2008 में गिरफ्तार हुए थे चंद्रेश मार्सकोले
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महिला की कथित हत्या के मामले में एक MBBS छात्र की दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया। अदालत ने साथ ही पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने मामले की जांच ‘व्यक्ति को झूठे तरीके से फंसाने के एकमात्र उद्देश्य’ से की। अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह संबंधित व्यक्ति को 42 लाख रुपये का मुआवजा दे क्योंकि उसे ‘न्याय के इंतजार’ में अपने जीवन के 13 साल सलाखों के पीछे बिताने पड़े। अदालत ने कहा कि यह मामला ‘दुर्भावना और पूर्वाग्रह से प्रेरित जांच की घिनौनी’ कहानी कहता है।
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हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यक्ति की दोषसिद्धि और कैद ने उसके पूरे जीवन को ‘अस्त-व्यस्त’ कर दिया। आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चंद्रेश मार्सकोले को कथित हत्या के सिलसिले में 2008 में गिरफ्तार किया गया था। उस समय वह भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में MBBS कर रहे थे और अंतिम वर्ष के छात्र थे। उन पर राज्य के पचमढ़ी में अपनी प्रेमिका की हत्या करने और उसके शव को ठिकाने लगाने का आरोप था। अब चंद्रेश की उम्र करीब 34 साल हो चुकी है।
‘दुर्भावना से प्रेरित मुकदमा चलाया गया’
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस सुनीता यादव की पीठ ने बुधवार को हत्या के मामले में मार्सकोले की सजा को निरस्त कर दिया और निचली अदालत के 2009 के फैसले के खिलाफ उनकी अपील का निपटारा कर दिया। पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाएगा। यह मामला दुर्भावना और पूर्वाग्रह की भावना से की गई जांच की एक घिनौनी गाथा का खुलासा करता है, जिसके बाद दुर्भावना से प्रेरित मुकदमा चलाया गया, जहां पुलिस ने मार्सकोले को गलत तरीके से फंसाने और शायद जानबूझकर अभियोजन पक्ष के गवाह (डॉ. हेमंत वर्मा) की रक्षा करने के एकमात्र उद्देश्य से मामले की जांच की, जो हो सकता है वास्तविक अपराधी हो।’