परमहंस डॉ अवधेशपुरी
स्वस्तिकपीठाधीश्वर – स्वस्तिपीठ , उज्जैन
○ ” शिवलिंग एवं स्वस्तिक की एकता “
○शिवलिंग अनंत ब्रह्मांड का प्रतीक है । पुरुष एवं प्रकृति की समानता का प्रतीक है ।
○वेदानुसार – वेदों के अनुसार लिंग का अर्थ है ” शूक्ष्म ” । शूक्ष्म शरीर में 17 तत्व होते हैं – 1 – मन , 1 – बुद्धि , 5 – ज्ञानेंद्रियां 5 – कर्मेंद्रियां एवं 5 – प्राण ।
○ वायु पुराण के अनुसार – सृष्टि का जिस से स्रजन एवं जिसमें लय होता है , वह ” लिंग ” है ।
○ ” बिन्दु ” एवं ” नाद ” अर्थात ” ऊर्जा ” और ” ध्वनि ” यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार हैं ।
○ ” शून्य ” या ” आकाश ” अनंत ब्रह्मांड और निराकार परम पुरुष का प्रतीक है ।
○ स्कंद पुराण के अनुसार – “आकाश ” स्वयं ” शिवलिंग ” है तथा धरती उसकी पीठ या आधार है ।
○ शिव पुराण के अनुसार – शिव ” पूर्ण पुरुष ” और ” ” निराकार ब्रह्म ” हैं । शिवलिंग ” प्रकाश स्तंभ लिङ्ग ” , ” अग्नि स्तंभ लिङ्ग ” एवं ” ऊर्जा स्तम्भ लिङ्ग ” है ।
○ वेद के अनुसार -” व्यापक ब्रह्मात्मक लिङ्ग ” यानी ” व्यापक प्रकाश ” ।
○ शिवलिंग के 12 खंड ब्रह्म , माया एवं जीव = 3
मन , बुद्धि , चित्त एवं अहंकार = 4
आकाश , वायु , अग्नि , जल एवं पृथ्वी = 5 ( 3 + 4 + 5 = 12 )
भगवान शिव ने ब्रह्मा व विष्णु के बीच श्रेष्ठता के विवाद को शांत करने के लिए 1 ज्योतिर्लिंग को प्रकट किया था , जिसके आदि अंत को ढूंढते हुए उन्हें शिव के परम ब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ । इसी समय शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई ।
विक्रम संवत के कुछ शताब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का प्रकोप हुआ । आदिमानव को यह रुद्र का आविर्भाव दिखा । जहाँ - जहाँ यह पिण्ड गिरे वहाँ - वहाँ इनकी रक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए । आकाश से जो पिण्ड गिरे तो थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया इसलिए ज्योतिर्लिंग कहलाए ।
मोसोपोटेमिया व हड़प्पा की संस्कृति में शिवलिंग की पूजा के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं । पशुओं के देवता के रूप में " पशुपति " की पूजा के प्रमाण प्राप्त हुए हैं । सेंधव सभ्यता से प्राप्त एक शिला पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है , जिसके आसपास कई पशु हैं ।
शिवलिंग के तीन भाग - 1 - ब्रह्मा (नीचे ), 2 - विष्णु ( मध्य ) , 3 - महेश ( ऊपर ) ।
शिवलिंग के दो प्रकार - 1 - आकाशीय उल्का शिवलिंग 2 - पारद शिवलिंग ।
पुराणों के अनुसार - शिवलिंग के 6 प्रकार होते हैं - 1 - देव लिंग , 2 - असुर लिंग , 3 - आर्ष लिंग , 4 - पुराण लिंग , 5 - मनुष्य लिंग एवं 6 - स्वयंभू लिंग ।
शिव = परमकल्याणकारी शुभ ।
लिङ्ग = स्रजन ज्योति या प्रकाश । अतः शिवलिंग का अर्थ हुआ शुभकर्ता ,कल्याणकर्ता अथवा मंगलकर्ता सृजनात्मक प्रकाश । वेदों में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है । उपरोक्त रहस्यमय विश्लेषण से स्वस्तिक और शिवलिंग की समानता अथवा एकता सिद्ध होती है । यहां शिवलिंग का अर्थ है कल्याणकारी सृजनात्मक प्रकाश तथा स्वस्तिक का अर्थ भी होता है कल्याणकारी , शुभकारी एवं मंगलकारी । स्वस्तिक सूर्य एवं अग्नि का प्रतीक होने से प्रकाश का प्रतीक भी होता है । अतः शिवलिंग और स्वस्तिक दोनों ही अपनी दिव्य ज्योतिर्मय आभा से इस सृष्टि का शुभ , कल्याण एवं मंगल करते हैं । शिवलिंग भगवान शिव का ही स्वरूप है इसलिए कहा जा सकता है कि " शिव ही स्वस्तिक हैं तथा स्वस्तिक ही शिव हैं "।
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