भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में जिस तरह से गांधी परिवार को घेरने की कोशिश की। गांधी परिवार भाजपा के इस दांव को समझ नहीं पाया। भाजपा द्वारा फेंकी गई गूगली में गांधी परिवार फंस गया।
चुपके चुपके ऊंट की चोरी नहीं होती है। यह बात गांधी परिवार को समझना होगी। कांग्रेस, गांधी परिवार के कारण एकजुट है। हारना और जीतना समय समय पर होता रहता है।जो मुकाबले में डटे रहते हैं। वही आगे बढ़ते हैं।भाजपा जो भी कहेगी, वह अपने हित के लिए कहेगी।गांधी परिवार का कोई सदस्य ना खड़ा होने की घोषणा के बाद,वर्तमान स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर जो खींचतान हो रही है।गांधी परिवार की किरकिरी हो रही है। इससे अच्छा तो यह होता, कि राहुल गांधी स्वयं अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेते। जिस तरह से वह प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले में खड़े हुए हैं। जिम्मेदारी के साथ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते। अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से उनकी स्थिति और कांग्रेस की स्थिति बेहतर होती। कांग्रेस नेताओं की पार्टी बनकर रह गई है। नेताओं की महत्वाकांक्षा की कीमत गांधी परिवार को चुकाना पड़ रही है। यह गांधी परिवार को समझना होगा। राहुल गांधी अकेले क्यों प्रधानमंत्री और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। कांग्रेस के जो छत्रप बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। वह क्यों चुपचाप थे, संगठन और जनता के पास क्यों नहीं गए। छत्रप अपने आप को बचाने के लिए चुपचाप तमाशा देख रहे थे। पार्टी छोड़कर जा रहे थे। यदि राहुल गांधी यह समझ गए होते, तो वह वर्तमान समय में सेनापति के रूप में मैदान में स्वयं खड़े होते तो सारी सेना उनके पीछे खड़ी होकर जोश से लड़ रही होती।