लेखक- प्रहलाद सिंह पटेल
केन्द्रीय राज्यमंत्री, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एवं जलशक्ति
(7 नवंबर जयंती पर विशेष)
मेरे छात्र जीवन से ही जिन व्यक्तित्वों ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया उनमें से एक थे स्वर्गीय पं. भगवतीधर वाजपेयी। मूलतः वे एक पत्रकार थे और उनके संपादकत्व में प्रकाशित होने वाला दैनिक युगधर्म राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने के नाते साठ के दशक से लगातार उस दौर के विपक्ष की आवाज बना रहा| वाजपेयी जी ने जनसंघ के जरिये राजनीति भी की किन्तु वह कुछ पाने के लिए नहीं अपितु राजनीतिक विकल्प के रूप में राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत आधार देने का प्रयास थी। सुनिश्चित पराजय के बावजूद सीमित संसाधनों और बेहद विपरीत परिस्थितियों में भी केवल विचारधारा के प्रसार हेतु चुनाव में उतरना उस दौर में साहस ही नहीं अपितु दुस्साहस माना जाता था|
उन्होंने सामाजिक जीवन की शुरुआत बतौर पत्रकार लखनऊ में जिस संस्थान से की उसका नाम राष्ट्रधर्म था जिसके साथ एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय , भारतरत्न क्रमशः स्व. अटलबिहारी वाजपेयी और स्व. नानाजी देशमुख जैसी महान हस्तियाँ जुडी हुई थीं। बाद में उन्होंने और अटल जी ने दिल्ली आकर वीर अर्जुन में कार्य किया। कुछ समय बाद अटल जी ने जनसंघ के संस्थापक डा.श्यामाप्रसाद मुख़र्जी के निजी सचिव के तौर पर पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका स्वीकार की और पं. वाजपेयी नागपुर से प्रकाशित होने वाले युगधर्म के संपादक बनाकर पत्रकारिता से स्थायी तौर पर जुड़ गए। राष्ट्र्धर्म से युगधर्म तक की उनकी यात्रा उनके वैचारिक पक्ष को और मजबूत करने वाली साबित हुई। नए म.प्र की रचना होने पर जबलपुर को राजधानी बनाये जाने की अनुशंसा होने से युगधर्म का जबलपुर संस्करण प्रारम्भ होने पर वे उसके संपादक बनकर यहाँ आये और फिर जीवन पर्यंत संस्कारधानी के होकर रह गये। कालान्तर में युगधर्म का रायपुर संस्करण भी शुरू हुआ और वे तीनों संस्करणों के प्रधान सम्पादक नियुक्त किये गये।
निश्चित रूप से पत्रकारिता उनकी पहिचान थी लेकिन समाज सेवा के प्रति उनकी रूचि के कारण उन्होंने शिक्षा, सहकारिता, उद्योग व्यापार जैसे क्षेत्रों में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई। पूर्व में जबलपुर और अब रानी दुर्गावती विवि की कुल संसद, विद्वत परिषद, कार्यपरिषद आदि के वे दशकों तक सदस्य रहे। नागरिक सहकारी बैंक के अध्यक्ष और म.प्र हथकरघा संघ के उपाध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएँ दीं। भारत सरकार द्वारा उन्हें क्षेत्रीय श्रमिक शिक्षा केंद्र की क्षेत्रीय समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। निःस्वार्थ स्वभाव और समर्पण की भावना ने उन्हें राजनीति की सीमाओं से ऊपर उठकर स्वीकार्यता और सम्मान दिया क्योंकि अपनी प्रतिबद्धताओं को बिना किसी पर लादे वे सभी के साथ सद्भावना रखते थे।
राजनीति से उनका निकट का सम्बन्ध होने के बावजूद वह उनके लिए सेवा और विचारधारा के प्रसार का माध्यम रही। उनके सान्निध्य में आये अनेकानेक युवाओं ने कालान्तर में पत्रकारिता , शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में उच्च शिखरों को छुआ किन्तु उन्हें इसका अभिमान नहीं था और उन्होंने बदले में कोई अपेक्षा किसी से नहीं की। उनके निजी सम्बन्ध सत्ता के उच्च पदों पर विराजमान रहे महानुभावों से रहे किन्तु लाभ लेने की प्रवृत्ति से वे सदैव दूर रहे और इसीलिये सत्ता अनुकूल रही हो या प्रतिकूल पं. वाजपेयी के सम्मान में कोई कमी नहीं आई।
उनके सबसे बड़ी विशेषता ये रही कि असाधारण व्यक्तित्व होने के बाद भी वे सदैव साधारण बने रहे। हर किसी के प्रति स्नेह भाव रखना और कार्य के प्रति ईमानदारी के कारण वे सबके प्रेरणा स्रोत बने रहे। संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं अपितु समूचे प्रदेश में उनकी शख्सियत से लोग परिचित थे। इसका कारण उनकी सक्रियता थी। पत्रकारिता के अलावा भी वे विभिन्न सांस्कृतिक, साहित्यिक, शैक्षणिक संस्थाओं से संबंद्ध रहे।
भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी। पूरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा उन्होंने की किन्तु भारत और और यहाँ की जीवन शैली के प्रति उनकी आस्था असंदिगध थी। रामचरित मानस और श्रीमद भगवत गीता का उन्होंने गहराई तक अध्ययन किया। राम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान रास्वसंघ पर प्रतिबन्ध के विरोध में वे जेल गए। कच्छ सत्याग्रह में भी उन्हें कारावास की सजा हुई और वे साबरमती जेल में रहे। वाजपेयी जी का बहुमुखी व्यक्तित्व और समावेशी स्वभाव हर किसी को अपना बना लेता था। इसी वजह से हर उम्र और वर्ग के लोग उनके पास निःसंकोच आया करते थे। यहाँ तक कि उनके वैचारिक विरोधी भी उनसे विचार– विमर्श करने में संकोच नहीं करते थे क्योंकि उन्हें इस बात का विश्वास था कि वे अनुचित सलाह नहीं देंगे।
आज के दौर में जब समूचा परिदृश्य विश्वास के संकट से गुजर रहा है तब स्वर्गीय पं. वाजपेयी का बहुमुखी व्यक्तित्व और अनुकरणीय कृतित्व जनसेवा के क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। आयु के 95 वर्ष पूर्ण करने के बाद उन्होंने इस संसार से विदा ली। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका पुत्रवत स्नेह और गुरुवत मार्गदर्शन सदैव मिलता रहा।
उनकी स्मृति में आज जबलपुर में आयोजित कार्यकर्ता दिवस उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है क्योंकि महत्वाकांक्षाओं से दूरी बनाते हुए उन्होंने सदैव इसी भूमिका को स्वीकार किया।
उनकी पावन स्मृति को सादर नमन