली में SC सीटें 28 थीं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान हुआ, जबकि कांग्रेस को फायदा हुआ। इसके अलावा 28 सीटों पर भी बीजेपी की पकड़ कमजोर होती नजर आई, ऐसे में कांग्रेस इस वोट बैंक में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है तो बीजेपी इस वर्ग पर अपनी पकड़ वापस लाना चाहती है।
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