नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’
7,शंकरगली मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी मप्र।
मोबा-9425089251
केंद्रीय भाजपा के संसदीय बोर्ड ओर चुनाव समिति में सांगठनिक परिवर्तन के बाद मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में अचानक मुख्यमंत्री परिवर्तन के कयास लगाए जाने लगे हैं।
क्या संसदीय बोर्ड में परिवर्तन को एमपी में मुख्यमंत्री परिवर्तन के तौर पर देखा जाना अभी उचित होगा ? क्या सचमुच भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में मुख्यमंत्री चेहरे की तलाश में है ? क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटाना उनकी मुख्यमंत्री के तौर पर अयोग्यता का प्रमाण-पत्र है ? अथवा शिवराज को किसी ओर बड़ी जवाबदेही से नवाजने की तरफ इशारा है ? यह सब चर्चा मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सुनी जा रही हैं। इन सब सियासी सवालों के मध्य जो सबसे बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है, वह यह कि शिवराज सिंह का विकल्प कौन है ? ऐसा मजबूत विकल्प जो मध्यप्रदेश राज्य की जवाबदेही उस राजनैतिक कौशल के साथ सम्भाल सकें जिस कुशलता से विगत 17-18 वर्षो से शिवराज सिंह चौहान ने संभाल रखी है। कहीं ऐसा तो नहीं मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भाजपा की मजबूरी बन गए हो। कई बार लगा कि अब शिवराज कमजोर होने लगे हैं, किंतु हर बार वें और अधिक मजबूत होकर प्रदेश के राजनैतिक आकाश में चमकते सूर्य के मानिंद प्रभावान दिखाई देने लगे। सतत 17 बरसो से मुख्यमंत्री के दायित्व को सफलता पूर्वक निभाने वाले शिवराज का विकल्प ढूढना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं हैं। वह इसलिए कि शिवराज मैं एक आमआदमी की छवि दिखती हैं, एक ऐसा आमआदमी जो बेहद संवेदनशील हैं, आमजन के विषयों पर इस आमआदमी की गहरी पकड़ हैं। मध्यप्रदेश भाजपा के पास निश्चित रूप से शिवराज का कोई विकल्प दिखाई नहीं देता और इसी कारण से ऐसा प्रतीत होता हैं कि वें भाजपा की मजबूरी बन गए हैं। राजनीति में ओर खासकर भाजपा की राजनीति में चेहरों की अपेक्षा संगठन को महत्ता दी जाती हैं। किंतु यह भी सच हैं कि चेहरों की अपनी महत्ता ओर जन स्वीकार्यता होतीं हैं। केंद्र में जिस तरह मोदी की स्वीकार्यता है। यूपी में योगी की स्वीकार्यता हैं, बंगाल में ममता की, दिल्ली में केजरीवाल की स्वीकार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता हैं। ये वें चेहरे है जो संगठन पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी शिवराज की स्वीकार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता हैं। प्रदेश के राजनैतिक पटल पर शिवराज के बाद जिन चेहरों की चर्चा हैं उनमें कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ग्वालियर के महाराज, राज्यसभा सदस्य, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को शिवराज के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा हैं। वैसे महाराज सिंधिया को वर्तमान परिस्थियों में प्रदेश की कमान सौपना भाजपा का आत्मघाती कदम हो सकता हैं। सिंधिया का चयन भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं की नाराजी का कारण बन सकता हैं जो बरसो से पार्टी की सेवा में लगे हुए हैं। जिनके दिमाग मे प्रदेश का सर्वोच्च पद पाने की लालसा हैं। सिंधिया के पास विशेष योग्यताओं में उनका युवा होना तो है ही यह भी तमगा जुड़ा हुआ हैं कि प्रदेश में सत्ता से बाहर भाजपा को पुनः सता पर काबिज कराने में विशेष योगदान दिया हैं। सिंधिया के बाद एमपी में सीएम के रूप में केंद्रीय नेतृत्व की सबसे अधिक पसंद प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा हैं। वें प्रदेश का मुखर ब्राह्मण चेहरा हैं। प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में उनकी सख्ती की चर्चा तो बहुत हैं। सुर्खियों में बने रहने के लिए अधिक बोलने से उनपर बड़बोले होने का आरोप लगने लगे हैं। वें बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते ओर इसी कारण उन विषयों पर भी बोल जाते हैं जो प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में बोलना जरूरी नहीं हैं। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप समय-समय पर ही अच्छे लगतें हैं। इसकी आदत हो जाने पर विवाद तो उपजते है जनता में भी नेता की स्वीकार्यता कम हो जाती हैं। शालीनता नेता का श्रृंगार हैं। इस श्रृंगार की कमी नरोत्तम मिश्रा दिखाई देतीं हैं। एक ओर ब्राह्मण चेहरा प्रदेश के राजनैतिक पटल पर अपनी उपस्थिति बना चुका हैं, जो प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी सांगठनिक क्षमता से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ओर जनता के मध्य चर्चा में हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीड़ी शर्मा जिनका नाम प्रदेश में सुपर फाइव में शामिल हैं। संघ से जुड़ाव हैं, शालीनता भी हैं, किंतु प्रदेश की जनता से सीधे जुड़ाव की कमी हैं। इस क्रम में प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी हैं। श्री तोमर का ग्राफ किसान आंदोलन के बाद कम हुआ हैं। चांस कम ही है किन्तु चर्चा तो कैलाश विजयवर्गीय की भी होती ही रहती हैं। बंगाल चुनाव में अपने राजनैतिक कौशल से उन्होंने भाजपा का माहौल बनाया। बंगाल में भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी कैलाश जी के प्रबंध कौशल का ही परिणाम हैं। विजयवर्गीय पर भी बड़बोले होने की छाप हैं। चुनावी प्रबन्धन में उनका कोई सानी नहीं हैं। विजयवर्गीय का प्रबंधन जीत की ग्यारंटी माना जाता हैं। विवादों को आमंत्रित करना इनकी आदत हैं। पुत्र का अधिकारी को बेट मारने की घटना से केंद्रीय नेतृत्व की नाराजगी झेलना पड़ी थी। एक अलग प्रकार की राजनीति के चलतें बेहद ख्यात होकर भी सर्वोच्च पद की दौड़ में पीछे रह जातें हैं। इन सभी ख्यातनाम चेहरों में शिवराज सिंह चौहान का चेहरा प्रदेश की जनता के मन को सबसे अधिक भाने वाला चेहरा हैं। शिवराज की आमजनता के विषयों पर बेबाकी जनता को उनका करीबी बनाती हैं। उनकी शालीनता ओर संवेदनशीलता उन्हें प्रदेश का सबसे चर्चित मजबूत और टिकाऊ चेहरा बनाती हैं। इसी कारण प्रदेश के सबसे अधिक बार वें मुख्यमंत्री बनें अभी भी काबिज हैं। इस कठोर सच के बावजूद की भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सख्त फैसले लेने में कोई गुरेज नहीं करता हैं। शिवराज को बदलना आसान दिखाई नहीं देता हैं। संसदीय बोर्ड से कार्य-मुक्ति को शिवराज की मुख्यमंत्री के तौर पर असफलता मान लेना अभी जल्दबाजी होगीं। शायद केंद्रीय नेतृत्व शिवराज ओर नितिन गडग़री के लिए नई भूमिका देख रहा हो, उनका इस तरह हटाया जाना कई प्रश्नों को जन्म दे रहा हैं। शिवराज सिंह ने अपने ताजा बयानों में कहां संगठन उन्हें जो दायित्व सौपेगा वह निभाएगें, उन्होंने कहा कि पार्टी दरी भी बिछाने का कहेगीं तो राष्ट्र के निर्माण में वह दरी बिछाने के दायित्व को भी निभाएगें। शिवराज की यहीं शालीनता ओर सरलता उनकी श्रेष्ठता हैं। वें एमपी में जनता का सबसे पसंदीदा चेहरा हैं। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के लिए शिवराज का विकल्प ढूंढना बहुत मुश्किल कार्य दिखाई देता हैं।
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नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’
7,शंकरगली मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी मप्र।
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