इंदौर – दिनांक : 17.05.2022 –
इंदौर स्थित भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 52वीं वार्षिक समूह बैठक का उद्घाटन आज सोपा सभागार, इंदौर में माननीय डॉ तिलक राज शर्मा, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान) भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली की उपस्थिति में किया गया। इसमें सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीएस) से जुड़े विभिन्न केंद्रों से संबंधित लगभग 150 सोयाबीन वैज्ञानिक इसमें भाग ले रहे हैं। इस अवसर पर अन्य विशिष्ट अतिथियों में डॉ संजीव गुप्ता, सहायक महानिदेशक (तिलहन और दलहन), डॉ डी.के. यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), डॉ एससी दुबे, एडीजी (पौध संरक्षण), डॉ नचिकेत कोतवालीवाले, निदेशक, आईसीएआर-सिपेट, लुधियाना जैसे शीर्ष वैज्ञानिक एवं अधिकारीयों ने भाग लिया.
इस अस्सर पर भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान की निदेशक डॉ नीता खांडेकर ने पिछले खरीफ सीजन के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित विभिन्न केंद्रों पर की गई अनुसंधान गतिविधियों और परीक्षणों की रिपोर्ट प्रस्तुत की. उन्होंने वर्ष 2021 के दौरान महामारी की स्थिति के बावजूद 25 सोयाबीन किस्मों की अधिसूचना किये जाने के लिए सोयाबीन वैज्ञानिकों द्वारा की गई उपलब्धियों की सराहना की। साथ ही उन्होंने सोयाबीन के उत्पादन में हानि करने वाले कीट/रोग/सुखा/अतिवर्षा जैसे जैविक और अजैविक कारकों जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए किए जा रहे अनुसन्धान कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला, उनके अनुसार भाकृअनुप-आईआईएसआर, इंदौर के प्रक्षेत्र पर सोयाबीन+गन्ना की अंतरवर्ती फसल लेने बाबत किये गए परीक्षणों के संतोषजनक परिणाम प्राप्त होने तथा इस बाबत मध्य भारत के किसानों के खेतों पर इस की संभावनाओ की आशा व्यक्त की. डॉ खांडेकर के अनुसार बदलते जलवायु परिदृश्य में कीट कीट रोगों के प्रबंधन के लिए अन्य तकनीकों के साथ-साथ जलवायु स्मार्ट सोयाबीन किस्मों का विकास करने हेतु अनुसन्धान कार्यक्रम किये जा रहे हैं जिसके आने वाले समय में संतोषजनक परिणाम मिलेंगे.
अपने संक्षिप्त संबोधन में, डॉ संजीव गुप्ता, एडीजी (तिलहन और दलहन) ने देश की खाद्य तेल आवश्यकता की पूर्ति में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सोयाबीन फसल से जुड़े वैज्ञानिकों की सराहना की. उन्होंने कहा कि हमें अपरम्परागत क्षेत्रो में सोयाबीन की खेती के अंतर्गत क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रयास तेज करने होंगे. ब्राजील एवं अर्जेंटीना जैसे सोयाबीन की खेती में अग्रेसर देशों में कम जुताई वाली तकनिकी (कंजर्वेशन एग्रीकल्चर) का उदहारण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने देश में इस बाबत अनुसन्धान एवं विकास कार्य किये जाने पर जोर दिया.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, उपमहानिदेशक डॉ. टी आर शर्मा, ने सोयाबीन प्रजातियों की विविधता को बढ़ावा देने तथा अधिक से अधिक जलवायु-उपयुक्त, अधिक उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का कृषको में प्रचार-प्रसार करने पर जोर दिया. उन्होंने यह भी कहा की जैव तकनिकी पर आधारित (मार्कर असिस्टेड सिलेक्शन-जिनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज) तरीकों का उपयोग करते हुए स्पीड ब्रीडिंग की सहायता से कमसे-कम समय में सोयाबीन किस्मों के विकास की प्रक्रिया की गति बधाई जा सकती हैं.
इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के बाद, फसल सुधार कार्यक्रम से संबंधित तकनीकी सत्र आयोजित किया गया, जिसमें पादप प्रजनकों ने देश भर में किए गए प्रारंभिक के साथ-साथ अग्रिम किस्मों के परीक्षणों के परिणाम प्रस्तुत किए हैं। इसी प्रकार पौध संरक्षण पर एक अन्य तकनीकी सत्र भी आयोजित किया गया जिसमें विभिन्न प्रतिरोध स्रोतों को शामिल करते हुए कीट-पीड़कों और रोगों के प्रबंधन के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. जी.के. सातपुते ने किया, जबकि सोयाबीन पर एआईसीआरपी प्रभारी डॉ. संजय गुप्ता ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा।